2027 में जब वे खुद प्रत्याशी होंगे तो उनके पक्ष में नहीं बल्कि उनके खिलाफ होगी लामबंदी
एम हसीन
रुड़की। निचले स्तर पर सब कुछ साफ-सुथरा दिखाई देता है। सामान्य समाज दलों और व्यक्तियों में उसी तरह विभाजित है जैसे लोकतंत्र में होता है। लेकिन ऊपरी स्तर पर ऐसा नहीं है। चुनाव के समय मतदाता को मथने वाला, समाज को दिशा देने वाला, पॉलिटिकल प्रेसेप्शन बनाने वाला ऊपरी वर्ग सबकुछ देख रहा है और अपनी भूमिका निर्धारित कर रहा है। इसी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि निकाय चुनाव को लेकर जो राजनीति नगर विधायक प्रदीप बत्रा इस समय कर रहे हैं उसका खामियाजा उन्हें 2027 के विधानसभा चुनाव में उस समय भुगतना पड़ सकता है जब वे खुद प्रत्याशी होंगे। उन्होंने 2019 के निकाय चुनाव में मनमानी की थी। इसका नतीजा उनके सामने 2022 के चुनाव में आया था। उनका प्रबल विरोध हुआ था, लेकिन नकारात्मक परिणाम उन्हें छूकर गुजर गया था। अंतिम समय पर ऊपरी स्तर पर लामबंदी उनके पक्ष में हो गई थी। लेकिन 2022 में शायद ऐसा न हो। कारण यह है कि अब कोई और बचा ही नहीं है। जिन लोगों ने 2022 में उनकी लाज रखी थी उन्हें वे निकाय चुनाव की राजनीति में निपटा रहे हैं। जाहिर है कि 2027 तक कोई और नहीं बचेगा सिवाय प्रदीप बत्रा के। इसलिए तब आखिरी नंबर उन्हीं का होगा। खास तौर पर वे युवा जो आज निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे वे कल विधानसभा टिकट पर या विधानसभा सीट पर ही तो दावा करेंगे।
रुड़की नगर का अपना एक सोशल ट्रेंड रहा है और उसी से इसका पॉलिटिकल ट्रेंड डेवलप होता है। यहां राजनीतिक सह-अस्तित्ववाद इतना प्रबल है कि राजनीतिक लोग एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक बयान तक नहीं देते, हालांकि वे हर समय एक-दूसरे को खा लेने की फिराक में रहते हैं। जाहिर है कि यहां होता सबकुछ है लेकिन पूरी खामोशी के साथ। इसी ट्रेंड ने 2012 में सुरेश जैन को खत्म किया था और प्रदीप बत्रा को कायम किया था। इसी ट्रेंड के चलते प्रदीप बत्रा अभी तक कायम हैं। लेकिन अपने-आपको कायम रखने के फेर में वे इस ट्रेंड को कायम नहीं रख पा रहे हैं। वे सह-अस्तित्ववाद को खत्म कर रहे हैं। वे राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक रूप से भी केवल अपने-आप पर फोकस कर रहे हैं और इसके लिए वे अपने प्रतिस्पर्धियों से निपटने के लिए हिट बिलो दी बेल्ट की राजनीति कर रहे हैं और इस मामले में सत्ता के साथ अपनी निकटता को कैश कर रहे हैं। यही कारण है कि आज निकाय चुनाव की राजनीति में उनके समकक्ष वर्ग के हर चेहरे के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। जो बत्रा नहीं समझना चाहते वह यह है कि उन के समकक्ष वर्ग के सभी लोगों के सामने व्यक्तिगत संकट का यह सवाल आज निकाय चुनाव को लेकर है। आज सब खेलने के इच्छुक हैं और खिलाड़ी तय करने की आजादी बत्रा के हाथ में है। जाहिर है कि बत्रा खिलवाड़ कर सकते हैं, सबके साथ कर सकते हैं, कर रहे हैं। लेकिन कल 2027 के विधानसभा चुनाव में आज के खिलाड़ियों के लिए अस्तित्व का यह संकट नहीं होगा। कारण तब खिलाड़ी तय करने की आजादी उनके समकक्षों के हाथ में होगी और खेलने के इच्छुक प्रदीप बत्रा होंगे।