त्रिवेंद्र सिंह रावत के खेमे के इस युवा चेहरे के मनोनयन पर है राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर
एम हसीन
रुड़की। भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में अपने जिला संगठन में उपाध्यक्ष और महामंत्री पदों पर कार्यकर्ताओं को नियुक्ति दी है। यूं नियुक्त किए गए सभी चेहरों को संगठन की स्थितियों में, समीकरणों में आए बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन सबसे अधिक दिलचस्पी के साथ जिस चेहरे को देखा जा रहा है वह है अक्षय प्रताप सिंह का, जिन्हें महामंत्री बनाया गया है। अहमियत इस बात की है कि अक्षय प्रताप सिंह हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के कैंप की राजनीति करते हैं और जैसा कि बताया गया है कि उनकी नियुक्ति सांसद के ही इनिशिएटिव पर हुई है। लेकिन मामले और भी हैं।
जैसा कि सभी जानते हैं कि अक्षय प्रताप सिंह की व्यक्तिगत बैक ग्राउंड राजनीतिक नहीं है। उनके दादा, अपने दौर के वरिष्ठ अधिवक्ता वीर अभिमन्यु या उनके पिता योगेंद्र सिंह सक्रिय राजनीति का हिस्सा कभी नहीं रहे। अक्षय प्रताप सिंह की भी हाल तक की व्यस्तता कारोबारी रही है। वे ब्रिटेन से उच्च शिक्षा हासिल करके लौटे तो कुछ उन्होंने अपने पुश्तैनी कारोबार संभाले और कुछ नए कारोबार खड़े किए। इसी बैक ग्राउंड के साथ वे सामाजिक संस्थाओं से जुड़े। रोटरी मिड-टाउन से जुड़े और भारत विकास परिषद का हिस्सा बने। उनका शुरुआती जुड़ाव भले ही प्रतिष्ठित संस्थाओं का हिस्सा बनकर सामाजिक रुतबा हासिल करने के लिए रहा हो, लेकिन जल्द ही उनका रुख राजनीति की ओर हो गया। उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और पिछले लोकसभा चुनाव में वे पार्टी प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ जुड़े। फिर निकाय चुनाव में उन्होंने अपनी भूमिका अदा की। इसी बीच वे पार्टी के मंचों के अलावा सामाजिक संगठनों की गतिविधियों में भी हिस्सेदारी करते रहे। और अब उन्हें पार्टी में जिला महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर मनोनीत किया गया है।
उनका यह मनोनयन सबसे ज्यादा इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह सीधा हुआ है। भाजपा कैडर बेस्ड पार्टी है और वहां पार्टी पदों पर नियुक्ति नीचे से होना शुरू होती है और कार्यकर्ता ऊपर के पदों की ओर बढ़ता है। उनके साथ महामंत्री और उपाध्यक्ष बनाए गए अन्य कार्यकर्ताओं पर पार्टी द्वारा यह शर्त लागू की गई है। लेकिन अक्षय प्रताप सिंह को सीधा मनोनयन मिला है। यह अपने-आप में इस बात का प्रमाण है कि सांसद के कैंप में उनकी पैठ कितनी गहरी हैं और सांसद को उनसे भविष्य में कितनी अपेक्षाएं हैं। साथ ही सांसद को इनपर कितना विश्वास है। इस मामले में रोटरी के बैनर पर अक्षय प्रताप सिंह द्वारा किए गए कार्यों और उठाए गए कदमों की भी खासी अहमियत है। बड़ी बात नहीं कि अक्षय प्रताप सिंह की सूझ-बूझ, उनकी विचारधारा, उनका दृष्टिकोण भी इस मामले में निर्णायक साबित हुआ है।
सवाल यह है कि अब महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर मनोनयन के बाद अक्षय प्रताप सिंह क्या करेंगे। चूंकि पिछले निकाय चुनाव में उन्होंने पार्टी से मेयर पद का टिकट मांगा था, इसलिए यह तो पक्का है कि चुनावी राजनीति में उनकी पूरी दिलचस्पी है। लेकिन यह भी साफ नजर आ रहा है कि उनकी मौजूदा सक्रियता वैसी नहीं है जैसी डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव के दौरान होती है! तो क्या माना जाए कि 2027 का चुनाव उनका लक्ष्य नहीं है? लेकिन यह भी तथ्य है कि वे पार्टी के मौजूदा नगर विधायक प्रदीप बत्रा के न केवल मुखर आलोचक हैं बल्कि उनके सामाजिक कार्य मुख्य रूप से उसी जमीन पर होते आए हैं जिस जमीन पर प्रदीप बत्रा राजनीति करते रहे हैं। फिर उनका व्यक्तित्व साफ-सुथरा है, वे युवा हैं, मृदुभाषी हैं और संपन्न-प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं। और फिर, जैसा कि सूत्रों ने बताया है कि प्रदीप बत्रा ने उनके महामंत्री पद पर मनोनयन का बेवजह तो तगड़ा विरोध नहीं किया था। सच यह है कि ये सारी चीजें मिलकर कुछ कहानी कहती हैं और अक्षय प्रताप सिंह की लंबी रणनीति की ओर इशारा करती हैं।
