अभी तक हालात को अपने अनुकूल करने में कामयाब दोनों व्यक्तित्व
एम हसीन
रुड़की। राज्य शासन की अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धताएंं हैं और सरकार की अपनी राजनीतिक मजबूरियां। कमाल उस नजर का है जिसने इन सारी चीजों को समय रहते समझा और अपनी रणनीति इनके अनुकूल बनाई। अब जबकि रुड़की मेयर पद सामान्य महिला के नाम आरक्षित हो गया है और भाजपा में मेघा जैन तथा कांग्रेस में पूजा गुप्ता की दावेदारी को टिकट की दौड़ में एक बेहद मजबूत ठौर-ठिकाना मिल गया है तो मेघा जैन के ससुर कमल जैन और पूजा गुप्ता के पति सचिन गुप्ता को दूर-दृष्टा के रूप में पहचाना ही जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी नजर रखी जानी चाहिए कि यहां से शुरू हुए इस वास्तविक राजनीतिक संघर्ष को वे दोनों, टिकट की दौड़ तक, मतदान तक, मतगणना तक और फिर अगर उनमें से किसी एक के हिस्से में जीत आती है तो अगले 5 साल तक किस प्रकार कायम रख पाते हैं।
महानगर मेयर पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित होने से ऐसा लगता है जैसे सबकुछ चेरब जैन और सचिन गुप्ता की सहूलियत के लिए ही हुआ हो; लेकिन यह भी सच है कि यहां से दोनों का संघर्ष शुरू होता है। अभी तक केवल इतना हुआ है कि अब, टिकट ऑर नो टिकट, मेघा जैन और पूजा गुप्ता दोनों ही का चुनाव लड़ने तक पर दावा बरकरार रहेगा। अगर सीट पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हो जाती तो दोनों ही टिकट की दौड़ से बाहर हो जाती। लेकिन अब दोनों का टिकट का संघर्ष शुरू हुआ है। भाजपा में करीब डेढ़ दर्जन टिकट की दावेदार महिलाएं हैं। इनमें अनुसूचित जाति और मुस्लिम को छोड़कर सब वर्गों की महिलाएं हैं। जाहिर है टिकट का संघर्ष तीखा होगा। खासतौर मेघा जैन के लिए यह इसलिए भी तीखा होगा क्योंकि भाजपा में उन्हें टिकट का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है। इसी कारण, जिस मास्टर स्ट्रोक ने मेघा जैन की दावेदारी को बेहद मजबूत आधार दिया है उसी मास्टर स्ट्रोक ने महानगर भाजपा की सारी राजनीति को कमल जैन के विषय में नए सिरे से सोचने पर मजबूर भी किया है। महानगर के सबसे ताकतवर भाजपाई के सामने भी अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि अगर यहां की राजनीतिक पटकथा ऋषिकेश में बैठकर कमल जैन लिखेंगे तो यहां वाले क्या खाक छीनेंगे? जाहिर है कि इस चीज का असर पहले टिकट के मामले में और फिर मतदान के मामले में नजर आएगा। कमोबेश यही स्थिति सचिन गुप्ता की है। आम विचार है कि जब बात यहां तक आ गई है तो सचिन गुप्ता अपनी पत्नी के लिए टिकट का संघर्ष भी जीत ही लेंगे। लेकिन इसके बाद संघर्ष शुरू होगा निर्णायक संख्या में मत अपने पक्ष में पेटियों में डलवाना। कोई बड़ी बात नहीं कि आरक्षण संबंधी इस कामयाबी ने सचिन गुप्ता के व्यक्तित्व के एक बहुत मजबूत पक्ष को, व्यवस्था पर उनकी पकड़ को, उजागर किया है तो महानगर की राजनीति को उनके विषय में नए सिरे से सोचने पर मजबूर भी किया है। इसका कल क्या परिणाम होगा यह देखने वाली बात होगी।