पार्टी सृजन अभियान की बैठक में पहुंचे बिन बुलाए, इस बार संगठन की राजनीति में भी दिखाया हस्तक्षेप का इरादा
एम हसीन
रुड़की। पूर्व मेयर यशपाल राणा की अपनी चाल और अपना चरित्र है। उनके राजनीतिक फैसले वक्त की जरूरत के हिसाब से नहीं होते बल्कि अपनी चाल और अपने चरित्र को कायम रखने के लिए होते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके विषय में क्या सोचते हैं। उनकी यह अदा नगर के एक बहुत बड़े वर्ग को पसंद आती है। यह बेवजह नहीं है कि इसी साल के शुरू में हुए निकाय चुनाव में वे जब अपनी पत्नी श्रेष्ठा राणा को बतौर निर्दलीय मेयर प्रत्याशी लेकर मैदान में आए तो रुड़की विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले 20 वार्डों में उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों को हराया। बाहरी रुड़की में पड़ने वाले बाकी 20 वार्डों में उन्होंने कांग्रेस को जमींदोज कर दिया और भाजपा के मुकाबले वे मामूली अंतर से हारे।
बेशक यह उपलब्धि हासिल करने के लिए उन्हें कांग्रेस से निष्कासन झेलना पड़ा। और यह यशपाल राणा के ही बूते का काम था कि जब कांग्रेस ने नए सिरे से संगठन खड़ा करने की कवायद के तहत सृजन अभियान शुरू किया और उसकी बैठक शुरू हुई तो बिना बुलाए मेहमान की तरह यशपाल राणा अपने समर्थकों के साथ बैठक में पहुंच गए। इस बीच उनके समर्थकों ने “हमारा विधायक कैसा हो, यशपाल राणा जैसा हो” के नारे भी लगाए। उन्होंने सृजन अभियान के प्रभारी राव नरेंद्र सिंह से भेंट भी की। यूं अपनी हाजरी दर्ज कराने के बाद वे वापिस लौट आए। अर्थात, उन्होंने सीन तो क्रिएट किया लेकिन मर्यादित सीन क्रिएट किया।
रुड़की क्षेत्र में कांग्रेस की राजनीति उसके प्रत्याशी से निर्धारित होती है। लेकिन रुड़की नगर में ऐसा नहीं हो रहा था। 2022 का विधानसभा चुनाव रुड़की में कांग्रेस के टिकट पर यशपाल राणा लड़े थे और बेहद मामूली अंतर से हारे थे। ऐसे में पार्टी की परंपरा के अनुसार होना यह चाहिए था कि नगर क्षेत्र में पार्टी की कमान यशपाल राणा के ही हाथ में रहती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं था। चुनाव के बाद पार्टी ने जब संगठन खड़ा किया था तो राजेंद्र चौधरी को महानगर अध्यक्ष बना दिया था। राजेंद्र चौधरी की नियुक्ति से यशपाल राणा की सहमति नहीं थी। दूसरी ओर राजेंद्र चौधरी अपनी पहचान एक सक्रिय कांग्रेसी के रूप में बनाने के लिए बेचैन थे। उन्होंने इसी के तहत काम किया तो वे पार्टी के अधिकांश बड़े चेहरों को नाराज़ कर बैठे। दूसरी ओर यशपाल राणा को भी महसूस हुआ कि जब वे चुनावी राजनीति करते हैं तो पार्टी की पूरी राजनीति ही उनके हिसाब से होनी चाहिए। इसी सोच के तहत शायद उन्होंने संगठन की कमान अपने हाथ में लेने की कवायद शुरू की है और सृजन अभियान में बिन बुलाए शिरकत की है। अब दो बातें अहम हैं। एक, यशपाल राणा कांग्रेस से निष्कासित चले आ रहे हैं। जब तक उनकी पार्टी में वापसी नहीं हो जाती तब तक यह सारी कवायद बेकार है। दूसरी बात यह कि 25 वर्षों के इतिहास में यशपाल राणा अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने हर मौके पर कांग्रेस को सम्मान से हार दिलाई। उनका पार्टी को जीत दिलाना अभी बाकी है, लेकिन पार्टी उन्हें यह मौका देगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।