क्या अब भाजपा से नजदीकी की तैयारी में हैं सैयद अली हैदर जैदी?

एम हसीन

रुड़की। मंगलौर के सामाजिक क्षेत्रों का जाना-पहचाना चेहरा, सैयद अली हैदर जैदी, पिछले दिनों भाजपा के जिला कार्यालय पर नजर आया। खुद जैदी द्वारा अपनी फेसबुक वाल पर पोस्ट की गई तस्वीरों के अनुसार उन्होंने भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ माधुसिंह से भेंट की और उन्हें अपने द्वारा निकट भविष्य में आयोजित किए जाने वाले जश्न-ए-इमाम हुसैन का निमंत्रण दिया। यह आयोजन जैदी का प्राइड पोजेशन है, जिसके विषय में उनका दावा है कि इस बार यह पचासवां अंक, अर्थात गोल्डन जुबली आयोजन, है। हालांकि स्थानीय लोग इस दावे पर सवालिया निशान लगाते हैं, लेकिन हो सकता है कि यह दावा सच हो। बहरहाल, हाल तक इस आयोजन के मुख्य मेहमान कांग्रेसी या अन्य राजनीतिक दलों के चेहरे या सामाजिक लोग बनते आए हैं। ताज्जुब की बात है कि इस बार निमंत्रण भाजपा पदाधिकारी, वह भी जिलाध्यक्ष, को दिया गया है। लेकिन इस स्टेज पर आकर यह सवाल खड़ा हो रहा है कि जैदी का अगला कदम क्या भाजपा में है?

जैदी के संदर्भ में बात करें तो यह उस समय की बात है जब मंगलौर की राजनीति में तत्कालीन मंत्री क़ाज़ी मुहीउद्दीन का वर्चस्व था। राज्य का गठन तब तक नहीं हुआ था और क़ाज़ी मुहीउद्दीन बसपा की राजनीति कर रहे थे। उस समय जैदी समाजवादी पार्टी की राजनीति करते थे। लेकिन 2002 के चुनाव में सपा का सूपड़ा साफ हो जाने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस नेता (जो बाद में बसपा विधायक बने थे और 2023 में दिवंगत हो गए थे) हाजी सरवत करीम अंसारी के साथ मिलकर 2003 के निकाय चुनाव में कांग्रेस के नफीस अंसारी को अध्यक्ष बनाया था और फिर राज्य के आधा दर्जन कैबिनेट मंत्रियों को मंगलौर में एक मंच पर लाकर अपना दबदबा साबित किया था।

कोई बड़ी बात नहीं कि तब उनका इरादा कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने का रहा हो। लेकिन 2007 में कांग्रेस ने हाजी सरवत करीम अंसारी को ही दोहराया था और दूसरी बार बसपा के टिकट पर क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ही विधायक निर्वाचित हुए थे।  साथ ही, 2012 के चुनाव से पहले खुद क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ही कांग्रेस में आ गए थे। इस प्रकार जैदी का मंगलौर की राजनीति में कांग्रेस का चेहरा बनने का सपना चूर हो गया था। फिर भी 2024 के मंगलौर विधानसभा उप-चुनाव से पहले तक वे कांग्रेस में बने रहे थे और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जो 2012 से क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के विरोधी रहे हैं, के गुट की राजनीति करते रहे थे। 2014 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद पेशे से बिल्डर जैदी ने बेहिसाब पैसा कमाया था, उन्होंने देहरादून और रुड़की में कई मल्टी स्टोरी सोसाइटीज का निर्माण किया था। उस समय नरेंद्र मोदी या भाजपा के क्रिया-कलाप की प्रशंसा करने वाले कितने ही लोगों को जैदी ने अपने घर से बाहर निकाल दिया था।

बहरहाल, 2024 में हाजी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद जब उनके पुत्र उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी मंगलौर सीट पर बसपा प्रत्याशी बने थे तो जैदी उनके अग्रज बने थे। 2025 के निकाय चुनाव तक वे बसपा में ही रहे थे लेकिन 2025 में मोंटी ही भाजपा की राह पर चल निकले थे। ऐसे में जैदी के लिए स्थानीय राजनीति में अपने लिए कोई जगह बनाए रखना मुश्किल हो गया था, खासतौर पर इसलिए कि व्यक्तिगत रूप से जैदी अवामी चेहरा नहीं हैं। वे या तो सत्ता के साथ रह सकते हैं या फिर किसी दूसरे चेहरे के भरोसे कायम रह सकते हैं। क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के साथ उनकी पटरी बैठने के इमकान नहीं हैं। इसी कारण माना जा रहा है कि अब उनकी नजर भाजपा की राजनीति पर है। इस सोच में कितनी सच्चाई है, जाहिर है कि यह आने वाला वक्त तय करेगा।