इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में राव नौबहार अली

एम हसीन

रुड़की। कल कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले राव नौबहार अली ने आज आजाद समाज पार्टी का दामन थाम किया। यह खानपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र के भीतरी समीकरणों में आ रहे बदलाव का संकेत है। इससे यह जाहिर होता है कि इस क्षेत्र का मुस्लिम क्षेत्र के राजनीतिक वातावरण में कसमसाहट महसूस कर रहा है। हालांकि यहां के मौजूदा निर्दलीय विधायक उमेश कुमार मुस्लिम समुदाय में पूरे तौर पर घुले-मिले हैं। लेकिन व्यक्तिगत रूप से राजनीतिक नेतृत्व हासिल करने का मुस्लिम समुदाय का इरादा भी यहां कायम है।

जहां तक राव नौबहार अली का सवाल है, वे क्षेत्र की राजनीति का जाना-पहचाना नाम है। अहम यह नहीं है कि वे एक बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। अहम यह है कि पुराने समीकरण के समय, जब जिले में विधानसभा की सीटें नौ हुआ करती थी, तब उन्होंने रुड़की सीट पर बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का इरादा कायम किया था। तब रुड़की सीट इसलिए उनकी पसंद बनी थी क्योंकि उनकी अपनी गृह सीट, लंढौरा तब आरक्षित थी। यह 2007 की बात है। बाद में उन्हें अपना कदम पीछे खींचना पड़ा था यह अलग बात है। 2008 में नया परिसीमन हो जाने के बाद उनकी गृह सीट खानपुर बन गई थी जो सामान्य है। इसी कारण उनकी सक्रियता अपनी सीट पर हो गई थी। विधानसभा चुनाव लड़ने की उनकी ख्वाहिश 2012, 2017 और 2022 में भी कायम रही थी। लेकिन जिन पार्टियों में वे रहे थे, उन्होंने उन्हें मौका नहीं दिया। यही कारण है कि कांग्रेस से होते हुए अब वे आसपा की बढ़े हैं। उन्होंने चुनाव की पूर्व बेला में आसपा का दामन थामा है तो ऐसा बेवजह तो हुआ नहीं। वजह साफ है कि पार्टी की ओर से उन्हें टिकट स्पष्ट आश्वासन मिल चुका है।

अब सवाल यह है कि जब वे आसपा के टिकट पर मैदान में आयेंगे तो क्षेत्र के लोगों को कितना आकर्षित कर पाएंगे! जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि खानपुर सीट 2012 में अस्तित्व में आई थी। तब यहां पहला और दूसरा चुनाव प्रणव सिंह चैंपियन ने जीता था, जो इससे पहले दो बार लक्सर विधायक रह चुके थे। यह भी सच है कि खानपुर मुस्लिम बहुल सीट है। इसी कारण यहां के मुस्लिम नेतृत्व में प्रतिनिधित्व की छटपटाहट बहुत है। यही।प्रतिनिधित्व हासिल करने के लिए यहां का मुस्लिम मतदाता दो बार मुफ्ती रियासत अली के रूप में गैर-राजनीतिक व्यक्ति को भी थोक के भाव वोट दे चुका है। यहां के मुस्लिम मतदाता की इसी मानसिकता की दहशत में जिले की तमाम राजनीति रहती आई है। अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2022 के चुनाव में जब भाजपा ने उनकी पत्नी रानी देवयानी को टिकट देकर प्रणव सिंह चैंपियन को पांचवीं बार मैदान में उतारा था और बसपा ने चैंपियन के ही सजातीय रविन्द्र पनियाला को प्रत्याशी बनाया था तो भी कांग्रेस ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था बल्कि बदलाव के लिए तैयार बैठे मुस्लिम मतदाता को उमेश कुमार के रूप में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विकल्प दिया गया था। उमेश कुमार जीते भी थे। लेकिन अब जबकि 2027 का चुनाव सिर आ खड़ा हुआ है तो मुस्लिम मतदाता के मन में एक बार फिर अपना प्रतिनिधि चुनने की इच्छा अंगड़ाई लेने लग गई है। इस इच्छा को राव नौबहार कितना पूरा कर पाएंगे, इसी से यहां का चुनाव परिणाम तय होगा।