ढंडेरा में रवि राणा और भगवानपुर में वैभव अग्रवाल बने प्रत्याशी
एम हसीन
रुड़की। भाजपा ने भगवानपुर में रचित अग्रवाल और ढंडेरा में रवि राणा को टिकट देकर रुड़की नगर निगम प्रत्याशी के मामले में जारी प्रतिस्पर्धा को और अधिक स्पष्ट, और अधिक मुखर कर दिया है। लगता है कि रुड़की निगम प्रत्याशी के मामले में अब मुकाबला केवल दो ही दावेदारों के बीच सिमट गया है, हालांकि यह भी साफ दिख रहा है कि इनमें एक टिकट का मुख्य दावेदार है और दूसरा वैकल्पिक दावेदार है। वैसे इस तीखे संघर्ष का एक परिणाम यह हो सकता है कि इस बार प्रत्याशी घोषित होने के बाद, कम से कम रुड़की नगर में भाजपा में बगावत के हालात न बनें।
स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए नगर के राजनीतिक समीकरण को समझना जरूरी है। नगर की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा वास्तव में नगर विधायक प्रदीप बत्रा और पिछली बार मेयर के प्रत्याशी रहे मयंक गुप्ता के बीच हो रही है। जब दावेदारी शुरू हुई थी तो दोनों ही गुटों की ओर से एक-एक दावेदार का मजबूत दावा था और दोनों ही गुटों की ओर से एक-एक वैकल्पिक दावेदार खड़ा किया गया था। कुछ दावेदार ऐसे थे जिनकी पैरवी इन दोनों दिग्गजों से कोई नहीं कर रहा था और कुछ ऐसे थे जिन्होंने देखा-देखी या मीडिया अटेंशन हासिल करने के लिए टिकट पर दावा ठोक दिया था। जब आवेदन पत्रों की छंटनी शुरू हुई तो आखिर में बात वहीं पहुंच गई जहां बत्रा-गुप्ता चाहते थे। यूं दोनों गुटों की ओर से दो-दो दावेदार बाकी रह गए।
चूंकि पार्टी को और भी निकायों के लिए प्रत्याशी तय करने थे, इसलिए जातीय समीकरण के हिसाब से दो दावेदार बाकी सीटों पर उनके जातियों को मिले प्रतिनिधित्व में निपट गए। हालात का इशारा यह कि अब केवल दो दावेदारों के बीच संघर्ष हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि अभी न मयंक गुप्ता ने हार मानी है और न ही बत्रा ने कदम पीछे खींचे हैं। एक दिलचस्प स्थिति यह उभर रही है कि जिन चेहरों को नगर पालिका और नगर पंचायतों में प्रतिनिधित्व मिला है जिले में फिलहाल प्रभावी गुटों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। तय किए गए प्रत्याशियों को देखकर लग यह रहा है कि अधिकांश सीटों पर लाभ किसी तीसरे ही दिग्गज के खाते में जा रहा है। दूसरी ओर, पार्टी का प्रत्याशी चयन का ट्रेंड बता रहा है कि वह हरिद्वार जिले में नई राजनीति की बुनियाद रख रही है। इसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि टिकट चाहे बत्रा की अनुशंसा पर जाए या गुप्ता की अनुशंसा पर, राजनीति पर कायम नियंत्रण दोनों का ही सिमटेगा। हालात का इशारा यह है कि हरिद्वार जिले में निकाय चुनाव की कमान किसी तीसरे के ही हाथ में जा रही है और यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि रुड़की भी हरिद्वार जिले का ही हिस्सा है।