नगर तरक्की की राह पर 10 साल आगे की ओर तथा 15 साल पीछे की ओर चला
एम हसीन
रुड़की। विकास का मामला सरकारों पर नहीं बल्कि व्यक्तियों पर निर्भर करता है। उत्तराखंड स्थापना के बाद रुड़की का इतिहास तो इसी बात को रेखांकित करता है। इस संदर्भ में एक और कड़वी हकीकत है। वह यह कि विकास के, सुधार के काम करने वाले व्यक्ति को पसंद नहीं किया जाता। उन्हें चुनाव हरा दिया जाता है। मसलन, रुड़की के शुरुआती विधायक सुरेश जैन बने तो लगा कि कुछ हो रहा है। फिर 10 साल बाद प्रदीप बत्रा विधायक बने तो साफ दिखता है कि नया तो कुछ हुआ ही नहीं, जो हुआ था वह भी निपट गया। यह अलग बात है कि सड़कों के गढ्ढे भरने को प्रदीप बत्रा विकास बता भी दें, मीडिया उसे प्रचारित कर भी दे और एक खास वर्ग के लोग उसे सच मान भी लें। सच यह है कि प्रदीप बत्रा को सुरेश जैन का अंजाम मालूम है। इसलिए वे चाहें भी तो भी विकास नहीं करा सकते; दावे चाहे जितना कर लें।
2000 में जब उत्तराखंड बना तो तत्कालीन विधान पार्षद श्रीमती निरुपमा गौड़ ने रुड़की को अपने क्षेत्र के रूप में अंगीकार किया था। वे नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकारों में शहरी विकास राज्यमंत्री भी बनी थी। उन्होंने तब तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष राजेश गर्ग के साथ मिलकर नगर में खासे काम कराए थे। लेकिन उनका करियर इस बात पर खत्म हो गया था रुड़की सीट को भाजपा ने ब्राह्मण सीट नहीं माना था और पार्टी ने निरुपमा गौड़ को अपना टिकट नहीं दिया था।
तब सुरेश जैन भाजपा प्रत्याशी और विधायक बने थे, जबकि राज्य में पंडित नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी। तब रुड़की को बहुत कुछ नहीं मिला लेकिन मिला भी। मसलन, रुड़की को प्राविधिक शिक्षा परिषद का मुख्यालय मिला था। इसके सचिव ने रुड़की में ही बैठना शुरू किया। सुरेश जैन के कार्यकाल में ही प्राविधिक शिक्षा परिषद के स्थाई कार्यालय के निर्माण का काम रुड़की में शुरू हुआ था, जो बाद में पूरा भी हुआ था, लेकिन सचिव ने यहां बैठना बंद कर दिया था। यह प्रदीप बत्रा के विधायक बनने के बाद हुआ था। हालांकि परिषद का स्टाफ अब भी यहां बैठता है और सचिव के हस्ताक्षर कराने के लिए देहरादून भी जाता है।
जिला उद्योग केंद्र रुड़की में पहले से ही था। उत्तराखंड बनने के बाद लंबे समय तक केंद्र के जिला महाप्रबंधक यहां बैठते रहे थे, लेकिन प्रदीप बत्रा के विधायक बनने के बाद केंद्र हरिद्वार शिफ्ट कर दिया गया था। अब यहां केवल एक सहायक प्रबंधक बैठते हैं। क्षेत्र का बिजली नियंत्रण कक्ष अंग्रेजी काल से ही रुड़की में था, जो बत्रा के विधायक बनने के बाद ऋषिकेश शिफ्ट कर दिया गया था।
अपने दूसरे कार्यकाल में सुरेश जैन ने रुड़की में गंग नहर के घाटों के पुनरुद्धार, पार्कों के निर्माण, सड़कों के चौड़ीकरण, विद्युत व्यवस्था के विस्तार आदि के लिए खूब काम किया था। तब उन्होंने अतिक्रमण भी हटवाया था और स्थाई अतिक्रमण पर बुलडोजर चलवाया थे। उन्होंने सड़कों से रेहड़ी-ठेली वालों को हटाकर उन्हें वेंडिंग जोन दिया था। साथ ही उन्होंने गंग नहर पर उस पुल का निर्माण कराया था जो आज प्रकाश ब्रिज के नाम से जाना जाता है। ये गतिविधियां खुद भाजपा के लोगों को ही पसंद नहीं आई थी और 2012 में तीसरी बार चुनाव मैदान में आए सुरेश जैन को भाजपा के लोगों ने ही हरा दिया था। बत्रा इस हकीकत से वाकिफ हैं। वे चूंकि 2027 में भी हारना नहीं चाहते, इसी कारण वे विकास के नाम पर जो जैन ने किया था उसे रसातल में मिलाने में लगे हैं।
