केदारनाथ उप-चुनाव परिणाम के बाद फैसले लेने की राह पर मुख्यमंत्री

एम हसीन

रुड़की। केदारनाथ उप-चुनाव में मनमाफिक परिणाम लाने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अब रुके हुए मामलों में फैसले लेना शुरू कर दिया है। फिलहाल उनकी प्राथमिकता प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने की है जो दिखाई दे रहा है। लेकिन अब यह भी तय हो गया है कि वे राजनीतिक निर्णय भी लेंगे ही। ऐसे ही निर्णयों में एक निर्णय निकायों में लागू होने वाला पिछड़ा वर्ग का आरक्षण है। दरअसल, मुख्यमंत्री की कोशिश होगी कि निकाय चुनाव में स्थिति वैसी न बने जैसी पिछले जून में उप-चुनाव में बन गई थी जब भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था।

इस पर मुख्यमंत्री द्वारा लिया जाने वाला फैसला सबसे ज्यादा रुड़की निगम की स्थिति को प्रभावित करने वाला है। हालांकि रुड़की निगम प्रदेश के एक सिरे पर स्थापित अलग-थलग बसा एक निगम है जिससे प्रदेश की शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्था व्यापक रूप से प्रभावित नहीं होती। कारण यह है कि यह प्रदेश की राजधानी अथवा मंडल मुख्यालय तो क्या जिला मुख्यालय भी नहीं है। इसके बावजूद मात्र तहसील मुख्यालय की हैसियत रखने वाले इस नगर से प्रदेश की उच्च स्तरीय राजनीति प्रभावित होती है। खासतौर पर भाजपा के लिहाज से यहां की स्थिति ऐसी है कि इससे पार्टी की उच्च स्तरीय राजनीति प्रभावित होती है। मसलन, 2019 के निकाय चुनाव में यहां से मयंक गुप्ता को पार्टी प्रत्याशी बनाने के लिए पहले भाजपा की नरेश बंसल को राजसभा भेजना पड़ा था। इसी प्रकार 2022 में रुड़की बेल्ट की 5 विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा को रुड़की डॉ कल्पना सैनी को राज्यसभा में लेना पड़ा था। तब कहीं जाकर 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां पार्टी प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत की जीत सुनिश्चित हो पाई थी। आगे भी स्थिति ऐसी ही है। मसलन, यहां मेयर टिकट के जितने भाजपाई दावेदार हैं उनमें आधे से ज्यादा बनिया हैं। इनमें सबसे प्रमुख दावेदार मयंक गुप्ता की वरिष्ठता पार्टी और संघ की वरीयता सूची में इतनी ऊंची है कि उन्हें टिकट दिए जाने या न दिए जाने से न केवल समूचे उत्तराखंड की वैश्य राजनीति का प्रभावित होना लाजमी है बल्कि उत्तराखंड से संबंध रखने वाली भाजपा की शीर्ष बनिया राजनीति की भी सहमति आवश्यक है। यदि ऐसा न हो तो तो मयंक गुप्ता के जीतने का सवाल तो उठता ही नहीं, पार्टी के माथे पर हार का कलंक लगता है सो अलग। ऐसा न हो, इसके लिए जाहिर है कि मुख्यमंत्री को राजनीतिक निर्णय लेना होंगे। पार्टी की गुटबाजी के लिहाज से ऐसे राजनीतिक निर्णय पार्टी के कई बड़े चेहरों पर भारी पड़ सकते हैं। कई ऐसे दिग्गज जो मेयर टिकट का अरमान सजाए बैठे हैं उनके अरमानों पर पानी फिर सकता है।