भाजपा में वैश्य वर्ग से मेयर टिकट के 8 दावेदार
एम हसीन
रुड़की। हरिद्वार जिले में वैश्य बंधुओं के लिए हालात मुश्किल हैं। हरिद्वार मेयर पद पिछड़ा वर्ग के लिए और लक्सर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गया है। देहरादून अलबत्ता आरक्षण मुक्त है लेकिन ऋषिकेश मेयर पद वहां भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसके बाद वैश्य समुदाय की दावेदारी केवल रुड़की मेयर पद पर आकर टिक गई है। है तो रुड़की सीट भी आरक्षित लेकिन वहां इतनी गुंजाइश बची है कि वैश्य चाहें तो प्रकारांतर से अपना प्रभाव दिखा सकते हैं अर्थात महिला प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर अपनी उपस्थिति कायम रख सकते हैं। बेशक बदली परिस्थिति में इसका सबसे ज्यादा लाभ रुड़की में कांग्रेस मेयर टिकट की दावेदार पूजा गुप्ता के खाते में जा सकता है। अगर भाजपा किसी वैश्य को रुड़की में टिकट नहीं देती और कांग्रेस उन्हें अपना प्रत्याशी बना देती है तो पूजा गुप्ता केवल रुड़की में ही नहीं बल्कि पूरे मंडल के वैश्य वर्ग की उम्मीद का केंद्र बिंदु बन सकती हैं क्योंकि तब वे पूरे मंडल में किसी भी दल की एकमात्र मेयर प्रत्याशी होंगी। लेकिन ऐसा होगा तभी जब वैश्य वर्ग कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का हौसला दिखाए। लेकिन मतदान तक इस पर संशय ही बना रहने वाला है। इसे यूं समझा जा सकता है कि वैश्य वर्ग की ओर से जो आधा दर्जन उम्मीदवारी सामने आई हैं पूजा गुप्ता को छोड़कर वे सब भाजपा से ही आई हैं। इससे लगता है कि सारी परिस्थितियों के बावजूद वैश्य वर्ग की सारी उम्मीदें अभी भाजपा से ही जुड़ी हैं और भाजपा के प्रति ही इस वर्ग की सारी निष्ठा है।
गौरतलब है कि भाजपा की ओर से मेयर टिकट पर 8 वैश्य महिलाओं का दावा बताया गया है। बेशक अव्वल नाम मेघा जैन का है और दोयम राखी चंद्रा का। तीसरा नाम उन्हीं की पुत्रवधु पूनम चंद्रा का है। इनके अलावा दीक्षा गोयल, नेहा सिंघल, सोमा गुप्ता, उमा अग्रवाल और दीपा जैन के नाम सामने आए हैं। इनमें राखी चंद्रा के अलावा सभी के पति भाजपा की राजनीति कर रहे हैं और अगर सीट महिला के लिए आरक्षित नहीं होती तो पति ही टिकट के दावेदार थे और पति ही चुनाव लड़ते। केवल राखी चंद्रा हैं जिनका दावा भले ही सीट पर महिला आरक्षण प्रस्तावित हो जाने के कारण आया है लेकिन आया स्वतंत्र रूप से है। ऐसा इसलिए है एक दौर में राखी चंद्रा भाजपा की एक्टिव चेहरा रह चुकी हैं और वे एक बार सभासद भी रही हैं। पिछले कुछ समय से उनकी राजनीति उनके पुत्र अभिषेक चंद्रा सम्भाल रहे हैं और वे भी भाजपा के पार्षद रह चुके हैं। वे भी भाजपा के सपत्नीक मेयर टिकट के दावेदार हैं। उनकी पत्नी पूनम चंद्रा की दावेदारी मौजूदा हालात में अधिक प्रभावी हो गई है।
भाजपा को वैश्यों की पार्टी कहा जाता है और रुड़की को वैश्यों की टेरिटरी माना जाता है। इसलिए कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि अपनी समझ में भाजपा ने वैश्यों की सारी राजनीति को रुड़की पर ही केंद्रित कर दिया है। कारण यह है कि देहरादून को वैश्यों के हवाले करने का हौसला भाजपा के भीतर भी नहीं है। अब सवाल यह है कि वैश्य समुदाय क्या अपने समक्ष खुले इस एकमात्र विकल्प का कोई सकारात्मक उपयोग कर पाएगा? जाहिर है कि अगले कुछ दिन इस हकीकत को जनता के समक्ष ला देंगे। वैसे 2019 में भी रुड़की में मेयर वैश्य समुदाय से ही चुना गया था। लेकिन उस दौर को नगर में भाजपा और वैश्य समुदाय के सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण दौर के रूप में याद रखा जाएगा। इसकी पुनरावृति न हो इसकी जिम्मेदारी रुड़की नगर की भी है क्योंकि इसकी कीमत रुड़की ने ही चुकाई है।