एक-एक वोट के लिए पसीना बहा रहे भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशी

एम हसीन

झबरेड़ा। इस नगर पंचायत पर 2018 में भाजपा को पहली बार मिली जीत राजनीतिक कम, रणनीतिक ज्यादा थी। तब पार्टी के स्थानीय भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल ने रणनीति के तहत स्थानीय सामाजिक चेहरे राव कुर्बान अली को समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा दिया था जो कि डेढ़ हजार से ज्यादा वोट ले गए थे। इसके चलते भाजपा प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह जीत गए थे। इस बार इस रणनीति पर यहां कांग्रेस ने अमल किया है। कांग्रेस ने न केवल राव कुर्बान अली को बल्कि किसी भी मुस्लिम को चुनाव न लड़ने के लिए मना लिया है। इसी कारण चुनावी मुकाबला सीधा हो गया है और चुनाव प्रचार के अंतिम सप्ताह में झबरेड़ा नगर पंचायत सीट पर कड़े संघर्ष के हालात अभी बने हुए हैं। स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं है। सब कुछ वैसा ही है जैसा नामांकन के दिन था। बदलाव यह आया है कि दोनों ही प्रत्याशियों के चुनाव अभियान ने मुकाबले को प्रत्याशियों के व्यक्तित्व से ऊपर उठाकर दलों के बीच ला दिया है। यह खासी ताज्जुब की बात है कि महज 9 हजार मत वाली जिले की इस सबसे छोटी नगर पंचायत सीट पर मुकाबला व्यक्तित्वों के बीच नहीं बल्कि पार्टियों के बीच हो रहा है।

जैसा कि सब जानते हैं कि यहां भाजपा के टिकट पर निवर्तमान नगर पंचायत अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह प्रत्याशी हैं और कांग्रेस ने उनके मुकाबले के लिए किरण गौरव चौधरी को मैदान में उतारा है। नगर मिश्रित आबादी वाला क्षेत्र है। यहां ब्राह्मण, वैश्य, अगड़े, पिछड़े, मुस्लिम, दलित आदि सभी वर्गों के मतदाता मौजूद हैं। चूंकि चुनाव दलीय आधार पर हो रहा है, इसीलिए यहां प्रत्याशियों के व्यक्तित्वों और उनकी पृष्ठभूमि का मामला महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। इसका कारण यह भी है कि चूंकि दोनों प्रत्याशी रिश्ते में देवर भाभी हैं इसलिए उनके व्यक्तित्व और पृष्ठभूमि समान है।

इस स्थिति के चलते कहीं न कहीं भाजपा प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह तिलमिलाए हुए हैं और वे मुस्लिम प्रत्याशियों को खरीद लेने के सार्वजनिक आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं। इसके विपरीत प्रत्याशियों की स्थिति को अपने अनुकूल कर लेने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी किरण गौरव चौधरी के पति डॉ गौरव चौधरी मतदाताओं को आपसी भाईचारे, शांति-सद्भाव और एकता के सूत्र का हवाल देकर जनमत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। चुनाव दिलचस्प मोड पर है मुकाबला कड़ा है। दोनों ही प्रत्याशियों को एक-एक वोट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।