प्रदीप बत्रा की अगुवाई में ही रखेगी भाजपा जीत की आधार शिला

एम हसीन

रुड़की। चुनावी आचार संहिता लागू होने तक भाजपा टिकट के किसी भी दावेदार पर विधायक प्रदीप बत्रा की निजी प्रत्याशी होने का ठप्पा नहीं लगा है। टिकट के दावेदार के तौर पर प्रचार युद्ध में अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पछाड़ चुके चेरब जैन के होर्डिंग्स पर नगर विधायक के फोटो लगे जरूर हैं लेकिन किसी भी स्तर पर ऐसा लगता नहीं कि विधायक की ओर से उनकी दावेदारी को कोई विशेष प्रोत्साहन मिला हो। साफ शब्दों में इसे यूं कहा जा सकता है कि विधायक दावेदारों के मामले में तटस्थ हैं। इस बार उन्होंने प्रत्याशी चयन का मामला संगठन और राय शुमारी समिति के ऊपर छोड़ा हुआ है। हो सकता है कि कल प्रत्याशी के चुनाव अभियान का जिम्मा विधायक ही संभालें, लेकिन कम से कम फिलहाल वे किसी भी रूप में विवादित होने को तैयार नहीं हैं। इसी सोच के मद्दे-नजर प्रदीप बत्रा ने प्री लोकल बॉडी इलेक्शन पॉलिटिक्स से अपने-आपको पूरी तरह अलग रखा है।

प्रदीप फिलहाल सत्ता का सीधे हिस्सा हैं और निकाय चुनाव में जीत हासिल करना मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्राथमिकता हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि नगर में भाजपा की राजनीति संतरे की फांकों की तरह बंटी हुई है और विधायक भी अपने-आप में पूरी स्थानीय भाजपा नहीं हैं, जैसे कि मंगलौर, भगवानपुर, झबरेड़ा और कलियर में कांग्रेस की राजनीति चलती है। अन्य शब्दों में, नगर की राजनीति में नगर विधायक भी एक संतरे की एक फांक हैं। वे इस चीज को जानते-समझते हैं लेकिन इस बार वे कम से कम सार्वजनिक रूप से नगर में समानांतर भाजपा का संचालन करते दिखाई नहीं दे रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी के उनके विरोधी गुटों को भी उनपर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमलावर होने का मौका नहीं मिल रहा है। स्थिति यह है कि पार्टी को संगठन ही चलाता नजर आ रहा है। बेशक सामान्य तौर विधायक के मान-सम्मान का लिहाज संगठन भी कर रहा है और इतना चुनाव को मजबूती से लड़ने के लिए सत्तारूढ़ दल के लिए काफी नजर आ रहा है। वैसे माना यह जा रहा है कि प्रत्याशियों के चुनाव अभियान की अगुवाई विधायक को ही सौंपी जा सकती है। तब बेशक विधायक पर पार्टी प्रत्याशी को जिताकर लाने की जिम्मेदारी होगी और इसमें भी कोई दो-राय नहीं है कि अगर फ्री-हैंड मिलता है तो विधायक सक्षम हैं महानगर में भाजपा का मेयर बनाकर लाने में।