विपक्षी नहीं बीजेपी के भीतर भी उठ रहे सवाल
एम हसीन
रुड़की। दबंगई, आक्रामकता और हथधर्मी का जो प्रदर्शन नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने विगत दिवस आई आई टी बोट क्लब पर किया उसे लेकर केवल विपक्ष ही सवाल उठा रहा हो, ऐसा नहीं है। इसे लेकर भाजपा के भीतर भी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि यह अलग बात है कि बत्रा को किसी की परवाह नहीं है। वे सत्ता के निकट हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह वे 2012 में तब सत्ता के निकट थे जब उनके चेलों ने सिंचाई विभाग के अधिकारी के नाम आवंटित कोठी के ताले तोड़कर उस पर जबरन कब्जा कर लिया था। दर्ज तो उनके खिलाफ मुकद्दमा भी हुआ था, लेकिन हुआ कुछ नहीं था, सिवाय इसके कि कोठी एक महीने के लिए उन्हीं के नाम अलॉट कर दी गई थी। आज 12 साल बाद भी वे बिना आवंटन ही कोठी में आबाद हैं। जाहिर है कि विधायक होने की अपनी ताकत को वे समझते हैं और विधायक बनने का जो हुनर नरेश यादव ने बताया था वे उस पर “ट्रेंड” होने की मुहर भी लगा चुके हैं। अहमियत इस बात की है कि आई आई टी परिसर में स्थानीय जन का प्रवेश निषेध हुआ था तो उसका बोट क्लब से क्या संबंध है? बोट क्लब से अगर आई आई टी प्रशासन का नियंत्रण हट भी गया तो उससे आई आई टी के भीतर प्रवेश का मामला कैसे हल हो जायेगा?
जैसा कि ज्ञात है कि आई आई टी प्रशासन द्वारा मॉर्निंग वॉक के लिए जाने वाले लोगों के लिए अपने परिसर के दरवाजे बंद कर लिए हैं। यह फैसला आई आई टी प्रशासन ने आज किया हो, ऐसा नहीं है। फैसला तभी हो गया था जब संस्थान रुड़की विश्वविद्यालय से आई आई टी में परिवर्तित हुआ था। बात केवल इतनी है कि कभी इसमें थोड़ी ढील दी जाती रही है और कभी सख्ती की जाती रही है। यह दौर सख्ती का है। परिसर में थोमसो का वातावरण है जो संस्थान का उन्मुक्त आयोजन है। बाहरी लोगों के प्रवेश के कारण अतीत में संस्थान इस आयोजन को लेकर आलोचना का शिकार होता रहा है। दूसरी बात यह है कि परिसर के भीतर जाकर बाहरी लोगों के आपराधिक घटनाओं को अंजाम के कई मामले केवल इसी कारण रिकॉर्ड किए जा चुके हैं क्योंकि बाहरी लोगों को प्रवेश देने के मामले में बहुत सख्ती नहीं होती। हालांकि परिचय पत्र के आधार पर परिसर में प्रवेश मिल भी जाता है।
बहरहाल, इस बार प्रदीप बत्रा ने इस मामले को पूरे जोर शोर से उठाया। उन्होंने इस पर न केवल आई आई टी प्रशासन के लिए वीडियो के माध्यम से चेतावनी जारी की बल्कि धरना प्रदर्शन भी किया और ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को ज्ञापन भी सौंपा। साथ ही उन्होंने परिसर के बाहर स्थित आई आई टी के बोट क्लब का ताला भी तुड़वा दिया और वहां लगे बोर्ड को भी पुतवा दिया। बत्रा की इस कार्रवाई में हालांकि कई भाजपाइयों ने उनका सहयोग भी किया, लेकिन अधिकांश भाजपाई इस पूरे अभियान से बाहर रहे। दूसरी ओर विपक्ष ने इसे लेकर प्रदीप बत्रा पर कड़े हमले किए। वरिष्ठ पार्षद और मेयर पद के भावी दावेदार रविंद्र खन्ना बेबी और प्रदेश कांग्रेस के महासचिव व मेयर पद के भावी दावेदार सचिन गुप्ता ने उपरोक्त पूरे अभियान को लेकर प्रदीप बत्रा की तीखी आलोचना की। इस क्रम में महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी एडवोकेट ने बोर्ड क्लब को 200 साल पुरानी इमारत बताते हुए उसके संरक्षण की बात कही और प्रदीप पत्र द्वारा जो कार्यवाही की गई उसकी कड़ी आलोचना की। हालांकि भाजपा के भीतर से इस पर कोई खुली प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है अर्थात यदि प्रदीप बत्रा का समर्थन नहीं किया गया है तो उनका विरोध भी नहीं किया गया है। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग बत्रा के इस अभियान को न केवल हैरत से देख रहे हैं बल्कि उस पर सवालिया निशान भी लगा रहे हैं। उनका स्पष्ट सवाल है कि बत्रा अपने इस कदम का कोई औचित्य बताएं। अगर मामला मॉर्निंग वॉक के शौकीन लोगों का प्रवेश परिसर में सुनिश्चित करने का था भी तो उसका वोट क्लब पर प्रकारांतर से किए गए कब्जे से तो कोई संबंध था ही नहीं।