कांग्रेस में बहुत नहीं हैं टिकट के दावेदार
एम हसीन, रुड़की। मेयर टिकट को लेकर कांग्रेस में वैसे प्रतिस्पर्धा में अल्पसंख्यक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हाजी सलीम खान की पत्नी जहांआरा की भी हैं लेकिन अल्पसंख्यक समाज की दावेदारी को इस नगरीय सीट पर कांग्रेस बहुत अधिक अहमियत देगी ऐसा कभी लगा नहीं। दूसरी ओर अपनी पुत्री पूर्णिमा चौधरी की दावेदारी को वापिस लेने के लिए महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी को यह टेक्निकल ग्राउंड मिल गई है कि प्रत्याशी होने के मामले में उनकी आयु तीन दिन कम है। लेकिन टिकट पर पूर्व मेयर यशपाल राणा की पत्नी श्रेष्ठा राणा और प्रदेश महासचिव सचिन गुप्ता की पत्नी पूजा गुप्ता की दावेदारी अभी कायम है।
2019 में कांग्रेस महानगर में करीब 27 हजार वोट लेकर करीब 3 हजार वोटों के अंतर से हारी थी। यह एक बेहद शानदार चुनाव था और इससे महानगर में कांग्रेस की मजबूती भी तय हुई थी। इसके बावजूद पार्टी में इन दोनों के अलावा टिकट का कोई उल्लेखनीय दावेदार नहीं है। जब भाजपा में तीन दर्जन से अधिक दावेदार हों तब कांग्रेस की इस घटी हुई रेटिंग को देखकर क्या कहा जाए सिवाय इसके कि 2019 तक पार्टी की ताकत केवल पंडित मनोहर लाल शर्मा के कारण थी।
ध्यान रहे कि पंडित मनोहर लाल शर्मा ने 2019 में अपने पुत्र रजनीश शर्मा के लिए कांग्रेस का टिकट मांगा था जो कि उन्हें नहीं मिला था। फिर 2022 में उन्होंने विधानसभा टिकट मांगा था। वो भी उन्हें नहीं मिला था। इसके बाद वे भाजपा में चले गए थे। रही-सही कसर तब पूरी हो गई थी जब पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दिनेश कौशिक भी 2024 में भाजपा में चले गए थे।
ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर यशपाल राणा और सचिन गुप्ता भी टिकट न मांगें या दोनों में कोई एक न मांगे तो पार्टी का खबरों में जिक्र तक नहीं आएगा। यह स्थिति तब है जब पार्टी को 25 प्रतिशत मतदाता के समर्थन की गारंटी है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि भारी-भरकम वोट बैंक होने के बावजूद पार्टी को जीत की कोई गारंटी कोई नहीं दे सकता। यानी कांग्रेस का टिकट उसके लिए कोई लाभ की चीज नहीं है जिसे सत्ता की राजनीति करनी हो।
कांग्रेस का टिकट महानगर में उसे ही फल सकता है जिसे विपक्ष की राजनीति करनी हो। बहरहाल, कांग्रेस में टिकट की प्रतिस्पर्धा बहुत तीखी नहीं है। हालांकि हाजी सलीम खान का कहना है कि वे मज़बूरी से टिकट मांग रहे हैं और मौका मिला तो लड़ेंगे भी जरूर। फिर भी महज दो लोगों के बीच ही टिकट का निर्धारण होना है। देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी किस पर दांव लगाना पसंद करती है।