जब रुड़की शहर बरसाती पानी में डूब-उतरा रहा था तब प्रदीप बत्रा सहायक अभियंताओं के लिए प्रोन्नति और सालियर में बस अड्डा मांग रहे थे

एम हसीन

रुड़की। जिस समय नगर विधायक प्रदीप बत्रा गैरसैण विधानसभा सत्र के दौरान सदन में ऊर्जा निगम के सहायक अभियंताओं को प्रोन्नत कर अधिशासी अभियंता बनाने या सालियर में एक नया बस अड्डा बनाने की मांग उठा रहे थे, उस समय रुड़की नगर बरसाती पानी में डूब-उतरा रहा था। एक खास वर्ग, जो कि उपेक्षित रहने का आदि है, के आबादी क्षेत्र रामपुर चुंगी और इस्लाम नगर आदि को अगर नजर अंदाज कर भी दिया जाए तो भी नगर में कई आबादियों, मसलन जेल रोड जहां अदालत होने के कारण सभी न्यायिक अधिकारियों, अधिवक्ताओं को आना पड़ता है, जहां जी एस टी का कार्यालय है और जहां नगर के वित्त अधिकारी और उप-कोषागार अधिकारी के साथ-साथ सरकारी प्रेस के सहायक निदेशक निवास करते हैं, पर भी बरसाती पानी खड़ा था। सरकारी प्रेस, जो औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है, के सहायक निदेशक के तो सरकारी कार्यालय के सामने भी सड़क पर पानी खड़ा था। वह पूरा क्षेत्र ही जलमग्न था। बेशक अधिकारियों का आवागमन चार-पहिया वाहन से होता है इसलिए उन्हें दिक्कत कम होती है लेकिन समस्या तो यह है ही।

सवाल यह है कि इस समस्या के लिए हल के लिए नगर विधायक ने सदन में क्या मांग उठाई?बरसाती मौसम आना था बारिश होनी थी, यह कोई अप्रत्याशित मसला नहीं था। हर साल ही बारिश आती है और उसका समय भी निर्धारित होता है। विधानसभा का सत्र मानसून, अर्थात बरसाती मौसम, में भी होता है और उससे पहले ग्रीष्मकाल में भी होता है, उससे पहले बजट सत्र भी होता है और उससे पहले शरद कालीन सत्र भी होता है। सवाल यह है कि बारिश की प्रत्याशा में, जल भराव की आशंका में नगर विधायक ने कौन से सत्र में सवाल उठाया?

एक उत्साही पत्रकार ने गैरसैण सत्र शुरू होने से पहले अपनी फेस बुक वाल पर लिखा था कि “सत्र में विधायक प्रदीप बत्रा इस बार अपने क्षेत्र के विकास के खूब मुद्दे उठाएंगे, समस्याओं की ओर सरकार का खूब ध्यान आकर्षित करेंगे और उनके हल की मांग करेंगे। इससे लोगों के मन में थोड़ी उम्मीदें जाग गई थी। उन्होंने अपना मुंह इतना खोल लिया था कि बत्रा जब उनके मुंह में लड्डू रखना चाहें तो बत्रा को खिलाने में दिक्कत न हो। इसका कारण था। कारण बत्रा की सरकार से लगी उन उम्मीदों का टूट जाना था जो वे शुरू से लेकर चल रहे थे। उन्हें लग रहा था कि तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में उनके नीलम सिनेमा स्थित व्यवसायिक भवन पर लगी हुई सील का खुल जाना या उनके मालवीय चौक के ऊपर से जा रही हाई टेंशन लाइन का रातों-रात हट जाना आदि काम महज रूँगा है, बोनस है। असल चीज तो मंत्री पद है जो उन्हें मिलना ही मिलना है।

लेकिन सरकार गठन का चौथा साल बीतते-बीतते बत्रा के सरकार से भ्रम दूर होते दिखाई दे रहे हैं। जब सरकार ने हरिद्वार जिले में ही दर्जों की रेवड़ियां खूब बांटी हैं, तब बत्रा का नंबर कैबिनेट में नहीं आया। अब स्थिति यह है कि बत्रा को महज कुछ महीने बाद चुनाव में जाना है और उन पर दबाव है कि वे अब वे व्यक्तिगत हितों को लेकर तो सरकार का उपयोग चाहे जितना करें, लेकिन कुछ उन्हें जनता के लिए भी करना होगा। इसी कारण उम्मीद थी इस बार बत्रा जब सदन के भीतर जाकर खड़े होंगे तो अपने क्षेत्र के लिए कुछ करेंगे। यही सब कुछ उत्साही पत्रकार ने लिखा भी था। ऐसा भी नहीं कि बत्रा ने सदन के भीतर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई। बेशक कराई। ऊपर उल्लेख किया जा चुका है उन्होंने जो मांग उठाई। उनकी इन मांगों के पीछे की हकीकत भी दिलचस्प है जो पूरे तौर पर चर्चा की मोहताज है। लेकिन उस पर चर्चा अगली रिपोर्ट में। फिलहाल इतना ही कि जो जनता उम्मीद कर रही थी कि विधायक उसके मुंह में लड्डू रखेंगे उस खुले हुए मुंह में बरसाती पानी भर गया। लेकिन इससे क्या बत्रा को कोई फर्क पड़ता है? नहीं पड़ता। बत्रा काम करने वाले या जनता के हित में सोचने वाले विधायक नहीं हैं।