नाजिम त्यागी से लेकर राव इरफान तक की बाँछें खिली

एम हसीन

पीरान कलियर। पीरान कलियर नगर पंचायत अध्यक्ष पद आरक्षण होने मात्र से यहां के राजनीतिक समीकरणों में गुणात्मक परिवर्तन आ गया है। ऐसा नहीं है कि पिछड़े वर्ग से आने वाले चेहरों ने चुनाव लड़ने का इरादा बदल दिया है लेकिन यह भी हकीकत है कि अब अगड़ा चेहरों के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है। मसलन, निवर्तमान सभासद नाजिम त्यागी की बाँछें सरकार के इस फैसले से खिल गई हैं। राव इरफान अली का भी चुनाव लड़ने का इरादा और अधिक पुख्ता हो गया है। कोई बड़ी बात नहीं कि समय आने पर अगड़ी बिरादरी से आने वाले कुछ और चेहरे यहां अपनी उम्मीदवारी लेकर आगे आएं।

नगर पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण घोषित होने से पहले जो चेहरे यहां चुनावी तैयारी करते दिख रहे थे उनमें अगड़ा वर्ग से आने वाले नाजिम त्यागी और राव इरफान ही थे। जाहिर है कि उन्हें कहीं न कहीं इस बात की उम्मीद थी कि सीट का स्वरूप बदल सकता है। बाकी सक्रिय चेहरों में निवर्तमान नगर पंचायत अध्यक्ष शफ़क़्क़त अली, पूर्व प्रधान और पूर्व प्रत्याशी मुहम्मद अकरम तथा पूर्व प्रधान और पूर्व प्रत्याशी सलीम अहमद, रशीद कुरैशी आदि थे। कोई बड़ी बात नहीं कि पिछड़ी बिरादरियों से आने वाले इन चेहरों के इरादों पर आरक्षण संबंधी घोषणा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन्हें अगर चुनाव लड़ना है तो ये लड़ेंगे ही; क्योंकि सीट के आरक्षण मुक्त होने से कानूनी तौर पर उनकी उम्मीदवारी पर कोई फर्क नहीं पड़ता, राजनीतिक फर्क पड़ना अलबत्ता लाजमी होगा। ठीक इसी प्रकार अगड़ा चेहरों, खासतौर पर नाजिम त्यागी, के लिए यह प्रावधान बाँछें खिलाने वाला हो गया है। बेशक युवा नेता नाजिम त्यागी के पास एक अच्छा राजनीतिक पोर्टफोलिया है और चुनाव लड़ने के कई जायज़ कारण हैं। वे पंचायत के निवर्तमान बोर्ड में सभासद रह चुके हैं और उन्होंने अपने दायित्व को कामयाबी के साथ जस्टिफाई किया था। उन्हें इस बात का भी भरपूर लाभ मिला था कि वे स्थानीय विधायक हाजी फुरकान अहमद के खास और काफी हद तक वर्किंग हैंड रहे हैं।

वैसे कलियर क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति खासी महत्वपूर्ण रही है और अभी तक यहां पिछड़ा राजनीति का बोलबाला रहा है। साथ ही यहां दलों का प्रभाव कम और व्यक्तित्वों का प्रभाव अधिक रहा है। मसलन, विधानसभा स्तर पर कलियर की राजनीति झोझा (हाजी फुरकान अहमद) बनाम तेली (हाजी मुहम्मद शहजाद) बनाम सैनी, जिनके चेहरे बदलते रहे, के बीच बंटी रही है। यहां मुख्य रूप से विधायक हाजी फुरकान अहमद और उनके प्रबल प्रतिद्वंदी हाजी मुहम्मद शहजाद के व्यक्तित्वों पर राजनीति होती है। यही राजनीति पिछले निकाय चुनाव में हुई थी। इसी कारण भाजपा यहां न केवल विधानसभा स्तर कभी कामयाब नहीं हुई बल्कि उसने निकाय में प्रत्याशी भी नहीं दिया था। ठीक इसी प्रकार कोई अगड़ा प्रभाव भी यहां कभी नहीं दिखा। केवल एक बार, 2017 के विधानसभा चुनाव में, बसपा ने यहां अगड़ा वर्ग की मुस्लिम राजपूत बिरादरी का प्रत्याशी लड़ाया था जो कोई करिश्मा दिखाए बगैर शहीद हो गया था। यही कारण है कि भाजपा यहां नगर पंचायत की सीधे-सीधे राजनीति नहीं करती। मसलन, इस नगर पंचायत का पहला चुनाव 2018 में हुआ था और तब भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा था।

इस हद पिछड़ा राजनीति के इस केंद्र में भाजपा सरकार ने इस बार नगर पंचायत को आरक्षण मुक्त रखा है। जाहिर है कि यह एक बड़ा बदलाव है। यह बदलाव क्यों हुआ इसका खुलासा समय के साथ होगा। हो सकता है कि इस बार भाजपा यहां की राजनीति को खुद को तीसरा कोण बनाना चाहती हो।इतिहास यह बताता है कि पिछले पंचायत चुनाव में भाजपा राव लुबना को प्रमुख पद का प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस-बसपा को अपनी शर्तों पर राजनीति करने के लिए मजबूर कर चुकी है। जाहिर है कि सत्ता के भीतर इतना कॉन्फिडेंस अपेक्षित होता है। बहरहाल, बदले हालात में नाजिम त्यागी और राव इरफान की उम्मीदवारी को नए पंख तो लगे ही हैं।