राहुल गांधी के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे उत्तराखंड के कांग्रेसी दिग्गज
एम हसीन
देहरादून। कांग्रेस सांसद और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इन दिनों की जा रही बेहद आक्रामक राजनीति को सही माना जाए या गलत यह एक अलग से बहस का मुद्दा हो सकती है। अहम बात यह है कि उत्तराखंड की कांग्रेस राहुल गांधी के साथ कदमताल नहीं कर पा रही है। राहुल गांधी संसद से लेकर सड़क तक और दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक तमाम आक्रामक प्रदर्शन करते हुए घूम रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड कांग्रेस में खामोशी और शांति है। थोड़ा बहुत रिस्पांस उन्हें केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण महारा की ओर से मिलता हुआ दिखाई देता है। यह स्थिति तब है जब कांग्रेस के पास राज्य के वरिष्ठतम राजनेता सहित तमाम दिग्गज मौजूद हैं। स्थिति यह है कि अगर पार्टी आज सत्ता में आ जाए तो वहां मुख्यमंत्री पद के ही आधा दर्जन से अधिक दावेदार मौजूद हैं। सवाल यह है कि इन हालात में चुनावी समय तक कांग्रेस की क्या स्थिति रहने वाली है!
उत्तराखण्ड में कांग्रेस दूसरे नहीं बल्कि पहले दर्जे की पार्टी रही है। राज्य स्थापना के बाद 2002 में हुए पहले ही चुनाव में यहां कांग्रेस ने अपने दम पर सरकार का गठन किया था और अपने दिग्गज, अब स्वर्गीय, पंडित नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्हें राज्य के ढांचे के निर्माण का दुरूह कार्य सौंपा था, जिसे उन्होंने बड़ी सफलता के साथ अंजाम दिया था। आज न तो कांग्रेस को अपनी इस उपलब्धि का लाभ मिल पा रहा है और न ही अपने दिग्गजों की उपस्थिति का। पार्टी पिछले 8 साल से सत्ता से बाहर है यह इतना बड़ी घटना नहीं है जितनी यह कि वह अपने समर्थकों के बीच भविष्य को लेकर भी कोई उम्मीद नहीं जगा पा रही है। पार्टी के दिग्गज “अपनी धपली, अपने राग” में व्यस्त हैं और इस राग की गूंज इतनी ऊंची है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की दहाड़ भी यहां सुनाई नहीं दे रही है। राहुल गांधी के साथ कदमताल करने की बजाय पार्टी के स्थानीय दिग्गज उसका मूल्यांकन अपने लाभ और हानि के दृष्टिकोण से कर रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी में चौतरफा खामोशी है।