कई वार्डों में रहना है कलियर विधायक का सीधा हस्तक्षेप

एम हसीन

रुड़की। कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद की राजनीति का कड़वा सच यह है कि वे पार्टी टिकट पर निकाय प्रत्याशी चयन की राजनीति नहीं करते। यह अधिकार वे अपने-विरोधियों को सौंपकर रखते हैं। इस कारण स्थिति यह भी बन जाती है कि वे अपनी पार्टी के प्रत्याशी के साथ कदम-ताल नहीं कर पाते। इसका नुकसान प्रत्याशी को भी होता है और पार्टी को भी। मसलन, 2019 में पूर्व मेयर यशपाल राणा के भाई रेशू राणा को कांग्रेस का टिकट तो मिल गया था लेकिन हाजी फुरकान अहमद का समर्थन नहीं मिला था। नतीजा यह हुआ था कि कांग्रेस को मेयर भी नहीं मिला था। वहीं यशपाल राणा एक बार फिर पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। सवाल यह है कि अगर उन्हें पार्टी का टिकट मिल जाता है तो क्या हाजी फुरकान अहमद उन्हें अपना समर्थन देने के लिए खुद को तैयार कर पाएंगे?

जहां तक सवाल यशपाल राणा के साथ हाजी फुरकान अहमद के संबंधों का है तो तब दोनों के बीच कोई कटुता नहीं थी तब राणा मेयर थे। 2013 में राणा को चुनाव में भी किसी न किसी स्तर पर हाजी फुरकान अहमद का समर्थन ही मिला था। इसका कारण यह है कि 2013 में कांग्रेस ने यहां अपना मेयर प्रत्याशी राम अग्रवाल को बनाया था जो पार्टी के तत्कालीन दिग्गज और वर्तमान मंगलौर विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के सहपाठी रह चुके हैं। अब चूंकि हाजी फुरकान अहमद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कैंप की राजनीति करते हैं और हरीश रावत के साथ क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का 36 का आंकड़ा है तो हरीश रावत भी यशपाल राणा को मेयर बना रहे थे और हाजी फुरकान अहमद भी। कमाल यह है कि इन्हीं यशपाल राणा के भाई रेशू राणा को 2019 में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की पहल पर ही प्रत्याशी बनाया गया था। लेकिन तब तक हाजी फुरकान अहमद के संबंध यशपाल राणा के साथ खराब हो चुके थे। तो क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने रेशु राणा को टिकट तो दिला दिया था, क्योंकि हाजी फुरकान अहमद ने टिकट की राजनीति नहीं की थी लेकिन रेशु राणा मेयर नहीं बन सके थे, क्योंकि वोट की कुंजी क़ाज़ी के नहीं बल्कि हाजी के हाथ में थी।

अब 2024 का चुनाव सामने है और साफ दिख रहा है कि हाजीपुर कान अहमद मेरे टिकट की राजनीति इस बार भी नहीं कर रहे हैं। साथ ही यह भी दिख रहा है कि महानगर में टिकट का निर्धारण या तो हरीश रावत के करने से होगा या फिर काजी निजामुद्दीन यहां प्रत्याशी का चयन करेंगे। हाल के दिनों में साफ दिखाई दिया है कि यशपाल राणा के संबंध हाजी फुरकान अहमद के साथ तो अभी खराब हैं ही, अब क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के साथ भी पहले जैसे नहीं हैं और हरीश रावत तो यशपाल राणा के धुर विरोधी हैं ही। इसके बावजूद राणा कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार इसलिए बने हुए हैं कि कांग्रेस का वोट माने जाने वाले एक बड़े धड़े पर उनका व्यक्तिगत प्रभाव कायम है। यह हकीकत उन्हें कांग्रेस टिकट की दौड़ में कितनी मदद करेगी यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस टिकट के दूसरे दावेदार सचिन गुप्ता का प्रत्यक्षत: न हाजी फुरकान अहमद के साथ कोई विरोध दिखता है और न ही क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के साथ और हरीश रावत के दम पर तो सचिन गुप्ता कांग्रेस टिकट के दावेदार हैं ही। ऐसे में सवाल यह उठता है कि हाजी फुरकान अहमद की तटस्थता सचिन गुप्ता के प्रति भी बनी रहेगी या वे उनकी पैरवी करेंगे? जाहिर है कि अगर वे पैरवी करेंगे तो इसका साइन गुप्ता को व्यापक लाभ भी होगा!