क्या कांग्रेस में वापसी करेंगे यशपाल राणा?

एम हसीन

रुड़की। विधानसभा चुनाव की बिसात बिछने लगी है। राजनीतिक क्षेत्रों में भावी प्रत्याशियों की स्थितियों का आंकलन प्रारंभ कर दिया गया है। पूर्व मेयर यशपाल राणा को लेकर तो यह सवाल निकाय चुनाव के बाद से ही उठ रहा है कि क्या वे कांग्रेस में वापसी करेंगे? क्या वे अगला चुनाव “हाथ के पंजे” पर ही लड़ेंगे? कमाल की बात है कि इतनी गारंटी भाजपा में सीटिंग विधायक प्रदीप बत्रा के टिकट की नहीं की जा रही है जितनी कांग्रेस में यशपाल राणा के टिकट की, की जा रही है, जबकि वे अभी कांग्रेस में हैं भी नहीं।

यह बेहद दिलचस्प बात है कि पूर्व मेयर यशपाल राणा के नाम जनहितों को लेकर सड़क पर उतरने, नगर विधायक के खिलाफ या नगर निगम व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करने का एक भी रिकॉर्ड नहीं है। इसके बावजूद वे रुड़की के अकेले जन नेता का दर्जा रखते हैं। निर्दलीय रूप में नगर के प्रथम मेयर निर्वाचित होने वाले यशपाल राणा भाजपा से लेकर कांग्रेस तक की राजनीति कर चुके हैं और अब फिर वे निर्दलीय हैं। उन्होंने हर मोर्चे पर साबित किया है कि वे “यशपाल राणा” हैं। वे भाजपा के साथ चलकर अगर सभासद हैं तो निर्दलीय चलकर मेयर और पार्षद भी हैं, वे कांग्रेस के साथ चलकर अगर बेहद प्रभावी प्रत्याशी हैं तो कांग्रेस के बगैर चलकर वे निर्णायक प्रत्याशी भी हैं, कम से कम नगर क्षेत्र में वे भाजपा और कांग्रेस, दोनों से ज्यादा हैं, दोनों पर वरीयता रखते हैं और दोनों दलों के प्रत्याशियों पर भी वरीयता रखते हैं।

ऐसा इसलिए है कि इसी साल के शुरू में संपन्न हुए निकाय चुनाव में 40 वार्डों के चुनाव क्षेत्र में वे बतौर निर्दलीय महज तीन हजार वोटों से हारे थे, जबकि विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले 20 वार्डों में वे इतने ही अंतर से जीतकर निकले थे। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को भी हराया था और कांग्रेस के प्रत्याशी को भी। इन्हीं 20 वार्डों की जनता 2027 के चुनाव में अपना विधायक चुनने वाली है। फिर जाहिर है कि यशपाल राणा का चुनाव लड़ने का इरादा रखना स्वाभाविक है। वे चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस में वापसी को लेकर उनका कोई उतावलापन दिखाई नहीं दे रहा है। वे वापसी करेंगे या नहीं यह अभी स्पष्ट नहीं है खासतौर पर तब जब वे भी जानते हैं कि विधानसभा चुनाव में उन्हें किसी दल का सहारा लेना जरूरी होगा।