मेयर बनने को इतना अधीर क्यों हैं चेरब जैन?
एम हसीन
रुड़की। भाजपा में टिकट के दावेदारों की कतार लगभग पूरी हो चुकी है। जिन लोगों को पार्टी टिकट पर दावा करना था वे अपना आवेदन प्रस्तुत कर चुके हैं। अब यह भाजपा को तय करना है कि वह 35 दावेदारों में से किसे अपना प्रत्याशी चुनती है! दावेदार के किस गुण-अवगुण को वह अपने प्रत्याशी चयन का आधार बनाती है, यह उसे ही देखना है। लेकिन जनता को यह जानने का अधिकार है कि किस दावेदार का पोर्ट फोलियो क्या है!
अगर बात दावेदारों की करें तो इनमें अव्वल नंबर आज भी चेरब जैन की पत्नी मेघा जैन का ही माना जा रहा है। लगता है कि उनकी दावेदारी के खोखलेपन को उजागर करने के लिए ही बंपर आवेदन आए हैं। असल में मसला इस बिंदु को हाई लाइट करने का है कि जब मेघा जैन दावेदार हो सकती हैं तो फिर कोई भी दावेदार हो सकता है। इसे इसलिए भी हाई लाइट किया जा रहा है क्योंकि माना यह जा रहा है कि चुनाव से महज छः महीने पहले चेरब जैन को राजनीति में लॉन्च करने से लेकर सीट को महिला के लिए आरक्षित करने तक सबकुछ प्लांड रूप से हुआ है। ऐसे में सबसे पहले मेघा जैन के पोर्ट फोलियो पर ही नजर डालना जरूरी है।
जैसा कि बताया गया है कि मेघा जैन उस फोनिक्स ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की डायरेक्टर हैं जिसके चेयरमैन चेरब जैन यानि उनके पति हैं। इससे यह खुलासा होता है कि फोनिक्स ग्रुप जैन परिवार की घरेलू संस्था है। इसके बावजूद यह माना जा सकता है कि मेघा जैन फोनिक्स ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की डायरेक्टर हैं तो वे एक ग्रहणी के साथ-साथ एक कामकाजी महिला, एक कॉरपोरेट एग्जीक्यूटिव, भी हैं। अर्थात, यह खतरा नहीं है कि वे मेयर बनने के बाद घर पर रहेंगी और बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता चेरब जैन करेंगे। बेशक बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता वे ही करेंगी। फिर भी यह हकीकत है कि उनका कोई राजनीतिक पोर्ट फोलियो नहीं है। जिस फील्ड के लिए उन्होंने आवेदन किया है उसका उन्हें कोई अनुभव नहीं है। साफ कहा जाए तो उनका कोई सामाजिक-राजनीतिक जीवन भी है। सवाल यह है कि किसी महानगर का मेयर बनने के लिए किसी दावेदार का केवल कामकाजी होना काफी है?खासतौर पर इसलिए कि जब, जिस संस्था से मेघा जैन जुड़ी हैं, उस पर दलित छात्रों के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति में घोटाला करने का आरोप भी है। साथ ही इन दिनों इस संस्था पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए जैन परिवार में भीतरी संघर्ष जारी होने की खबरें भी आ रही हैं।
सब जानते हैं कि फोनिक्स ग्रुप की स्थापना पूर्व विधायक सुरेश जैन ने की थी और वे ही हाल तक इसके मुख्य करता-धरता थे। जैसा कि सब परिवारों में होता है, जैन परिवार में संपत्ति का बंटवारा हुआ तो यह बात चेरब जैन की ताकत बन गई कि फोनिक्स की ओर से छात्रवृत्ति घोटाला मामले में केवल वे जेल गए थे। बताया जाता है कि संपत्ति बंटवारे में चेरब जैन का होल्ड इस चीज से बन गया कि वे जेल काटकर आ चुके हैं। इस विषय में चेरब जैन से सवाल-जवाब करने के लिए इन पंक्तियों का लेखक कई बार समय मांग चुका है। लेकिन चुनाव की दहलीज पर खड़ा होकर भी यह नेता, जब घर-घर जाकर समर्थन मांग रहा है, तब भी इस लेखक को समय देने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि अपने चुनाव में जाने के असल औचित्य पर वे फोकस नहीं बनने देना चाहते। दूसरी ओर उनके विरोधियों का आरोप है कि परिवार के भीतर अपनी पिछली “जेल यात्रा” को अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल कर चुके चेरब जैन फोनिक्स संस्था पर तो कब्जा कर चुके हैं, अब वे सुरेश जैन की राजनीतिक विरासत पर भी कब्जा कर लेना चाहते हैं। फिर एक मसला यह भी है कि छात्रवृत्ति घोटाले को लेकर अदालत में मुकद्दमा अब भी जारी है और चेरब जैन को अब भी तारीखों पर जाना पड़ता है। यह वह बिंदु है जो चेरब जैन को मेयर का चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसी कारण उन्होंने पिछले छः महीनों में “समाज सेवा” के नाम पर लाखों रुपए केवल प्रचार पर ही खर्च कर दिए हैं। उनके होर्डिंग्स का किराया ही लाखों हो चुका है, जबकि चुनाव अभी शुरू भी नहीं हुआ। इतनी अधीरता कोई कॉरपोरेट बॉस समाज सेवा के लिए नहीं करता।
मेघा जैन के पोर्ट फोलियो को इस नुक्ता निगाह से भी देखा जाना चाहिए कि वे उस फोनिक्स ग्रुप की डायरेक्टर हैं जिस पर दलित छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति के घोटाले का आरोप है। छात्रवृत्ति हो सकता है कि जैन समुदाय के छात्रों के लिए भी आती हो, लेकिन जैन समुदाय अर्थ संपन्न है। इस समुदाय के छात्रों को छात्रवृत्ति की आवश्यकता होती नहीं। छात्रवृत्ति की आवश्यकता दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए ही होती है। उन्हीं के भविष्य का इस पर दारोमदार होता है। इसलिए अगर आरोप सच है तो मेघा जैन उसी वर्ग की दोषी हैं जिससे अब वे समर्थन चाहती हैं, उनकी संस्था ने अगर घोटाला किया है तो गरीब-दलितों के अधिकारों पर चोट की है। इसलिए अब यह नगर की जनता को सोचना है कि मेघा जैन की चुनाव लड़ने की अधीरता समाज सेवा करने के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य ही कुछ और है। यह संवाददाता कोशिश करेगा कि उस उद्देश्य को लेकर मेघा जैन या चेरब जैन से सवाल कर सके। अगर ऐसा न हुआ तो कानूनी मशविरा लेकर यह लेखक उस उद्देश्य पर खुद लिखेगा।