कभी मुख्यमंत्री तो कभी सांसद की कर रहे परिक्रमा
एम हसीन
रुड़की। परिस्थितियां विपरीत हों तो रास्ते भी विसंगतियों से ही निकलते हैं। खानपुर और लक्सर के दो-दो बार विधायक रहे प्रणव सिंह चैंपियन पर यह सच्चाई पूरी तरह लागू होती है। परिस्थितियां ये हैं कि 2022 में चैंपियन ने, व्यक्तिगत रूप से, भाजपा का टिकट भी गंवा दिया था और विसंगति यह है कि अब अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए लालायित चैंपियन कभी हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत की परिक्रमा करते दिखाई देते हैं और कभी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की। सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री और सांसद के बीच 36 का आंकड़ा है और दोनों को इकठ्ठे साधने का प्रयास करने वाला मझधार का शिकार भी हो सकता है। लेकिन चैंपियन का सौभाग्य यह है कि अपनी इन्हीं उलटबांसियों से उन्होंने अगर अपने लिए मुश्किलें पैदा की हैं तो इन्हीं उलटबांसियों ने उन्हें बनाया भी था।
इतिहास गवाह है कि उत्तराखंड स्थापना के बाद जब पहले विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थी तो कभी तो चैंपियन भाजपा के मुख्यमंत्री की लंढौरा-लक्सर में सभा करा रहे थे और कभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के चक्कर काट रहे थे। उनका लक्ष्य विधायक बनकर सदन में जाना था और वे इसके लिए, जिसका भी टिकट मिल जाए उसका टिकट वे चाह रहे थे। इस उलटबांसी ने उन्हें किसी भी दल का टिकट नहीं लेने दिया था। थककर उन्हें बतौर निर्दलीय चुनाव में जाना पड़ा था, और सरप्राइजिंगली, वे चुनाव जीत भी गए थे, वह भी बसपा के तत्कालीन विधायक, तत्कालीन कैबिनेट मंत्री और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस समय के बड़े सियासतदाँ क़ाज़ी मुहिउद्दीन को हराकर। यह चुनाव उनके लिए ही नहीं क़ाज़ी मुहिउद्दीन के लिए भी निर्णायक साबित हुआ था, जिनका करियर वहीं खत्म हो गया था और चैंपियन के लिए भी जो न केवल लक्सर की राजनीति पर बल्कि गुर्जर राजनीति पर भी छा गए थे। लेकिन उलटबांसी चैंपियन की किस्मत में है। विधायक बनने के बाद उनकी नजर मंत्री पद पर लग गई। पार्टियों ने उन्हें कई बार कैबिनेट मंत्री का दरजा देकर लुभाने का प्रयास किया, लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए। आखिरकार बात इतना बढ़ी कि भाजपा ने उनका टिकट भी काट दिया। टिकट उन्हीं की रानी को मिला, लेकिन यूं उनकी सीनियरिटी ब्रेक हो गई और एक बार फिर चैंपियन बैक टु स्क्वायर वन वाली पोजीशन पर आ गए। अब उनकी पहली प्राथमिकता 2027 में भाजपा का टिकट लेना है, फिर यह कोशिश करनी है कि सीधे देहरादून से ही कोई उन्हें हराने की मुहिम शुरू न हो। इसके लिए वे काेशाँ हैं। पिछले दिनों उन्होंने सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए बड़ा आयोजन किया था और अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का किया है। इन सारी चीजों से यह तो तय होता है कि चैंपियन सोचने वाले व्यक्ति हैं, किसी न किसी उधेड़बुन में लगे रहने वाले व्यक्ति हैं। मगर उनकी समस्या यह है कि वे राजा भी हैं और राजनेता भी। उनके भीतर की ये शख्सियतें अक्सर टकराती हैं। तब उनकी उलटबांसियां सामने आती हैं। लेकिन यह भी सच है कि उनकी यही विसंगति उन्हें कामयाब भी करती है।