रामपुर नगर पंचायत जीतकर आम चेहरे मोहरे वाले परवेज आलम ने लिखी कलियर विधानसभा के भावी चुनाव की पटकथा

एम हसीन

रुड़की। बसपा विधायक हाजी शहजाद ने कलियर में हाजी फुरकान को 2011 में ग्राम पंचायत के चुनाव में तब भी घेरा था जब अभी हाजी फुरकान कलियर विधायक नहीं बने थे। तब हाजी शहजाद ने अब्दुल वहीद उर्फ भूरा प्रधान को मोहरा बनाया था और हाजी फुरकान अपनी प्रधानी हार गए थे। फिर हाजी फुरकान 2012 में विधायक बने और कलियर सीट पर हाजी शहजाद को हराकर ही बने। 2017 में एक बार फिर हाजी शहजाद हारे और हाजी फुरकान जीते। 2022 में हाजी शहजाद ने कलियर का मैदान छोड़कर लक्सर में आशियाना बनाया। लेकिन कलियर विधानसभा क्षेत्र में उनका हस्तक्षेप बना रहा। तब से अभी तक परम्परा यही थी कि भूरा प्रधान कलियर विधानसभा क्षेत्र में हाजी शहजाद का मोहरा थे। लेकिन इस बार कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद के साथ साथ भूरा प्रधान ने भी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोई ऐसा वक्त भी आएगा जब लक्सर विधायक हाजी शहजाद उन्हें उनके घर यानि रामपुर में ही सामूहिक रूप से घेर लेंगे। अहम यह है कि हाजी शहजाद ने यह कामयाबी पूरी खामोशी के साथ हासिल की और दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपनी इस मुहिम को कामयाब बनाने के लिए निर्दलीय विधायक उमेश कुमार का अपने पक्ष में कामयाब इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं किया। हालांकि हाजी फुरकान के चुनाव परिणाम का विश्लेषण करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि वे हारे अपने फैसलों और अपनी कमियों से ही। अगर वे अपने लोगों के बीच बगावत के हालात न पैदा होने देते तो बात इतनी खराब भी नहीं होती।

जैसा कि सब जानते हैं कि अपने गृह क्षेत्र रामपुर में नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए हाजी फुरकान ने अपने समर्थकों को नजर अंदाज कर अपनी पत्नी शाहजहां को बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में उतारा था। उनके मुकाबले के लिए बसपा ने अब्दुल वहीद उर्फ भूरा प्रधान के पुत्र इमरान को प्रत्याशी बनाया था। प्रत्याशी इस बार भाजपा ने भी यहां उतारा था। लेकिन भाजपा की यहां कोई हैसियत न पहले थी न चुनाव के बाद बनी।बहरहाल, कलियर विधानसभा क्षेत्र के कलियर और झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र के इब्राहिमपुर तथा सालियर ग्रामों को मिलकर बनी इस नगर पंचायत में कुल मतों की संख्या करीब 18 हजार थी और इनमें सबसे बड़ी संख्या करीब 11 हजार रामपुर में थी। यही कारण है कि नगर पंचायत अध्यक्ष पद के पुराने प्रतिद्वंदियों, अर्थात हाजी शहजाद और भूरा प्रधान का सामने आना लाजमी था। लेकिन उम्मीद यह थी कि हाजी फुरकान व्यक्तिगत रूप से चुनाव लड़ने की बजाए अपने किसी मजबूत समर्थक को प्रत्याशी बनाएंगे और हाजी शहजाद भी किसी मजबूत प्रत्याशी को ही अपना समर्थन देंगे।

लेकिन क्षेत्र को लेकर पहला और सबसे बड़ा उलटफेर तब हुआ जब हाजी फुरकान ने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना तय किया। इससे उनके कैंप में बगावत हो गई। इस गुट में टिकट के सबसे प्रबल दावेदार ज़ुल्फ़ान अहमद नाराज़ होकर अपने घर बैठ गए। यही फैसला उनके कई अन्य समर्थकों ने किया। यूं हाजी फुरकान का ग्रुप बिखरा तो रामपुर में टिक कई प्रत्याशी मैदान में आ गए। बदले हालात में हाजी शहजाद ने भी अपनी रणनीति बदली। वे बसपा प्रत्याशी इमरान के साथ नहीं आए। हाजी शहजाद के बिरादर भाई एक निर्दलीय हाजी महमूद उर्फ लूसा ने हाजी शहजाद का बड़ा फोटो अपने होर्डिंग्स पर लगाकर चुनाव लड़ा। लेकिन खुद हाजी शहजाद ने उनका भी प्रचार नहीं किया।

दूसरी ओर खानपुर विधायक उमेश कुमार ने यहां जुल्फिकार नामक एक निर्दलीय को चुनाव लड़ाया। उमेश कुमार ने जुल्फिकार के कार्यालय का उद्घाटन भी किया और उनके लिए क्षेत्रवासियों से वोटों की अपील भी की। नतीजा यह हुआ कि जुल्फिकार भी पूरे जीजान से चुनाव लड़े और हाजी फुरकान से ऊपर अपना स्थान सुरक्षित किया। वे तीसरे स्थान पर आए जबकि शाहजहां चौथे स्थान पर रही। भूरा प्रधान के पुत्र इमरान अली ने दूसरा स्थान सुरक्षित किया। यूं मची चौतरफा बंदरबांट में आजाद समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए हाजी शहजाद के एक बिरादर भाई परवेज आलम ने यहां शानदार जीत हासिल कर ली। पूरे मामले का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह है कि परवेज़ आलम की हाजी शहजाद का सहयोग मिला बताया जाता है।