भाजपा की भीतरी राजनीति की क्या रहेगी भूमिका?
एम हसीन
पीरान कलियर। निवर्तमान नगर पंचायत अध्यक्ष शफ़क़्क़त अली द्वारा आसन्न चुनाव को लेकर खम ठोक देने के बाद दो सवाल अहम हो गए हैं। एक यह कि यहां संघर्ष अगड़ा बनाम अगड़ा होने जा रहा है या फिर अगड़ा बनाम पिछड़ा होगा? दूसरा सवाल यह है कि इस मामले में भाजपा की भीतरी राजनीति की क्या भूमिका रहने वाली है?
गौरतलब है कि पीरान कलियर नगर पंचायत अध्यक्ष पद सामान्य रखा गया है। मुस्लिम मुस्लिम डोमिनेटेड सीट पर पिछली बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने घोषित प्रत्याशी नहीं लड़ाए थे। लेकिन स्थानीय कांग्रेस विधायक के खामोश समर्थन के चलते शफ़क़्क़त अली चेयरमैन निर्वाचित हुए थे। उनके सामने बसपा के घोषित प्रत्याशी सलीम अहमद पराजित हुए थे। उन्हें बसपा के मौजूदा लक्सर विधायक हाजी मुहम्मद शहजाद का समर्थन हासिल हुआ था। इस बात के इमकान बहुत कम हैं कि आसन्न चुनाव में भी कांग्रेस या भाजपा अपना प्रत्याशी देगी। इसका कारण है। भाजपा के पास यहां आधार वोट बैंक नहीं है जबकि कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि अगर वह पार्टी टिकट पर प्रत्याशी लड़ाए तो उसके अपने वोट बैंक में गुटबाजी खड़े होने का संकट खड़ा होता है। अपने राजनीतिक वर्चस्व के मद्देनजर ऐसा स्थानीय विधायक नहीं चाहते। लेकिन यह भी हकीकत है कि शफ़क़्क़त अली के जो रिश्ते छ: साल पहले स्थानीय विधायक के साथ थे वे अब नहीं हैं। यह पहले ही माना जा रहा था कि इस बार शफ़क़्क़त अली को विधायक हाजी फुरकान अहमद का समर्थन शायद ही मिल पाए। यह इसमें भी नजर आ रहा था कि चुनाव लड़ने को लेकर शफ़क़्क़त अली का मिजाज हाल तक झोलझाल ही नजर आ रहा था। लेकिन अब जबकि वे खम ठोककर मैदान में आ गए हैं तो साफ दिखाई दे रहा है कि इसमें मुख्य रूप से भाजपा की भीतरी राजनीति का गहरा दखल है।
दरअसल, जब यह तय है कि यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही टिकट पर प्रत्याशी नहीं लड़ा पाएंगे तो यह भी खुद ही नजर आने लगता है कि भाजपा उन्हीं चेहरों में से किसी एक पर अपना भरोसा कायम करेगी जो यहां निर्दलीय के रूप में मैदान में आएंगे। राजनीतिक समझ यह कहती है कि शफ़क़्क़त अली को जब कांग्रेस के स्थानीय विधायक का समर्थन हासिल नहीं है तो फिर निश्चित रूप से उन्हें हर हाल में भाजपा के किसी एक गुट का समर्थन हासिल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा की अपनी राजनीति यहां कम से कम दो खेमों में बंटी हुई है। ऐसे में यह तो हो नहीं सकता कि भाजपा का दूसरा गुट भी शफ़क़्क़त अली का ही समर्थन करे। ऐसे में होगा यह है कि दूसरा गुट किसी और निर्दलीय पर दांव लगाएगा। दूसरा चेहरा ऐसा भी हो सकता है जिसे मूल रूप से हाजी फुरकान अहमद का समर्थन प्राप्त हो। तब यह सवाल अहम होगा कि चुनाव में संघर्ष अगड़ा बनाम पिछड़ा होगा या पिछड़ा बनाम पिछड़ा। पहली बात तो यह है कि जिन दो भावी निर्दलीय उम्मीदवारों को हाजी फुरकान अहमद के समर्थन की उम्मीद है उनमें एक नाजिम त्यागी अगड़ा वर्ग से आते हैं और दूसरे मुहम्मद अकरम पिछड़ा वर्ग से। खुद शफ़क़्क़त अली पिछड़ा वर्ग से आते हैं और यह भी तय है कि बसपा से सलीम अहमद निश्चित चुनाव लड़ेंगे। वे भी पिछड़ा वर्ग से आते हैं। ऐसे में अगर नाजिम त्यागी को हाजी फुरकान अहमद का समर्थन मिलता है तो इस बार यहां मुकाबला पिछड़ा बनाम अगड़ा भी हो सकता है। अहम बात यह है शफ़क़्क़त अली का दावा केवल उनके अपने दम पर नहीं है।