शुरुआती दौर में ही ठिठकी हुई है पार्टी के नए युग में प्रवेश प्रक्रिया

एम हसीन

रुड़की। कांग्रेस में सृजन अभियान को लेकर शुरू हुआ भीतरी घमासान निपटने का नाम नहीं ले रहा है। इसके चलते पार्टी हाई कमान इतने दबाव में आया हुआ बताया जा रहा है कि वह अनिर्णय की स्थिति में पहुंच गया है अर्थात पार्टी में नए पदाधिकारियों के नामों की घोषणा नहीं हो पा रही है।

कांग्रेस में सृजन अभियान की शुरुआत सितंबर के पहले सप्ताह में हुई थी। तब नए जिलाध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी ने पर्यवेक्षक भेजकर कार्यकर्ताओं की राय शुमारी कराई थी। पर्यवेक्षकों ने पिछले महीने अपनी रिपोर्ट हाई कमान के सुपुर्द कर दी थी। तभी से कार्यकर्ता पदाधिकारियों के नामों की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। अब बताया जा रहा है कि ऐसी घोषणा बिहार चुनाव का नतीजा आने के बाद की जाएगी। माना जा रहा है कि इस स्थिति के पीछे बड़े पार्टी नेताओं के बीच मचा घमासान है। घमासान के कई पहलू हैं।

मसलन, एक पहलू तो उन पदाधिकारियों की चाहत है जो निवर्तमान होने जा रहे हैं। मसलन, रुड़की महानगर जिलाध्यक्ष और ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद पर क्रमशः राजेंद्र चौधरी एडवोकेट और विधायक वीरेंद्र जाती कार्यरत हैं। इनमें वीरेंद्र जाती की कोई रुचि कभी संगठन के पद में दिखाई नहीं दी। पद ग्रहण करने के बिल्कुल बाद उन्होंने केवल एक बार राज्य सरकार के खिलाफ रुड़की में धरना-प्रदर्शन किया था। उसके बाद उन्होंने बतौर जिलाध्यक्ष कोई बयान भी शायद ही दिया हो। इससे यह जाहिर हुआ था कि जिन लोगों के हाथ में वीरेंद्र जाती की लगाम है उन्होंने लगाम खींच दी थी और वे निष्क्रिय हो गए थे। बार-बार जाहिर होता रहा है कि वीरेंद्र जाती किसी और, बड़े नेता, की जरूरत पूरी करने के लिए महज जिलाध्यक्ष पद को होल्ड किए हुए हैं। उनसे सक्रिय होना अपेक्षित नहीं है। इसलिए वे सक्रिय नहीं हैं। माना जा रहा है कि जिनके हाथ में वीरेंद्र जाती की कमान है वे यही कोशिश कर रहे हैं कि इस पद पर कोई बदलाव न हो पाए अर्थात या तो पार्टी सृजन अभियान पर आगे कोई कार्यवाही ही न करे या फिर वीरेंद्र जाती को ही कंटिन्यू कर दे। चूंकि यह स्थिति दूसरे ग्रुप को मंजूर नहीं है। इसलिए वह ग्रुप चाहता है कि सृजन अभियान आगे बढ़े और नया कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाले। अहम यह है कि इस मामले में खुद वीरेंद्र जाती की कोई रुचि अभी भी देखने में नहीं आ रही है अर्थात, लगता नहीं कि वे पद पर अपना दोहराव चाहते हैं। लेकिन जिस प्रकार की स्थिति है, उसके मद्दे नजर, जिन हाथों में वीरेंद्र जाती की कमान थी, उनकी कोशिश यही लग रही है कि या तो वीरेंद्र जाती का ही पद पर दोहराव हो जाए या फिर सृजन अभियान की यह प्रक्रिया ही ठिठकी रहे ताकि कम से कम 2027 के विधानसभा चुनाव तक यथा स्थिति रहे। लेकिन दूसरा ग्रुप हर हाल में सृजन अभियान की गतिविधि को आगे बढ़ता हुआ देखना चाहता है, ताकि राय शुमारी के समय जो दो-दो हाथ हो चुके हैं, उसका कुछ परिणाम निकले और जिलाध्यक्ष पद पर नया चेहरा आ सके।

दूसरी ओर राजेंद्र चौधरी की स्थिति अलग है। वे शहरी जिला के अध्यक्ष हैं और उन्होंने इस पद का भरपूर लाभ अपनी राजनीति करने के लिए उठाया है। चूंकि उनके साथ बंपर कार्यकारिणी भी है इसलिए कार्यकर्ताओं की फौज का इस्तेमाल वे पार्टी के विभिन्न आयोजनों को करने के अलावा विभिन्न मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन करने में भी करते हैं। यह उनकी अपनी लाइन थी जिससे लगता नहीं कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के अलावा किसी की सहमति थी। चूंकि, जनहित को लेकर संगठन स्तर पर धरना-प्रदर्शन आदि कांग्रेस की संस्कृति नहीं है इसलिए तमाम लोग हैं जिन्होंने राजेंद्र चौधरी की गतिविधियों को पसंद नहीं किया है। वैसे भी, जैसा कि स्वाभाविक है, वे पार्टी के एक ग्रुप की राजनीति करते हैं तो चार ग्रुप उनके विरोधी भी हैं। इस सब स्थिति के बीच राजेंद्र चौधरी की ख्वाहिश यही है कि या तो पार्टी उन्हें ही कंटिन्यू कर दे या फिर सृजन अभियान की प्रक्रिया ही शिथिल कर दे।

इन सब गतिविधियों के बीच, जिन्हें अपने मनोनयन की उम्मीद है उनकी कोशिश है कि पार्टी हाई कमान जल्द से जल्द नए पदाधिकारियों के नामों की घोषणा करे। मसलन, महानगर जिलाध्यक्ष पद के सबसे प्रबल दावेदारों में एक सुधीर शांडिल्य और ग्रामीण जिलाध्यक्ष पद के सबसे मजबूत दावेदार, अरविंद प्रधान पार्टी हाई कमान की घोषणा की शिद्दत से प्रतीक्षा कर रहे हैं।