खानपुर विधायक उमेश कुमार-पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन के बीच बढ़ी रार
एम हसीन
रुड़की। पहले खानपुर विधायक उमेश कुमार ने लंढौरा जाकर प्रणव सिंह चैंपियन को गरियाया, फिर चैंपियन ने उमेश कुमार के दफ्तर पर जाकर फायरिंग की। शुरुआत एक फेसबुक पोस्ट से हुई जो कि चैंपियन ने उमेश कुमार की बाबत की थी। अब अपने समर्थकों सहित दोनों गिरफ्तार हैं और दोनों के ही असलहे के लाइसेंस निरस्त करने की कार्यवाही की जा रही है। चूंकि इस बार राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़ी हुई है इसलिए स्वाभाविक रूप से जिले भर की पुलिस को एक तनावपूर्ण काम मिल गया है और राज्य भर में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। स्थिति यहां पहुंची है कि देर रात में एस एस पी प्रमेंद्र सिंह डोभाल व्यक्तिगत रूप से रुड़की में सक्रिय हैं और प्रकरण पर भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को बयान देना पड़ा है। हालांकि दलगत रूप से चैंपियन पर अभी किसी कार्यवाही का संकेत महेंद्र भट्ट ने नहीं दिया है।
खानपुर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में दबंगई एक मेजर फैक्टर माना जाता है। चैंपियन विरोधी एक बड़े राजनेता, जो हरिद्वार जिले में उमेश कुमार के राजनीतिक प्रमोटर रहे हैं, ने मुझे बताया था कि उन्होंने उमेश कुमार को सलाह दी थी कि चैंपियन से मुकाबला करने के लिए उनसे ज्यादा फूं-फ़ाँ की जरूरत होगी। चैंपियन का रिश्ता चूंकि लंढौरा रियासत के राज परिवार से रहा है इसलिए उन्हें शुरू से ही धूम-धड़ाके की आदत रही है। सड़क पर तेज रफ्तार से गाड़ी पर चलना, कोई सामने आए तो उसके साथ अभद्रता कर देना आदि काम वे तब भी करते थे जब अभी विधायक नहीं बने थे। फिर वे निर्दलीय विधायक बने तो उनके मिजाज में चार चांद लग गए, कांग्रेस की अल्पमत की सरकार को उनके समर्थन की जरूरत पड़ी तो उनकी ताकत और अधिक बढ़ गई। उन्होंने अपनी एस्कॉर्ट का इंतेज़ाम कर लिया और सायरन बजाती गाड़ी में चलने की उनकी फितरत नुमायां होने लगी। खुद को बहुत सुपीरियर और बाकी सबको बहुत इंफ्रीयर समझने की अपनी फितरत के चलते वे अक्सर विवादों में घिरते रहे हैं। विधानसभा के पिछले कार्यकाल में जब वे भाजपा विधायक थे तब पार्टी के ही झबरेडा विधायक देशराज कर्णवाल के साथ उनकी लंबी रार ठनी थी। दोनों के बीच लंबी मुकद्दमेबाजी हुई थी और उसकी शुरुआत केवल अभद्र टिप्पणी के कारण ही हुई थी जो कि चैंपियन की ओर से की गई थी। उससे भी पिछले कार्यकाल में, जब वे कांग्रेस विधायक थे और सरकार भी कांग्रेस की थी, उनकी तत्कालीन कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र राकेश (अब दिवंगत) के साथ लंबी रार चली थी। तब सुरेंद्र राकेश समर्थकों ने चैंपियन पर हमला भी कर दिया था।
तब तय करके उमेश कुमार को एक दबंग के रूप में चैंपियन के सामने पेश किया गया था। उमेश कुमार पिछले 4 साल से इस जरूरत को कामयाबी के साथ पूरा करते आ रहे हैं। चैंपियन एक शब्द बोलते हैं, उमेश कुमार 10 बातें बोल देते हैं। चैंपियन 4 गाड़ियों के काफिले में चलते हैं तो उमेश कुमार 8 गाड़ियों के काफिले में चलते हैं। चैंपियन की एक गाड़ी सायरन बजाती चलती है तो उमेश कुमार की चार गाड़ियां सायरन बजाती हैं। चैंपियन के पास चार सुरक्षाकर्मी हैं तो उमेश कुमार के पास 16 हैं। फिर यह हकीकत कि उमेश कुमार ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए चैंपियन की पत्नी भाजपा प्रत्याशी रानी देवयानी को हरा दिया था। सारी चीजें कुल मिलाकर जो स्थिति पेश करती हैं वह यह है कि दोनों के बीच वाक युद्ध चलता ही रहता है। कोई खास मौका, मसलन कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव था या हाल में निकाय चुनाव था, तो इस वाक युद्ध में और तेजी आ जाती है। वैसे दोनों एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं लेकिन राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भी जारी है। और उसी अंदाज में जारी है जिसमें वो शुरू हुई थी। लेकिन जैसा कि होना ही था, इस बार बात राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़ गई हुई है। चैंपियन ने फेस बुक पर टिप्पणी की तो उमेश कुमार ने उसे बर्दाश्त नहीं किया। वे सीधे चैंपियन के लंढौरा स्थित महल पर पहुंचे और वहां बहुत कुछ कहा सुना। इसका जवाब आज चैंपियन ने उनके कार्यालय पर फायरिंग करके दिया। स्वाभाविक रूप से पुलिस ने इसका संज्ञान लिया और शाम तक देहरादून पहुंच चुके चैंपियन को वहीं से गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद रानी देवयानी ने उमेश कुमार पर गंभीर आरोप लगाकर एफ आई आर दर्ज कराई तो पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। फिलहाल तक यही स्थिति बनी हुई है।
यह लाजमी है कि भविष्य में दोनों के बीच समझौता होना ही है, लेकिन इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि बात खत्म हो जाएगी। दरअसल, चैंपियन की अपनी सोच है और खानपुर विधानसभा क्षेत्र की अपनी जरूरत है। इसलिए सिलसिला तो यह चलता ही रहने वाला है।