नगर की समस्याओं को लेकर विधायक के विषय में खुलकर बोल रहा यह युवा भाजपाई, ताज्जुब कि विपक्ष के लगभग तमाम चेहरे कर रहे विधायक की राजनीति
एम हसीन
रुड़की। यह खासी दिलचस्प बात है कि नगर में कांग्रेस के कई गुट हैं। इनमें संगठन के निवर्तमान पदाधिकारी भी हैं और विभिन्न चुनावों में हिस्सेदारी कर चुके चेहरे भी; लेकिन अधिकांश अपने-अपने तरीके से मेयर ललित मोहन अग्रवाल के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। नगर विधायक प्रदीप बत्रा के खिलाफ किसी की राजनीति नहीं चल रही है। इससे कभी-कभी तो यह महसूस होता है कि इन दिनों समूचा विपक्ष मेयर के खिलाफ विधायक प्रदीप बत्रा की ही राजनीति कर रहा है। ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि खुद विधायक प्रदीप बत्रा भी खुलकर मेयर के खिलाफ बोल रहे हैं, निगम से बनने वाली सड़कों का उद्घाटन खुद जबरन कर रहे हैं, मेयर को कूड़ा उठाने वाला बोल रहे हैं और नगर के विकास के लिए खुद को जिम्मेदार बता रहे हैं। जल-भराव की समस्या के लिए अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं स्वीकार कर रहे हैं; फिर भी मेयर को बहस के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। इस सबके बीच लगभग समूचे विपक्ष की राजनीति मेयर के खिलाफ केंद्रित है या फिर राज्य सरकार के खिलाफ। विधायक से कोई जवाब नहीं मांग रहा है; सिवाय चेरब जैन के। वही ऐसा इकलौता चेहरा है जो सॉफिस्टिकेशन की भाषा बोल रहा है, विधायक के प्रति सम्मान की भाषा बोल रहा है लेकिन नगर विकास के लिए विधायक को जिम्मेदार मानकर उनसे जवाब भी मांग रहा है। नगर की दुर्दशा के लिए खुलकर विधायक को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
पाठक इस बात को बेहतर जानते हैं कि राजनीति के लिए चेरब जैन कोई बहुत पुराना चेहरा नहीं हैं। चेरब जैन का राजनीतिक सफर अभी महज सवा साल पुराना है। उन्होंने पिछले साल खुद को निकाय चुनाव के केंद्र में रखकर लॉन्च किया था और इतना प्रचार पाया था कि क्षेत्र की जनता उनके नाम से बेहतर वाकिफ हो गई थी। फिर जब भाजपा ने मेयर टिकट अनीता ललित अग्रवाल पत्नी ललित मोहन अग्रवाल को दे दिया था तो चेरब जैन ने भी राजनीति का अपना तरीका बदल दिया था। उन्होंने तुरंत फोकस विधानसभा सीट पर कर लिया था। बहुत संभव है कि इसके लिए उनकी अंडरस्टैंडिंग ललित मोहन अग्रवाल के साथ चुनाव के दौरान ही बन गई हो और वहीं से उन्हें प्रेरणा भी मिल रही हो।
अब बात आती है विधानसभा टिकट की। राजनीति का तरीका यह है कि ललित मोहन अग्रवाल को मेयर का पद मिल जाने के बाद विधानसभा का टिकट नहीं मिल सकता। भाजपा एक ही घर में दो टिकट नहीं दे सकती। अलबत्ता ऐसा हो सकता है कि जिसे ललित मोहन अग्रवाल चाहें उसे भाजपा टिकट दे दे। इसे बत्रा भी जानते हैं कि अब भाजपा का टिकट हासिल करने के लिए उन्हें मेयर के “नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट” की जरूरत होगी। रक्षा बंधन तक प्रदीप बत्रा ने इस जरूरत को समझा था। यही कारण है कि वे मेयर से राखी बंधवाने और रक्षा का आश्वासन पाने के लिए उनके घर पहुंचे थे। लेकिन बाद में बात कुछ बनी नहीं। बत्रा ने खुद ही मेयर के खिलाफ भाला-कृपाण उठा ली। इससे यह सन्देश गया कि उन्हें पक्का विश्वास हो गया है कि भाजपा में अब उनकी दाल नहीं गलेगी और मेयर के संरक्षण में चेरब जैन को टिकट मिल ही जाएगा। अब अगर भाजपा का टिकट चेरब जैन को मिलता है तो जाहिर है कि प्रदीप बत्रा को कहीं और ठौर-ठिकाना तलाश करना पड़ेगा। उनकी यही स्थिति विपक्ष को उनके साथ जोड़ रही है।
विपक्ष को लगता है कि जब कल उन्हें प्रदीप बत्रा के लिए वोट मांगने ही हैं तो आज उनके खिलाफ राजनीति करने से परहेज करें ताकि कल मीडिया उनका मुंह न पकड़े। दूसरी ओर चेरब जैन को चुनाव प्रदीप बत्रा के ही खिलाफ लड़ना पड़ेगा, इसलिए वे आज ही बत्रा के खिलाफ लाठियां भांज रहे हैं। इस मामले में मुझे कोई संदेह नहीं है कि अगर भाजपा प्रदीप बत्रा का टिकट काटेगी तो टिकट चेरब जैन को ही देगी। वे लोग भ्रम में हैं जो समझते हैं कि एक बनिए को मेयर बनाने के बाद भाजपा दूसरा टिकट भी किसी बनिए, यानी जैन, को दे देगी। दरअसल, चेरब जैन का दावा भाजपा टिकट पर बीइंग बनिया नहीं बल्कि बीइंग अल्पसंख्यक समुदाय है। जैन राज्य में ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जो बनियों समेत भाजपा के समूचे वोट बैंक में स्वीकार्य होता है। चेरब जैन से पहले कई जैन भाजपा की राजनीति में कामयाब रह चुके हैं। यही वह तथ्य है जो प्रदीप बत्रा को विचलित कर रहा है और वे चेरब जैन की थ्रेट महसूस कर रहे हैं। यह अलग बात है कि वे चेरब जैन पर निशाना साधने की बजाय मेयर पर निशाने साध रहे हैं।
