खड़गे-राहुल के साथ सीधा संवाद करने की कितने कांग्रेसियों की है हैसियत?

एम हसीन

रुड़की। बात केवल रुड़की क्षेत्र की नहीं बल्कि पूरे हरिद्वार जनपद की है। यहां 90 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ताओं की राजनीति अपने क्षेत्र के विधायक या नगर पालिका/नगर पंचायत अध्यक्ष अथवा जिला पंचायत सदस्य पर जाकर खत्म हो जाती है। कुछ के संपर्क आगे बढ़ते हैं लेकिन देहरादून जाकर पूरे तौर पर खत्म हो जाते हैं। हरिद्वार में ऐसे कांग्रेसी बिरला ही हैं जिनका कोई संपर्क कहीं दिल्ली में भी हो। जिन स्थानीय कांग्रेसियों, मसलन एस पी सिंह इंजीनियर आदि, के दिल्ली में भी संपर्क थे उन्हें सुनियोजित तरीके से भाजपा में धकेल दिया गया है। इन हालात में राहुल गांधी एक नए दृष्टिकोण, एक नए विचार के साथ कांग्रेस के संगठन का सृजन कर रहे हैं। वे घोषित कर चुके हैं कि किसी भी संगठन का जिलाध्यक्ष अपने क्षेत्र के विधानसभा टिकट तय करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष और नेता विधायक दल के साथ तीसरे सदस्य के रूप में बैठेगा। जब दायित्व इतना बड़ा होगा तो जिलाध्यक्ष पद के लिए नेता भी कद्दावर चाहिए, बोल्ड चाहिए, इतना बड़ा तो जरूर चाहिए जो अपने क्षेत्र के 5 विधानसभा क्षेत्रों के सम्बन्ध में समग्र जानकारी रखता हो, वहां की समस्याओं, वहां की जरूरतों, वहां के समीकरणों, वहां के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, वहां के सामाजिक चेहरों के विषय में जानकारी रखता हो। फिर सवाल यह है कि पूरे रुड़की क्षेत्र में ऐसा कद्दावर नेता कौन होगा?

अगर हाल तक की बात करें तो ग्रामीण कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र जाती हैं। वे झबरेड़ा विधायक होने के नाते बड़ा नाम माने जा सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि वे मंगलौर या खानपुर या भगवानपुर या कलियर विधानसभा क्षेत्रों के विषय में क्या जानते हैं? वहां के कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ उनका कितना संपर्क है। और तो और, वहां मौजूद कांग्रेस विधायकों ने क्या उन्हें जिलाध्यक्ष के नाते अपने क्षेत्र में हस्तक्षेप का अवसर दिया है? सवाल यह है कि 2023 में हुए पंचायत चुनाव में जनपद क्षेत्र के पार्टी प्रत्याशियों के चयन या उनके चुनाव अभियान में उनकी कितनी भूमिका थी? फिर नगर निकाय के चुनावों में उनकी कितनी भूमिका थी? किसे उन्होंने टिकट दिया था और किसे उन्होंने विजयी बनाया था? ऐसा नहीं है कि वे इधर-उधर नहीं गए। उन्होंने झबरेड़ा नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर पार्टी प्रत्याशी को खुलकर लड़ाया था और गए वे कलियर तथा रामपुर निर्वाचन क्षेत्रों में भी थे। लेकिन उनकी उपस्थिति कितनी प्रभावशाली रही? जाहिर है कि इन सारे सवालों पर वीरेंद्र जाती चाहे विचार करें या न करें लेकिन पार्टी तो अगला जिलाध्यक्ष इन मानकों पर खरा उतरने वाला ही बनाना चाहती है। फिर सवाल यह है कि पद के मौजूदा दावेदारों में ऐसे कितने हैं?

दूसरी बात, पार्टी का जो स्ट्रक्चर राहुल गांधी खड़ा करना चाहते हैं उसके तहत जिलाध्यक्ष को प्रदेश अध्यक्ष समेत पार्टी के किसी भी प्रदेश स्तरीय नेता का पिछलग्गू बनने वाला होने की बजाय उसकी आंख में आंख डालकर बात करने वाला व्यक्ति चाहिए। सवाल यह है कि रुड़की के पांच विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की राजनीति कर रहे कितने कार्यकर्ता ऐसे हैं जो प्रदेश अध्यक्ष या किसी भी प्रदेश स्तरीय नेता की आंखों में आँखें डालकर बात करने की हैसियत रखते हैं? यह दरअसल, कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही सोचना है कि जब पार्टी संगठनात्मक बदलाव की दहलीज पर खड़ी है तो वे उसमें कहां फिट होते हैं!