नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने पिछले चुनाव में किया था वादा

एम हसीन

रुड़की। पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय लिए हैं जिन्हें मील का पत्थर कहा जा सकता है, जो ऐतिहासिक हैं। मिसाल समान नागरिक संहिता की ली जा सकती है। लेकिन सरकार के ऐसे अधिकांश निर्णय राज्य स्तरीय मुद्दों पर आधारित रहे हैं या फिर राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की जाने वाली आवश्यकता के मद्देनजर राज्य स्तर पर की गई शुरुआत। क्षेत्रीय भावना के अनुरूप ऐसे निर्णय राज्य सरकार ने अभी या तो लिए नहीं हैं या फिर घोषित रूप से नहीं लिए हैं। मिसाल रुड़की को जिला बनाने की मांग की संदर्भ में ली जा सकती है। यह मांग राज्य गठन के समय से ही उठती रही है और अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है, हालांकि इस पर पक्ष-विपक्ष दोनों की ही सहमति देखने में आती रही है।

जैसा कि सब जानते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे प्रदीप बत्रा ने वादा किया था कि वे रुड़की को जिला बनवाएंगे। तब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो रुड़की को जिला बनाने के लिए काम किया जाएगा। इससे पहले 2010 में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने भी प्रदेश में नए जिले बनाने के प्रस्ताव पर काम किया था लेकिन फिर प्रस्ताव वापिस ले लिया गया था। वैसे 2012 में सत्ता में आने के बाद विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने हरिद्वार जिले के विभाजित कर रुड़की को जिला तो नहीं बनाया था लेकिन रुड़की तहसील को विभाजित कर भगवानपुर और नारसन के रूप में दो नई तहसीलों का गठन कर दिया था, जिनमें नारसन को तहसील बनाए जाने का प्रस्ताव बाद में निरस्त कर दिया गया था जबकि भगवानपुर नई तहसील के रूप में गठित हो गया था। रुड़की को जिला बनाने का फैसला पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली मौजूदा भाजपा सरकार करेगी या नहीं यह अलग बहस का मुद्दा है, अहम बात यह है कि इस क्षेत्र में भाजपा की कमज़ोर स्थिति के चलते यह फैसला भाजपा के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।

ध्यान रहे कि हाल के निकाय चुनाव में इस क्षेत्र के 10 में 9 निकायों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। इसी प्रकार पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की छह में से 5 सीटों पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। तब महज रुड़की सीट पर पार्टी के प्रदीप बत्रा विजयी हुए थे। बाकी 5 में से तीन सीटों पर उसे कांग्रेस ने हराया था जबकि एक सीट पर बसपा ने और एक पर निर्दलीय ने। तब उसे इनमें से 2017 में जीती दो सीटें पार्टी को गंवाना पड़ी थी। बाद में बसपा की सीट पर उप-चुनाव हुआ था तो पार्टी ने उसे जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई थी, लेकिन वह जीत नहीं पाई थी। अब निकाय चुनाव में उसे मिली जबरदस्त हार से यह स्पष्ट हुआ है कि 2027 के मद्देनजर भी पार्टी के हालात अच्छे नहीं हैं। ऐसे में सरकार पर इस बात का दबाव है कि वह क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता दे ताकि उसकी संभावनाओं में सुधार हो सके। ऐसे क्षेत्रीय मुद्दों में रुड़की को जिला बनाने का मामला भी शामिल है। अहम यह है कि स्थानीय भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा इसके लिए वचनबद्ध भी हैं और अब इसकी मांग भी उठने लग गई है।