साढ़े चार दशक से पूरी कर रहे पार्टी की हर प्रकार की उम्मीद

एम हसीन

देहरादून। साढ़े चार दशक पहले राजीव महर्षि ने जब छात्र कार्यकर्ता के रूप में कांग्रेस को अपनी सेवाएं देना शुरू की थी तब राजनीति का रूप वैसा नहीं था, जैसा आज है। तब राजनीति पर न कॉरपोरेट का व्यापक प्रभाव सार्वजनिक होता था और न ही आया राम-गया राम की राजनीति को तरजीह मिलती थी। आज ये सारी चीजें काम कर रही हैं। इसके बावजूद राजीव महर्षि को उम्मीद है कि कार्यकर्ता का सम्मान अगर कहीं होता है तो कांग्रेस में ही होता है। केवल इतना ही नहीं। उन्हें यह भी उम्मीद है कि उनकी 45 की सेवाओं का सिला उन्हें भी कांग्रेस जरूर देगी। हालांकि उन्होंने ऐसा कोई स्टेटमेंट जारी नहीं किया है और कोई इंटरव्यू भी नहीं दिया है। लेकिन उनका पार्टी टिकट पर दावा करना ही इस बात का प्रमाण है कि उन्हें पार्टी से उम्मीद पूरी है। ध्यान रहे कि राजीव महर्षि देहरादून मेयर का चुनाव कांग्रेस टिकट पर लड़ना चाहते हैं और इसके लिए वे पार्टी के स्तर पर भी और जनता के बीच भी लगातार दावा कर रहे हैं।

जैसा कि सब जानते हैं कि राजीव महर्षि देहरादून में एडवर्टाइजमेंट के बिजनेस में हैं। उन्होंने इसके लिए अपनी एडवर्टाइजमेंट एजेंसी “कैटलिस्ट” की स्थापना की थी जिसका वे पूरी कामयाबी के साथ संचालन कर रहे हैं। वे देहरादून एडवर्टाइजमेंट एजेंसी एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। लेकिन यह उनकी इकलौती पहचान नहीं है। उनकी पहचान यह भी है कि वे फिलहाल उत्तराखंड कांग्रेस के मीडिया कॉर्डिनेटर हैं। जाहिर है कि उनका पद बेहद ग्लैमरस है लेकिन महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी का भी है। इसीलिए यह उल्लेख किया जाना जरूरी है कि वे इस पद पर 2022 में आए थे और एकाएक नहीं बल्कि, धीरे-धीरे, कदम डर कदम चलते हुए, सीढ़ी डर सीढ़ी चढ़ते हुए आए हैं। जैसा कि हाई कमान के समक्ष प्रस्तुत किए गए उनके बायो डाटा में उल्लेख है कि उन्होंने कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता 1979 में पार्टी के छात्र संगठन में ली थी। बेशक 79 का साल कांग्रेस के लिए संघर्ष का साल था, जब इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस देश और उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही थी। यानि राजीव महर्षि कांग्रेस के बुरे दिनों के साथी हैं। यह बात एक दूसरे तरीके से भी साबित होती है।

उत्तराखंड गठन से पहले कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 89 में प्रभावहीन हो गई थी। इस दौरान तमाम लोग, खासतौर पर मैदानी जनपदों में, दूसरे दलों में चले गए थे। लेकिन राजीव महर्षि पार्टी के इस बुरे दौर में भी उसके साथ रहे। और अब, जबकि पार्टी को सत्ता से विदा हुए 8 साल हो चुके हैं, भी वे कांग्रेसी ही हैं; अर्थात उनकी पार्टी की सदस्यता निर्बाध है। यह बहुत बड़ी बात है। खासतौर इसलिए कि साढ़े चार दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में राजीव महर्षि ने पार्टी के बुरे दिनों में संघर्ष तो किया, लाठियां तो खाई, जेल तो गए, दरियाँ तो बिछाई, नेताओं की अगुवानी तो की लेकिन पार्टी जब सत्ता में आई तो उन्हें इसका कोई ईनाम अभी नहीं मिला। वे पार्टी संगठन में तो तरक्की करते हुए अपनी मौजूदा पोजीशन तक पहुंचे लेकिन सत्ता का हिस्सा उन्हें कभी नहीं बनाया गया। ऐसे में जब वे मेयर का टिकट मांग रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से मांग तो अपना हक ही रहे हैं। अब यह पार्टी को तय करना है कि उनकी उम्मीद को पूरा करे ताकि कार्यकर्ताओं का पार्टी के प्रति विश्वास बढ़े। इस बीच यह बताया जाना भी जरूरी है कि राजीव महर्षि अपनी पार्टी ही नहीं बल्कि देहरादून के समूचे राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के लिए एक बेहद जाना-पहचाना नाम हैं। मीडिया की हर श्रेणी में उन्हें अदब के साथ देखा जाता है। और अब जनता के बीच तो वे जा ही रहे हैं।