हालांकि आमतौर पर भाजपा का ठोस वोट बैंक मानी जाती है सैनी बिरादरी
एम हसीन
रुड़की। इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस 1972 में रुड़की सीट को हारने के बाद 1980 में तब ही वापिस जीत पाई थी जब उसने यहां धार्मिक-जातीय समीकरण बनाया था। पार्टी ने मुस्लिम वोट बैंक को कायम रखते हुए सैनी बिरादरी को तरजीह दी थी। यह अलग बात है कि तब जहां सैनी मतदाता ने अपनी बिरादरी के प्रत्याशी को तरजीह दी थी वहीं मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस को पार्टी के रूप में वोट देना पसंद किया था। इस स्थिति में आज भी कोई अंतर नहीं आया है। मुस्लिम मतदाता आज भी पार्टी, यानी कांग्रेस, को ही वोट देता है। ऐसे में पार्टी अगर अपने लिए जीत का लक्ष्य तय कर ले तो सैनी प्रत्याशी लाकर इस लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकती है। सवाल यह है कि क्या पार्टी ऐसा करेगी?
जहां तक सैनी मतदाता का सवाल है, उसे भाजपा का ठोस वोट बैंक माना जाता है। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस से इस मतदाता को अलग करने के लिए भाजपा ने भी हिंदुत्व के दौर में भी जातीय-धार्मिकता का ही सहारा लिया था। अगर भाजपा 1991 में डॉ पृथ्वी सिंह विकसित, जो कि बिरादरी से सैनी थे, को अपना प्रत्याशी न बनाती तो राम मंदिर आंदोलन के उस दौर में भी पार्टी के लिए रुड़की सीट को जीतना आसान न होता; जैसे कि 1996 में ही हो गया था। तब सैनी प्रत्याशी होने के बावजूद भाजपा इसी सीट पर इसलिए हार गई थी क्योंकि सपा ने रामसिंह सैनी को अपना प्रत्याशी बना दिया था। जाहिर है कि सपा धार्मिक-जातीयता का सहारा लिया था। मुसलमानों को धार्मिक आधार पर अपने साथ जोड़ा था और सैनी बिरादरी प्रत्याशी के साथ जुड़ी थी। उत्तराखंड गठन के बाद का इतिहास इस बात का गवाह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही सैनी बिरादरी के साथ खिलवाड़ किया। बिरादरी को राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों पार्टियों ने हमेशा दिया लेकिन जीत का लक्ष्य कहीं निर्धारित नहीं किया। सैनी बिरादरी के लिए न सीट सही चुनी और न ही चेहरा। कांग्रेस ने धार्मिक-जातीयता का समीकरण नहीं बनाया और भाजपा जातीय-धार्मिकता का समीकरण नहीं बनाया। नतीजा दोनों ही दलों का कोई भी सैनी प्रत्याशी कभी जीत नहीं पाया।
बहरहाल, 2025 का निकाय चुनाव कांग्रेस के पास खासतौर पर इसलिए एक मौका है क्योंकि पार्टी ने 2022 के विधान सभा चुनाव में भी नगर सीट पर सैनी दावे को नजरअंदाज किया था। अब अगर पार्टी निकाय चुनाव में, सीट भले ही पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित न हो, अपने बेस वोट मुस्लिम में प्लस करने के लिए सैनी मतों की लुभा पाए तो उसका रास्ता आसान हो सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि रुड़की में केवल, पंजाबी और सैनी, दो ही ऐसी बिरादरी हैं जो सजातीय प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए मुख्य दलों में किसी भी दल का साथ दे सकती हैं। लेकिन दोनों में एक अंतर यह है कि पंजाबी बिरादरी अगड़ा वर्ग का हिस्सा है जबकि सैनी पिछड़ा वर्ग का। कांग्रेस के लिए यह मामला इसलिए अहम है क्योंकि रुड़की उसके लिए हर हाल में हारी हुई सीट है। ऐसे में अगर वह एक मजबूत समीकरण को अपनाती है तो उम्मीद की जा सकती है कि वह जीत के लिए चुनाव लड़ रही है।