हरिद्वार में पार्टी की भीतरी राजनीति में बढ़ेगा टकराव, हरीश रावत के लिए मुश्किल हालात

एम हसीन

हरिद्वार। मंगलौर विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के गृह प्रदेश उत्तराखंड में निकाय चुनाव की पूर्व संध्या पर उन्हें एक और प्रमोशन मिल गया है। जैसा कि सब जानते हैं कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन हाल तक महाराष्ट्र राज्य के सह-प्रभारी थे और महाराष्ट्र का चुनाव परिणाम आने के फौरन बाद कांग्रेस हाई कमान ने जो फैसले लिए हैं उनमें एक यह भी है कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन को दिल्ली कांग्रेस का प्रभारी बना दिया गया है। यूं पार्टी के भीतर अब क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का रुतबा और अधिक बुलंद हो गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड की राजनीति में, खासतौर पर हरिद्वार जनपद में, पार्टी की भीतरी राजनीति में टकराव और अधिक तीखा होने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। पार्टी हाई कमान की निगाह में फिलहाल उपेक्षित चले आ रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के भी चूंकि व्यक्तिगत अस्तित्व का सवाल है इसलिए यह हो ही नहीं सकता कि यह दोतरफा मार वे आसानी से झेल पाएं। इसलिए यह लाजमी है कि कांग्रेस की भीतरी राजनीति की यह हालिया प्रगति उत्तराखंड में संघर्ष को और अधिक तीखा करे।

यह सर्वज्ञात है कि उत्तराखंड में स्थानीय निकाय चुनाव सर पर खड़ा है। जिस प्रकार के वादे-वहीद राज्य शासन के सचिव नितेश झा ने हाई कोर्ट से लिखित रूप में किए हुए हैं उनकी रूह में कभी भी राज्य सरकार, भले ही उसकी मर्जी हो या न हो, को निकाय चुनाव का ऐलान करना पड़ सकता है। जब निकाय चुनाव होंगे तो प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस के भीतर टकराव होना लाजमी होगा। खासतौर पर हरिद्वार जनपद, जो क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का गृह जनपद है और 2009 से ही हरीश रावत का भी कर्म स्थल बना हुआ है। हाल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरीश रावत की पहल पर उनके पुत्र वीरेंद्र रावत को यहां अपना प्रत्याशी बनाया था। इस दृष्टिकोण से यहां हरीश रावत का हस्तक्षेप लाज़मी होगा। इस हस्तक्षेप को क़ाज़ी निज़ामुद्दीन कितना बर्दाश्त कर पाएंगे यही देखने वाली बात होगी। खासतौर पर इसलिए कि महज दो साल बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होना है। जाहिर है कि अपनी मंगलौर सीट पर क़ाज़ी निज़ामुद्दीन खुद तो प्रत्याशी होंगे ही, वे अपनी टीम को भी लड़ाएंगे। एक विधायक के रूप में अपने व्यक्तिगत प्रदर्शन को लेकर झबरेड़ा सीट पर बुरी तरह नाकाम हो रहे कांग्रेस विधायक और क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के हनुमान सरीखे भक्त वीरेंद्र जाती को नेस्तनाबूद करने का कोई मौका हरीश रावत नहीं छोड़ेंगे। इसी प्रकार खानपुर सीट पर जो “आदर्श तस्वीर” क़ाज़ी निज़ामुद्दीन देखने के आदि हो चुके हैं, हरीश रावत उसे हर हाल में बदलना चाहेंगे। खासतौर पर इसलिए कि यही वह सीट है जहां लोकसभा चुनाव हारे अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को वे विधानसभा चुनाव लड़ाने का मंसूबा प्लान करते बताए जा रहे हैं। संक्षेप यह है कि इस समेत वे सारे मामले होंगे जो कांग्रेस के उस भीतरी संघर्ष को बढ़ाएंगे जो फिलहाल भी थमा नहीं है।