क्या बेवजह बढ़ रहा हरिद्वार जिले में शादाब शम्स का विरोध?
एम हसीन
हरिद्वार। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स के पुतले फूंकने की शुरुआत उस समय हुई जब केंद्र सरकार ने संसद में वक्फ अधिनियम संशोधन पारित कराकर कानून बनाया। इस कानून से शादाब शम्स का कोई सीधा सरोकार नहीं था। ऐसा भी नहीं था कि इस अधिनियम के प्रति अपने समुदाय के प्रति कोई जागरूकता कार्यक्रम भी, जैसा कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हरिद्वार में आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की, संचालित नहीं किया। उन्होंने हाल ही में खुद मुझे कहा था कि “वक्फ अधिनियम के प्रति जनजागरुकता पैदा करने के लिए जनता के बीच जाने की वे अभी रूप रेखा बना रहे हैं।” इस पूरे मामले में उनकी भूमिका केवल इतनी रही कि एक खबरिया चैनल ने उनसे इस बाबत सवाल किए और उन्होंने अपनी जरूरत के मुताबिक जवाब दिए। यह अलग बात है कि उनकी भाषा मुस्लिम समुदाय के लोगों को पसंद नहीं आई और उनके पुतले दहन कार्यक्रम संचालित किए गए।
दरअसल, शादाब शम्स की छवि अपने समुदाय के बीच वैसी नहीं बन पाई है जैसी सत्तारूढ़ दल के नेता आमतौर पर बन जाती है। आखिर तमाम भाजपा नेता हैं जिनके सामान्य सरोकार मुस्लिम समाज के लोगों के साथ बने हुए हैं। यह भी सच है कि किसी नेता के आह्वान पर मुस्लिम समाज के लोग भाजपा के पक्षधर बन जाते हों। जो मुस्लिम भाजपा के पक्षधर हैं वे हैं ही, किसी नेता के आह्वान पर नहीं हैं। यह वह स्थिति है जिसे शादाब शम्स कभी समझ नहीं पाए। इसे यूं समझा जा सकता है कि मौजूदा भाजपा सरकार में हज समिति के अध्यक्ष खतीब अहमद भी काम कर रहे हैं और अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष मजहर नवाब नईम भी। उन्हें लेकर कहीं कोई विवाद देखने-सुनने में नहीं आता।मुस्लिम समाज के बीच नाराजगी या तो शादाब शम्स के साथ या फिर मदरसा बोर्ड से जुड़े रहे मुफ्ती समून कासमी के साथ देखने में आती रही है। अहम यह है कि आवाम की इन दोनों के प्रति यह नाराजगी पहले भी जाहिर होती रही है। शादाब शम्स को लेकर तो पहले भी गंभीर आरोपों के साथ वीडियो वायरल होती रही हैं।
अगर देखा जाए तो यह सब बेवजह भी नहीं है। सबसे बड़ी वजह तो यह है कि वक्फ बोर्ड अध्यक्ष के अपने कार्यकाल में शादाब शम्स कोई ऐसा काम नहीं कर पाए जिसे मील का पत्थर कहा जा सके, सिवाय उसके कि वे देश में आजादी के इतिहास में वक्फ की सारी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाते आए हैं, वक्फ से जुड़े औसत व्यक्ति को चोर बताते आए हैं और अपने कार्यकाल सहित पूरी वजह व्यवस्था की सी बी आई जांच की मांग करते आए हैं। यह हो सकता है कि उनके पास अपने आरोपों के पक्ष में कोई प्रमाण हों, लेकिन इन प्रमाणों को उन्होंने कभी सार्वजनिक नहीं किया है। दूसरी बात, वक्फ की सम्पत्ति को कथित चोरों के कब्जे से निकालने के लिए, वक्फ की आय के संरक्षण के लिए उन्होंने कोई ठोस कार्यवाही की हो, ऐसा उन्होंने कभी कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। ऐसा नहीं कि जिस भाजपा की शादाब शम्स राजनीति करते हैं उस भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों ने ठोस, दीर्घकालिक और जनहित के मद्देनजर निर्णय न लिए हों, लेकिन वक्त बोर्ड के भीतर शादाब शम्स ने ऐसे कोई निर्णय लिए हों या ऐसे किन्हीं प्रस्तावों के साथ वे बोर्ड की बैठक में गए हों, ऐसा कभी जाहिर नहीं हुआ। विडंबना तो यह है कि मोदी और धामी सरकार की जो योजनाएं सर्ववर्ग के हितार्थ लागू की गई हैं और संचालित की जा रही हैं, उन्हें लेकर भी वे शायद ही कभी अपने समुदाय के बीच गए हों। इस सबके बीच वे जब कभी भी बोले तो उसे मुस्लिम समुदाय के बीच नकारात्मक ही समझा गया। ऐसे में उनके पुतले फुंकने का तात्कालिक कारण भले ही वक्फ अधिनियम संशोधन रहा हो, यह मुख्य कारण नहीं माना जा सकता। ध्यान रहे कि उनके पुतले मंगलौर, ज्वालापुर और कलियर में फूंके गए और कई स्थानों पर पुतले फूंकने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही भी की गई है।