फिलहाल विधायक वीरेंद्र जाती और राजेंद्र चौधरी संभाल रहे इन पदों की जिम्मेदारी
एम हसीन
रुड़की क्षेत्र की छ: में से चार सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। अगर स्थानीय कांग्रेसी चाहते तो रुड़की और खानपुर पर भी उनके विधायक होते। यह इसी से जाहिर है कि रुड़की सीट पर पार्टी के यशपाल राणा महज दो हजार वोटों से हारे थे और तब स्थानीय कांग्रेस का लगभग हर चेहरा भाजपा के प्रदीप बत्रा का गुण गा रहा था। कोई बड़ी बात नहीं कि ऐसा जिले के बड़े कांग्रेसी महंतों के संरक्षण में ही हो रहा था। वे महंत जिनकी पकड़ पार्टी पर देहरादून से लेकर दिल्ली तक है। इन्हीं महंतों ने खानपुर की राजनीति टिकट वितरण पर ही तय कर दी थी। वहां विधायक का चेहरा पहले ही तय कर लिया गया था और अंत में टिकट बसपा से लेकर सुभाष चौधरी के रूप में एक ऐसे व्यक्ति को दे दिया गया था जो चुनाव पूर्व एक दिन भी क्षेत्र में नहीं गया था। यह स्थिति बेवजह नहीं है। वजह यह है कि रुड़की क्षेत्र की कांग्रेस की राजनीति में संगठन का कोई महत्व नहीं है, कोई मोल नहीं है, कोई पहचान नहीं है। चार विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के विधायक हैं और विधायक ही “पार्टी” हैं। वे ही संगठन हैं और वे ही कार्यकर्ता।
ऐसा नहीं कि कांग्रेस के नेताओं ने संगठन को लेकर “अच्छे दिन” नहीं देखे। जब एस पी सिंह ने रणविजय सिंह सैनी को जिलाध्यक्ष बनाया था तब पूरे जिले के कार्यकर्ताओं को एक मजबूत मंच मिला था। फिर यशपाल आर्य ने चौधरी राजेंद्र सिंह को जिलाध्यक्ष बनाया था तो और भी अधिक मुखरता से कांग्रेस का जलवा दिखाई दिया था। तब शायद ऐसा पूरे प्रदेश में हुआ था। यही कारण है कि 2007 का विधानसभा चुनाव सामान्य रूप से हारने के बाद पार्टी ने 2012 में सत्ता में वापसी की थी। लेकिन 2017 तक संगठन खत्म हो गया था। हरिद्वार में ही पार्टी में जिले को दो हिस्सों में तोड़ दिया था और चार संगठन प्रमुख, दो ग्रामीण क्षेत्रों के जिलाध्यक्ष और दो नगरीय क्षेत्रों के महानगर अध्यक्ष बना दिए गए थे।
फिर जनपद स्तर पर पार्टी के एक सूत्र में बंधने की कोई वजह ही नहीं रह गई थी। ऐसा कोई बड़ा पद संगठन में बाकी नहीं रहा था जिसे लेकर जिले भर के कद्दावर कांग्रेसी पार्टी में मौजूद रहते और अपने लिए संभावनाएं बनाते। चूंकि विधानसभा स्तर पर रुड़की क्षेत्र में प्रत्याशी के रूप में चेहरे रिपीट होते आ रहे हैं तो किसी के लिए विधानसभा स्तर की राजनीति की गुंजाइश तो बाकी है ही नहीं, लोकसभा की भी कोई गुंजाइश नहीं है। प्रदेश स्तरीय नेता माने जाने वाले पार्टी के जिन बड़े महंतों को नाज था कि वे अपने चेहरे पर न केवल हरिद्वार और रुड़की जिला संगठनों को एक सूत्र में बांध लेंगे, पार्टी से कोई नतीजा हासिल कर लेंगे वे हरिद्वार और रुड़की जनपद में इतना नहीं हारे थे जितना ऊपर दूसरे जनपदों में जाकर हारे। लोकसभा टिकट को लेकर चूंकि जिले में किसी के लिए कोई संभावना नहीं रही तो तमाम कद्दावर कांग्रेसी या तो सीधे भाजपा में चले गए या फिर पर्दे के पीछे रहकर भाजपा के लिए राजनीति करने लगे। कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि कभी जिला कांग्रेस का बड़ा नाम रहे एस पी सिंह इंजीनियर और चौधरी राजेंद्र सिंह दोनों ही भाजपा में हैं। इस कड़ी में और भी नाम लिए जा सकते हैं।
लोकसभा क्षेत्र को तीन जिलों में बिखराकर पूरे प्रदेश का नेता होने का दावा करने वाले नेताओं की स्थिति सबसे ज्यादा दिलचसों हुई। हरिद्वार और रुड़की जिलों ने तो फिर भी 2022 में पार्टी को पांच विधायक दे दिए थे और भाजपा को तीन सीटों पर महदूद कर दिया था, प्रदेश बाकी जिलों से तो पार्टी महज 14 विधायक ही लेकर आ पाई थी। इस स्थिति ने स्थानीय विधायकों को भी अगर प्रेरित किया कि वे पार्टी को अपनी जेब में रखें तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। यही स्थिति यहां बनी हुई है और भविष्य में भी यही स्थिति बनी रहने वाली है। विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन और विधायक हाजी फुरकान ही नहीं विधायक वीरेंद्र जाती और विधायक ममता राकेश भी यह अफॉर्ड नहीं कर सकते कि ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर कोई प्रभावशाली चेहरा, मसलन, मोहम्मद अयाज या सेठपाल परमार या ठाकुर वीरेंद्र सिंह या परवेज़ अहमद या नासिर परवेज या यासर अराफात या राव नौ बहार अली या उदय पुंडीर आदि में से किसी को नियुक्ति मिल जाए। ज्यादा संभावना इसी बात की है कि कोई वीरेंद्र जाती जैसा अकर्मण्य जिलाध्यक्ष ही रुड़की ग्रामीण कांग्रेस को मिलने वाला है। यही स्थिति रुड़की महानगर कांग्रेस की है। रुड़की में महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेन्द्र चौधरी केवल रुड़की क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि मंगलौर विधानसभा क्षेत्र की ग्रामीण राजनीति के लिए भी अहम हैं। क़ाज़ी निज़ामुद्दीन को यही रास आएगा कि रुड़की महानगर में राजेंद्र चौधरी को ही दोहराया जाए। वीरेंद्र रावत गुट की चली और कोई बदलाव आया तो इतना होगा कि सचिन गुप्ता को अवसर मिल जाए। अहम यह है ग्रामीण जिलाध्यक्ष राजेंद्र चौधरी को भी शायद ही बनाया जा सके। बाकी कलियर, भगवानपुर, मंगलौर और खानपुर आदि क्षेत्रों में तो शायद ही विधानसभा स्तरीय अध्यक्ष बनें। बने तो वे औपचारिक ही होंगे।