संजय अरोरा के लिए भी महत्वपूर्ण रहा 2025

एम हसीन

रुड़की। कभी जिला हरिद्वार के संयुक्त संगठन में जिला महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन रह चुके संजय अरोरा 2019 में पार्टी में अपना प्रभाव नहीं बचा पाए थे। बाद में वे पार्टी में तो बने रहे थे लेकिन इसके लिए उन्हें पार्टी नेताओं के प्रति व्यक्तिगत निष्ठाओं का सहारा लेना पड़ा था। लेकिन 2025 में उनकी सांगठनिक स्तर पर वापसी हुई। उन्हें डॉ मधु सिंह के नेतृत्व वाले जिला संगठन में उपाध्यक्ष बनाया गया। यह नियुक्ति उनके राजनीतिक करियर के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। अगर 2027 में पार्टी सीटिंग विधायक प्रदीप बत्रा का टिकट काटने पर आमादा हुई और पंजाबी समुदाय ही टिकट के मामले में उसकी पसंद रही तो संजय अरोरा के लिए रास्ता बन सकता है और उनकी बरसों पुरानी मुराद पूरी हो सकती है।

संजय अरोरा का नगर की राजनीति से संबंध तभी से है जब राज्य बना था। 2002 के पहले ही विधानसभा चुनाव में उन्होंने अप्रत्याशित रूप से उत्तराखंड क्रांति दल का टिकट हासिल किया था और चुनाव में शिरकत की थी। उन्होंने 2007 में फिर उक्रांद के टिकट पर ही चुनाव लड़ा था। इन दोनों चुनावों में वे अपने पंजाबी समुदाय के केवल भाजपा विरोधी वोटों का ही समर्थन हासिल कर पाए थे। इसी कारण उक्रांद से उनका मोह भंग हो गया था। फिर भी तब तक उनकी दिशा ठीक थी। लेकिन 2008 में जब प्रदीप बत्रा ने निर्दलीय नगर पालिका अध्यक्ष पद का पर्चा दाखिल किया तो संजय अरोरा भी जातिवाद का शिकार होकर उनके साथ आ गए और यूं अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार बैठे। उनका भरोसा था कि प्रदीप बत्रा नगर पालिका अध्यक्ष बनकर संतुष्ट रहेंगे और 2012 में उन्हें विधायक बनाने में मदद देंगे। लेकिन स्वाभाविक रूप से न ऐसा हो सकता था और न हुआ।

बत्रा से निराश होकर संजय अरोरा अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए 2009 में कांग्रेस में गए तो प्रदीप बत्रा ने उनका पीछा दबा किया। उन्होंने 2011 में कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी का विधानसभा का टिकट हाथिया लिया और संजय अरोरा देखते रह गए। बत्रा रुड़की में पहला पंजाबी नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए पहले पंजाबी विधायक भी बने। इससे निराश संजय अरोरा 2013 में भाजपा में आए तो प्रदीप बत्रा ने 2015 में भाजपा में आकर पार्टी का विधानसभा टिकट हाथिया लिया। तब से वे ही भाजपा विधायक चले आ रहे हैं।

इस बीच 2019 के निकाय चुनाव में संजय अरोरा ने एक बड़ा फैसला लिया और बसपा का मेयर टिकट हासिल कर चुनाव लड़ने की उम्मीद बंधाई। लेकिन चंद घंटों बाद ही उन्होंने अपने बढ़े हुए कदम वापिस खींच लिए और भाजपा में ही बने रहे। लेकिन डैमेज हो चुका था। वे पार्टी में अपना सम्मान खो चुके थे। इसी कारण हाल तक वे बड़े पार्टी नेताओं के साथ अपने होर्डिंग्स लगाते तो दिखे लेकिन पार्टी संगठन में उन्हें रुतबा नहीं मिला। फिर नगर की राजनीति में बदलाव हुआ। गैर-पंजाबी समाज में प्रदीप बत्रा विरोधी एक मजबूत लॉबी उभरी और पहली बार भाजपा को अनीता देवी अग्रवाल के रूप में अपना मेयर मिला। माना जाता है कि प्रदीप बत्रा ने चुनाव में अनीता देवी अग्रवाल का विरोध किया था। जाहिर है कि इसी कारण उन्होंने पार्टी में अपनी साख गिराई है। वे खुलेआम अनीता देवी अग्रवाल का विरोध भी कर रहे हैं। इससे लगता है कि उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद अब नहीं है।

इन्हीं हालात के बीच जब डॉ मधु सिंह की अगुवाई में बने जिला संगठन में संजय अरोरा को जिला उपाध्यक्ष पद मिला तो साफ दिखा कि उनका पार्टी में पुनर्वास हो गया है। अब यह देखा जाना लाज़मी है कि राजनीति में उनके लिए कदम कहां तक आगे बढ़ते हैं।