अपने इस वैश्य चेहरे को पार्टी ने हाल ही में बनाया है जिला उपाध्यक्ष
एम हसीन
रुड़की। इसी साल के शुरुआती महीने में हुए निकाय चुनाव में भाजपा मेयर टिकट के 38 दावेदारों में सोमा गुप्ता भी एक थीं। वे गंभीर दावेदार थी और किसी और दावेदार की दावेदारी को इंडोर्स करने के लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया था, इसका खुलासा हाल ही में तब हुआ जब भाजपा ने अपनी जिला कार्यकारिणी का गठन किया और सोमा गुप्ता के पति सौरभ गुप्ता को जिला उपाध्यक्ष बनाया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मूल रूप से सौरभ गुप्ता ही राजनीति करते हैं। मेयर का पद चूंकि महिला के लिए आरक्षित था, इसलिए अपनी पत्नी का आवेदन प्रस्तुत करना सौरभ गुप्ता की मजबूरी बन गया था, हालांकि यह भी सच है कि चुनाव के बाद उन्होंने अपनी पत्नी सोमा गुप्ता को विथड्रॉ नहीं किया है, बल्कि हर बैनर-पोस्टर पर अपने पति के साथ उनकी मौजूदगी नजर आती है। हो सकता है कि सोमा गुप्ता भाजपा के किसी विंग में खुद भी पदाधिकारी बना दी गई हों। यह इस बात का प्रमाण है कि भविष्य में महिला के लिए आरक्षित हो तो सौरभ गुप्ता अपनी पत्नी को उन्हीं के बायो डाटा के आधार पर आगे बढ़ा सकें। बहरहाल, सवाल यह है कि मेयर टिकट पर दावा कर चुके सौरभ गुप्ता क्या विधानसभा टिकट पर भी दावा करेंगे? क्या वे ऐसा कर सकते हैं।
जहां तक सवाल बनिया राजनीति का है, तो भाजपा अपना एक टिकट इस वर्ग से आने वाली अनीता अग्रवाल को दे चुकी है और दूसरा टिकट भी वह इसी वर्ग को आसानी से नहीं दे देगी, वह भी तब, जब पंजाबी बिरादरी के प्रदीप बत्रा यहां सीटिंग विधायक हैं। लेकिन पेंच कई हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि किसी बिरादरी को या किसी व्यक्ति को पार्टियां प्रतिनिधित्व के रूप में आमतौर पर 10 से ज्यादा वर्ष से ज्यादा का समय प्रदान नहीं करती। सुरेश जैन के रूप में जैन, अगरचे उन्हें बनिया न माना जाए तो, को 10 वर्ष का ही समय मिला था। तीसरी बार भाजपा में भी उनकी हार हुई थी। पंजाबी बिरादरी और प्रदीप बत्रा इन अर्थों में सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें तीसरा टर्म और 15 वर्ष मिल गए हुए हैं, हालांकि 2022 में वे हारते-हारते जीते थे। इसी कारण इस बार बहुत मुमकिन है कि उनका टिकट कट जाए या फिर टिकट के बावजूद वे चुनाव हार जाएं।
रुड़की सीट पर अगर भाजपा प्रदीप बत्रा का विकल्प तलाशती है तो अहम होगा कि क्या वह पंजाबी वर्ग में ही विकल्प ढूंढेगी या पंजाबी का भी विकल्प ढूंढा जाएगा? दूसरा सवाल यह है कि अगर वह पंजाबी बिरादरी का भी विकल्प तलाशती है तो क्या उस बनिया वर्ग का नंबर आ सकता है जिसे पहले मेयर की सीट दी जा चुकी है? जिस प्रकार राज्यसभा सांसद नरेश बंसल रुड़की में सक्रिय दिख रहे हैं उससे लगता तो यही है कि यहां बनिया वर्ग को प्रतिनिधित्व मिल सकता है, लेकिन नरेश बंसल और सौरभ गुप्ता की शख्सियतों-हैसियतों के बीच जमीन-आसमान का अंतर है। नरेश बंसल की हैसियत टिकट मांगने वालों में नहीं बल्कि टिकट देने वालों में है। फिर भी, अगर भाजपा टिकट बनिया वर्ग को देना मंजूर करती है और नरेश बंसल टिकट क दावेदार नहीं होते तो क्या सौरभ गुप्ता का नंबर आ सकता है?
वैसे भाजपा ने मेयर टिकट के दावेदार रहे जिन लोगों को संगठन में जिम्मा सौंपा है राजपूत बिरादरी के अक्षय प्रताप सिंह भी शामिल हैं। होने को यह भी हो सकता है कि सौरभ गुप्ता समेत जिन लोगों को संगठन में दायित्व मिले हैं उनकी और उनकी बिरादरी की टिकट पर दावेदारी खत्म की गई हो। ऐसा होता है तो बाजी चेरब जैन के नाम जा सकती है जिन्हें कि संगठन में समायोजित नहीं किया गया है। ध्यान रहे कि चेरब जैन भी मेयर टिकट के दावेदार थे। लेकिन अहम सवाल यह है कि अगर सौरभ गुप्ता को टिकट मिलता है तो क्या वे चुनाव कांटेस्ट करना पसंद करेंगे?
