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“कार क्रांति” ने मुश्किल कर दिया लोगों का सड़कों पर चलना

एम हसीन

रुड़की। कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में काम करने वाली बड़ी कंपनी टी आर जी के मालिकान में से एक एस के गुप्ता जादूगर रोड के दक्षिणी सिरे पर रहते हैं। बड़े आदमी हैं। केवल पैसे से ही नहीं बल्कि सोच-विचार से भी। यही कारण है कि अगर वे सिविल लाइन बाजार में किसी काम से आते हैं तो पैदल आते हैं। कभी-कभी स्कूटर से भी आते हैं। लेकिन कार से बहुत कम, न के बराबर, आते हैं। हो सकता है कि वे भीड़-भाड़ की दिक्कत से बचना चाहते हों। लेकिन यह भी हो सकता है कि किसी को दिक्कत न देना चाहते हों। कारण कोई भी हो लेकिन जाहिर है कि बड़ी सोच का नतीजा है। ध्यान रहे कि सिविल लाइन का बाजार उनके घर से मुश्किल से एक किलोमीटर दूर है। लेकिन ऐसे लोग बिना चार पहिया गाड़ी के सिविल लाइन बाजार नहीं आते जिनके घर की दूरी एस के गुप्ता के घर की दूरी से आधी भी नहीं है। सिविल लाइन की बेशतर आबादी ऐसी ही है। लेकिन सिविल लाइन ही क्यों, सारे रुड़की शहर की स्थिति ही ऐसी है। यहां धनाढ्य लोगों की सोच तो वैसी ही नजर आती है जैसी एस के गुप्ता की; लेकिन नव-धनाढ्यों की सोच अलग है। उनके लिए अपनी शान दिखाना ज्यादा बड़ा और जरूरी काम है, फिर भले ही गाड़ी फाइनेंस की हो और उसकी किश्तें रुकी हुई हों।

डॉ मनमोहन सिंह ने पहले 1991-96 में वित्त मंत्री रहते हुए और फिर 2004-2014 में प्रधानमंत्री रहते हुए जो आर्थिक परिवेश बदला था उससे आर्थिक मोर्चे पर भले ही कितनी कामयाबी मिलती रही हो लेकिन भीतरी व्यवस्था में तमाम विषमताएं पैदा हुई हैं। ऐसा ही एक मामला सड़कों पर बढ़ी बेतहाशा भीड़ का है। ऐसा केवल आबादी बढ़ने के कारण हुआ हो, ऐसा नहीं है। सड़कों पर बड़े वाहनों के कारण भी हुआ है। अगर रुड़की की बात करें तो यहां 15 फिट लंबी कार में औसत एक आदमी सफर कर रहा है और ऐसी सैकड़ों कारें हर समय रुड़की की सड़कों पर होती हैं। इसी प्रकार 10 फिट लंबी, 8 फिट लंबी कारों की संख्या इससे भी अधिक रिकॉर्ड की जाती है। इनमें आधी कारें बाहर या देहात से आई होती हैं जबकि आधी शहर के भीतर से ही सड़कों पर आती हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि कारों का मालिक होने के बावजूद लोग शहर के भीतर स्कूटरों से सवारी नहीं करते। बेशक करते हैं। इसके बावजूद स्थिति यह है कि सारा सिविल लाइन बाजार कार पार्किंग एरिया बन गया है तो सारे बाजारों में कारों की घुसपैठ की चलते जाम लगे रहते हैं। शहर की आबादियों को बाजारों से जोड़ने वाले मार्गों, मसलन, दोनों रेलवे मार्ग, ईदगाह मार्ग, रामनगर मार्ग आदि पर वाहनों का रेंग-रेंग कर चलना एक सामान्य बात बन गई है।

समस्या यह है कि इन दिक्कतों के हल का कोई विचार किसी स्तर पर मौजूद नहीं है। न जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देने को तैयार हैं और न ही मशीनरी के स्तर पर कोई विचार किया जा रहा है।