जिले का सबसे अधिक एलिजिबल महिला चेहरा हैं ये शिक्षिका
एम हसीन
रुड़की। अगर रुड़की मेयर पद दलित महिला के लिए आरक्षित हुआ होता तो भाजपा को कुछ सोचने की जरूरत न होती। तब पार्टी का मोस्ट एलिजिबल फेस वैजयंती माला कर्णवाल बन जाती। अब ऐसा नहीं है लेकिन “सबका साथ, सबका विकास, सबका सम्मान” की भावना के तहत अब भी अगर उन्होंने भाजपा में मेयर टिकट मांगा होता तो कोई ताज्जुब की बात न होती। खासतौर इसलिए कि जाति-पान्ति के विरुद्ध जिस प्रकार की जागृति भाजपा के भीतर आई है, जिस प्रकार भाजपा राज में करीब 75 साल बाद रुड़की के मेयर पद पर किसी महिला के आने के हालात बने हैं, जिस प्रकार अगड़े-पिछड़े वर्ग की तमाम महिला भाजपा कार्यकर्ताओं ने मेयर टिकट के लिए आवेदन किया है, उन हालात में भाजपा के किसी दलित महिला चेहरे द्वारा भी टिकट पर दावा किए जाने की अपेक्षा की जा रही थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यहां तक कि वैजयंती माला के रूप में जिले की सबसे ज्यादा एलिजिबल दलित महिला नेत्री भाजपा के झंडे के नीचे काम करती हैं। वे रहती भी रुड़की में ही हैं लेकिन उन्होंने भी आश्चर्यजनक रूप से टिकट के लिए आवेदन नहीं किया। संक्षेप में जान लें कि आजादी के फौरन बाद श्रीमती विद्या पूरी रुड़की की नगर प्रमुख चुनी गई थी; हालांकि तब नगर प्रमुख का चुनाव जनता नहीं बल्कि सभासद किया करते थे। श्रीमती विद्या पुरी के बाद कोई महिला रुड़की में नगर प्रमुख नहीं रही। यह आरक्षण का प्रताप कहें या मोदी सरकार की महिलावादी सोच, कि यह नगर किसी महिला को अपना मेयर चुनने जा रहा है।
इसी क्रम में भाजपा जिलाध्यक्ष शोभाराम प्रजापति के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर जिन 35 महिलाओं ने मेयर टिकट के लिए आवेदन किया उन सबकी अपनी योग्यता, अपनी क्षमता, अपनी सामाजिक हैसियत अपने स्थान पर है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनमें जमीनी कार्यकर्ता शामिल नहीं हैं। आवेदकों में कई महिलाएं जमीनी कार्यकर्ता हैं। मसलन, सावित्री मंगला को लिया जा सकता है जो पार्टी की जमीनी कार्यकर्ता हैं, ममता शर्मा को लिया जा सकता है जो जमीनी कार्यकर्ता हैं। लेकिन अधिकांश आवेदकों को जमीनों कार्यकर्ता तो क्या राजनीतिक कार्यकर्ता भी स्वीकार करना मुश्किल है। दूसरी बात यह कि अधिकांश के विषय में यकीनी तौर से कहा जा सकता है कि वे रुड़की के भूगोल से भी वाकिफ नहीं हैं, अधिकांश को शायद यह भी पता नहीं होगा कि किन गांवों को मिलाकर रुड़की नगर निगम का परिसीमन किया गया था। फिर भी उनका घर से निकलकर आना, टिकट पर दावा करना बड़ी बात है। बेशक इसके लिए उनकी, उनके हौसले की प्रशंसा की जानी चाहिए। चूंकि इनमें अगड़े वर्ग की सभी बिरादरियों, यथा ब्राह्मण, वैश्य, पंजाबी, राजपूत के अलावा कई पिछड़ी बिरादरियों की महिलाएं भी शामिल हैं इसलिए माना जा सकता है कि समाज जाति-पांति की भावना से ऊपर उठा है। लेकिन किसी भाजपा के किसी दलित महिला चेहरे के आवेदन के अभाव में काफी-कुछ अजीब सा लग रहा है। बेहतर होता कि वैजयंती माला इस मामले में पहल करतीं।
ध्यान रहे कि पेशे से शिक्षिका वैजयंती माला भाजपा की बेहद कर्मठ, बेहद योग्य, बेहद जुझारू, उच्च शिक्षा प्राप्त, वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं। वे जिले में पार्टी की सबसे ज्यादा सक्षम, सबसे अनुभवी, ऐसी दलित नेत्री हैं जिन्हें दलित चेहरा नहीं बल्कि दलित नेत्री ही कहा जाना युक्तिसंगत होगा। वे ऐसी नेत्री हैं जो रुड़की महानगर के इतिहास और वर्तमान से ही नहीं, यहां के भूगोल से, यहां की गलियों से, यहां के क्षेत्रफल से, यहां के सामाजिक-राजनीतिक मिजाज से बेहतर वाकिफ हैं। वे जिले के उन भाजपाईयों में से एक हैं जिन्हें उनकी सक्रियता के कारण जिले के कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक, प्रदेश के बड़े नेताओं तक और दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों सहित तमाम नेताओं तक नाम और सूरत से जानते हैं। वे उत्तराखंड गठन से भी पहले दो बार जिला पंचायत सदस्य और एक बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद की प्रत्याशी रह चुकी हैं। वे दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं। वे शायद अकेली ऐसी भाजपा नेत्री हैं जो मेयर पद की गरिमा, उसकी शक्ति, उसके अधिकार, उसके कर्तव्य, उसके प्रोटोकॉल से भली-भांति वाकिफ हैं। वे जिले की उन गिनी-चुनी महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं में एक हैं, जिनके प्रायोजक पुरुष नहीं हैं; जो जितना कुछ हैं अपने दम पर हैं, अपनी मेहनत से हैं, अपनी क्षमताओं से हैं। उन्हें इस पद के लिए आवेदन करना चाहिए था। वे आवेदन करतीं तो शायद यह भी उस लक्ष्य की ओर एक कदम होता जिसके लिए मोदी सरकार काम करती दिखाई दे रही है।