बेवजह “उमेश कुमार” से “उमेश शर्मा” नहीं हो गए हैं खानपुर विधायक

एम हसीन

रुड़की। खानपुर विधानसभा क्षेत्र में मौजूदा विधायक उमेश कुमार को अगर राजनीति करना है तो उन्हें हर मामले में अपने-आपको पूर्व विधायक प्रणव सिंह से ज्यादा दबंग दिखाना ही होगा। उनके कमजोर पड़ने का मतलब होगा कि उन्हें अपना बिस्तर खानपुर से समेटना होगा। उमेश कुमार ऐसा नहीं करने जा रहे हैं यह उनके तेवरों से जाहिर है। लेकिन यह सवाल एक बार फिर सामने आकर खड़ा हो गया है कि उमेश कुमार का लक्ष्य क्या केवल खानपुर में 2027 का चुनाव जीतना मात्र है या लक्ष्य इससे बड़ा है? क्या वह लक्ष्य हरिद्वार जिले के लिए नया ब्राह्मण नेतृत्व तय करना है? क्या पूरे प्रकरण की बुनियाद में यही “तत्व” मुख्य रूप से कार्य कर रहा है?

जहां तक सवाल चैंपियन का है तो वे अभी तक हरिद्वार जिले के लोकप्रिय और सर्वदल स्वीकार्य गुर्जर नेता रहे हैं, यह उनका इतिहास बताता है। मसलन, उन्होंने निर्दलीय विधायक के रूप में कैरियर शुरू किया था और फिर दो विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। 2015 में वे भाजपा में आ गए थे और 2017 का चुनाव वे भाजपा के टिकट पर ही जीते थे। तब वे चौथी बार विधायक निर्वाचित होने वाले अकेले पिछड़े वर्ग के नेता बन गए थे और उन्होंने हरिद्वार के लोकप्रिय, स्थापित ब्राह्मण नेता, भाजपा विधायक मदन कौशिक की बराबरी भी कर ली थी जो कि 2017 में चौथी बार विधायक निर्वाचित हुए थे। तब सरकार भाजपा की बनी थी और मदन कौशिक कैबिनेट मंत्री ही नहीं बने थे बल्कि सरकार में हासिल अपने अधिकारों के चलते तब सुपर चीफ मिनिस्टर भी कहलाए थे। उनकी उस सरकार पर कितनी गहरी छाप और पकड़ थी इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था तो उनके साथ मदन कौशिक को भी हटाया गया था। यूं त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ हटाए जाने वाले वे अकेले कैबिनेट सदस्य थे; हालांकि उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कम्पनसेट किया गया था। उनकी अगुवाई में ही भाजपा ने 2022 का चुनाव लड़ा था।

लेकिन इससे काफी पहले, सूबे में सरकार का मुखिया परिवर्तित होते ही, खानपुर के समीकरण बदल गए थे। चैंपियन द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार के साथ की गई अभद्रता को पत्रकारों के सम्मान का सवाल बनाकर संघर्ष करने के लिए उमेश कुमार खानपुर में अवतरित हो चुके थे। उन्होंने अपनी साधन संपन्नता का क्षेत्र में एक साल तक भरपूर मज़हिरा किया था और खुद को चैंपियन से ज्यादा दबंग साबित कर दिया था। इस बीच चैंपियन अपने अंदाज में राजनीति करते हुए वहां पहुंच गए थे जहां भाजपा 2022 में उनका टिकट काटने पर मजबूर हो गई थी। टिकट उनकी पत्नी रानी देवयानी को मिला था जो कि उमेश कुमार के सामने हार गई थीं।

एक ओर यह सब हुआ था, दूसरी ओर भाजपा हरिद्वार जिले में अपनी 5 सीटें हार गई थी। यूं हारने वाले भाजपा विधायकों में एक तत्कालीन कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद भी थे, जो कि तब भी हरिद्वार में मदन कौशिक का रिप्लेसमेंट बने थे और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खास थे। लेकिन यह बड़ी घटना नहीं थी। बड़ी घटना थी खटीमा सीट पर मुख्यमंत्री रहते हुए खुद पुष्कर सिंह धामी का चुनाव हार जाना। यही वह तत्व था जिससे पार्टी हाइकमान की निगाह में मदन कौशिक के क्रेडिएंशियल को तगड़ा झटका लगा और राज्य में मदन कौशिक विरोधी भाजपा लॉबी को मौका मिला कि वह मदन कौशिक को पूरे तौर निपटा ले। इसी मुहिम का हिस्सा उमेश कुमार 2022 में भी बने थे लेकिन तब वे “उमेश शर्मा” के रूप में नहीं बल्कि “उमेश कुमार” के रूप में अवतरित हुए थे; जबकि अब वे न केवल “उमेश शर्मा” के रूप में खुद को बढ़िया करके प्रोजेक्ट भी कर रहे हैं, बल्कि उनकी लोकप्रियता को नए आयाम मिल रहे हैं। ब्राह्मण समुदाय के लोग उनके सम्मान के लिए प्रशासन की लाठियां खा रहे हैं, मुकदमे झेल रहे हैं।

यह बेहद दिलचस्प बात है कि उमेश कुमार के विधायक आवास पर 26 जनवरी को गोलीबारी करके स्थापित “उद्दंडी” पूर्व विधायक चैंपियन जेल तो चले गए हैं, लेकिन वे जेल से ही गुर्जर पंचायत आयोजित न करने की अपील भी कर रहे हैं। इसके बावजूद गुर्जर मान नहीं रहे हैं, चैंपियन के पक्ष में आंदोलित हैं। दूसरी ओर उमेश कुमार सर्व दलीय पंचायत के नाम पर पंचायत भी बुला रहे हैं और पंचायत में जुटे उनके समर्थक पुलिस पर पथराव भी कर रहे हैं, लाठियां भी खा रहे हैं और अपने खिलाफ मुकदमे भी करा रहे हैं। ध्यान रहे कि उमेश कुमार के पक्ष में पंचायत करने के लिए जुटे जिन लोगों के खिलाफ मुकदमे कायम हुए उनमें ब्राह्मण समुदाय के लोग पहली एफ आई आर में अव्वल सफ़ में नामजद किए गए हैं। जाहिर है कि ब्राह्मण समुदाय के लोग पुलिस की लाठियां खायेंगे तो चैंपियन के गुण तो गायेंगे नहीं। लेकिन चैंपियन मसला ही नहीं हैं। वे स्थापित गुर्जर नेता हैं इसका इतिहास गवाह है। इसीलिए, इस सवाल के बीच की गुर्जरों को आक्रामक रुख कायम रखने के लिए कौन उकसा रहा है, अहमियत इस बात की है कि जिले के लगभग सभी भाजपाई गुर्जर दम साधे मामले को देख रहे हैं। ठीक यही स्थिति मदन कौशिक की है। हरिद्वार नगर निगम का चुनाव शानदार तरीके से जीतकर आए मदन कौशिक खानपुर प्रकरण की पृष्ठभूमि को समझ तो रहे हैं लेकिन बोल कुछ नहीं पा रहे हैं। दूसरी, उमेश कुमार हैं कि वीडियो पर वीडियो जारी कर रहे हैं। इससे कुछ तो साबित होता ही है।