किसी भी प्रकार के बदलाव के लिए वोट नहीं करती हरिद्वार की जनता
एम हसीन
हरिद्वार। जिस राज्य ने अपने 25 साल के इतिहास में 10 मुख्यमंत्री देखे हों, उस राज्य के हरिद्वार जनपद, या कहें संसदीय क्षेत्र, में ऐसा बिल्कुल नजर नहीं आता कि जनता किसी प्रकार के राजनीतिक बदलाव की पक्षधर हो। हालात की तर्जुमानी यह बताती है कि यहां की जनता दोहराव की कायल है। यहां पुराने के लिए अगर कोई खतरा है तो की दलगत स्तर पर है, अर्थात पार्टी सीटिंग जन-प्रतिनिधि का टिकट काट दे। जनता किसी को हटाकर उसके स्थान पर नए को नहीं चुनती।
मसलन, 10 साल हरिद्वार सांसद रहने के बाद 2024 में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक पर अगर तीसरी बार भी भाजपा ने भरोसा किया होता तो सांसद वही होते। तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट दिए जाने को लेकर जो बदलाव किया भाजपा ने ही किया। जनता की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। कमोबेश ऐसा ही 2022 में खानपुर और झबरेड़ा में हुआ था जब भाजपा ने ही अपने तत्कालीन विधायकों, प्रणव सिंह चैंपियन और देशराज कर्णवाल, का टिकट काट दिया था। इसलिए इन दोनों सीटों पर जनता को उमेश कुमार और वीरेंद्र जाती के रूप में नए विधायक मिल गए थे। 2022 में हरिद्वार जनपद में हारे यतीश्वरानंद और संजय गुप्ता भी थे लेकिन नया चेहरा हरिद्वार देहात के मतदाताओं को ही अनुपमा रावत के रूप में मिला था जो यतीश्वरानंद को हराकर विधायक निर्वाचित हुई थी। इसके विपरीत लक्सर सीट पर संजय गुप्ता को हराकर हाजी शहजाद तीसरी बार विधायक बने थे और उन्होंने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की थी। बाकी सीटों पर कोई बदलाव नहीं हुआ था।
जैसा कि सब जानते हैं कि हरिद्वार जनपद में बदलाव की नहीं बल्कि दोहराव की राजनीति चल रही है। हरिद्वार विधायक मदन कौशिक पांच विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और पांचवी बार ही विधायक हैं। इसी प्रकार कांग्रेस नेता क़ाज़ी निज़ामुद्दीन छः विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद चौथी बार विधायक हैं। भाजपा के आदेश चौहान, प्रदीप बत्रा तथा कांग्रेस के हाजी फुरकान अहमद, ममता राकेश तीन बार चुनाव लड़े हैं और चारों तीसरी बार ही विधायक हैं। बसपा के हाजी शहजाद 5 विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और तीसरी बार विधायक हैं। केवल कांग्रेस की अनुपमा रावत और वीरेंद्र जाती तथा निर्दलीय उमेश कुमार ने ही 2022 में पहली बार विधानसभा लड़ा था और ये सभी पहली बार ही विधायक बन गए थे।
कोई बड़ी बात नहीं कि ये तीनों दूसरी बार, मदन कौशिक और हाजी शहजाद छठवीं बार, क़ाज़ी निज़ामुद्दीन 7वीं बार, आदेश चौहान, प्रदीप बत्रा, हाजी फुरकान और ममता राकेश चौथी बार विधानसभा में प्रवेश के लिए लालायित हैं। उम्मीद यही है कि ये सभी लड़ेंगे भी और 2027 में अधिकांश की वापसी भी अवश्य होगी। इनमें अगर हारेगा तो कोई एकाध ही हारेगा, अर्थात जनता के स्तर पर किसी के लिए कोई खतरा नहीं है। अलबत्ता पार्टी के स्तर पर हो सकता है। जैसे 2022 में चार बार विधायक रहने के बाद प्रणव सिंह चैंपियन और पहली बार विधायक रहने के बाद देशराज कर्णवाल भाजपा में अपना टिकट गंवा बैठे थे। यह देखना दिलचस्प होगा कि 2027 में भाजपा अपने किस सिटिंग विधायक का टिकट काटकर उसके राजनीतिक भविष्य पर फुल स्टॉप लगाती है!