वैसे फिलहाल सक्रिय तो नहीं है महानगर में कोई पंजाबी चेहरा

एम हसीन

रुड़की। गत दिवस रुड़की आए कांग्रेस के महानगर चुनाव प्रभारी शूरवीर सिंह सजवाण ने दावा किया है कि आसन्न निकाय चुनाव में पार्टी रुड़की में किसी जिताऊ और निष्ठावान कांग्रेसी को अपना प्रत्याशी बनाएगी। उनकी इस भावना के तहत सवाल उठता है कि क्या पार्टी इस बार महानगर में किसी पंजाबी को अपना प्रत्याशी बनाने जा रही है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि उत्तराखंड के इतिहास में रुड़की में कांग्रेस का केवल एक बार जीतने का रिकॉर्ड है, जब तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष (मौजूदा भाजपा विधायक) प्रदीप बत्रा को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया था और जीत दर्ज की थी। वैसे यह भी सच है कि महानगर में फिलहाल कांग्रेस का कोई पंजाबी चेहरा बहुत अधिक सक्रिय नहीं है। राजीव गांधी-संजय गांधी को अपनी गोद में खिलाने का दावा करते आए “सनातन” कांग्रेसी सुभाष सरीन भी भाजपा गमन कर सनातन का हिस्सा बन चुके हैं। केवल हंसराज सचदेवा हैं जो पंजाबी समाज में अभी भी कांग्रेस का झंडा उठाए हुए हैं, लेकिन उन्हें मौजूदा चुनाव में टिकट की दौड़ का हिस्सा नहीं माना जा रहा है। वे खुद भी बहुत अधिक सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि अगर उन्हें पार्टी टिकट ऑफर करती है तो शायद इंकार वे नहीं कर पाएंगे।

गौरतलब है कि सजवाण कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने के लिए गत दिवस रुड़की आए थे। तब उन्होंने उसी सनातन जुमले को दोहराया था जिसे उनसे पहले आए प्रदेश पार्टी सह-प्रभारी ने भी दोहराया था अर्थात टिकट निष्ठावान कांग्रेसी और जिताऊ चेहरे को दिया जाएगा। लेकिन कांग्रेसियों का यह जुमला हमेशा से जुमला ही साबित होता आया है, एक खास वर्ग को राजनीति की मुख्यधारा से बाहर करने का काम साबित होता आया है। इसकी हकीकत कुछ और है। यह है कि उत्तराखंड स्थापना के बाद अभी चार बार निकायों के, पांच बार विधानसभा के और 5 बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं। इनमें लोकसभा में केवल दो बार, विधानसभा में केवल एक बार और निकाय में जीरो बार कांग्रेस जीत पाई है। निकायों का हाल तो यह है कि पार्टी ने निष्ठावान, पुराने कार्यकर्ता को कभी टिकट दिया ही नहीं। 2003 में राजेश गर्ग को और 2013 में राम अग्रवाल को भाजपा से लाकर टिकट दिया गया था। 2008 में दिनेश कौशिक को तब टिकट दिया गया था जब वे बतौर बागी निकाय चुनाव जीतकर एक कार्यकाल पूरा कर चुके थे। 2019 में पूर्व मेयर यशपाल राणा के भाई रेशू राणा को टिकट दिया गया था। यशपाल राणा 2013 में भाजपा में पार्षद का टिकट कटने के बाद बागी हुए थे और फिर निर्दलीय मेयर का चुनाव जीते थे। फिर कांग्रेस में आए थे।

अब 2025 सामने है और यशपाल राणा पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। वे 2022 में पार्टी टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन पार्टी की हार का रिकॉर्ड उन्होंने भी बरकरार रखा था। इसलिए यह तो हो सकता है कि वे पार्टी के भीतर टिकट की लड़ाई जीत लें लेकिन चुनावी जीत की गारंटी करने की स्थिति में वे भी नहीं हैं। एक समीकरण अलबत्ता ऐसा है जो कांग्रेस को अतीत में जीत दिला चुका है। वह है पंजाबी चेहरे पर चुनाव लड़ना। लेकिन पार्टी इस रास्ते पर शायद नहीं बढ़ पाएगी। यह इससे जाहिर है कि अतीत में उसने अपने पंजाबी चेहरों का मनोबल तोड़कर उन्हें चुन-चुनकर घर बैठाया है। आज केवल हंसराज सचदेवा हैं जो पार्टी के पंजाबी झंडाबरदार हैं। लेकिन इस बार वे ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। इस मामले में अहम यह है कि कांग्रेस के लिए पंजाबी जरूरी है लेकिन पंजाबी के लिए कांग्रेस जरूरी नहीं है। पंजाबी भाजपा को वोट देकर भी उतना ही संतुष्ट रहता है जितना कांग्रेस का पंजाबी प्रत्याशी को वोट देकर। अब इस जरूरत के तहत सजवाण पंजाबी को टिकट दिलवा पाए तो माना जाएगा कि उनके वाक्य जुमले नहीं हैं।