नगर कभी जाहिर तो करे अपनी विकास की जरूरत
एम हसीन
रुड़की। जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हरिद्वार में हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण द्वारा करोड़ों रुपए की लागत से पूरी की गई विभिन्न परियोजनाओं का लोकार्पण कर रहे थे, तब रुड़की में इस बात पर मनन हो रहा था कि मेयर पद के जो दावेदार सामने आ रहे हैं उनमें ऐसा कौन होगा जो निर्बाध ढंग से 5 साल बोर्ड का संचालन करने में सक्षम हो? ऐसा कौन होगा जो उस व्यवस्था को सुधार सकने में सक्षम हो जो जारी बोर्ड के दौरान पैदा हुई थी? जाहिर है कि हर दावेदार के पास अपने पक्ष में तर्क हैं। वे सही भी हो सकते हैं। इसके बावजूद तमाम लोग, जो सीधे-सीधे राजनीति नहीं करते लेकिन नगर के हालात से सरोकार रखते हैं, इस सवाल पर मंथन तो कर ही रहे हैं।
मुद्दे पर आगे चर्चा करने से पहले इस हकीकत को जान लेना जरूरी है कि रुड़की निगम अपनी स्थापना के दस वर्ष पूरे कर चुका है। हालांकि निगम के दूसरे बोर्ड का कार्यकाल अभी कुछ दिन बाकी है। लेकिन निगम का शासनादेश चूंकि 2013 में जारी हुआ था और फिर 2018 में निर्धारित समय पर चुनाव नहीं हुआ था इसलिए बिना मेयर चल रहे बोर्ड के कार्यकाल के बावजूद निगम के गठन को 10 साल से अधिक समय बीत चुका है। इन 10 सालों में क्या नगर में ऐसा कुछ हुआ है जैसा 2013 से पहले कभी नहीं हुआ था? मेरी जानकारी कहती है कि कुछ तो अलग हुआ है और निगम के दोनों बोर्डों के कार्यकाल में अलग हुआ है। दोनों बोर्डों की जो सामूहिक उपलब्धि रही वह है विवाद दर विवाद। इसके अलावा अलग उपलब्धि एक बोर्ड का समापन मेयर के जेल गमन में हुआ और दूसरे बोर्ड का मेयर के साढ़े तीन साला पलायन में। इस अवधि में निगम के स्तर पर कोई ऐसी योजना, कोई ऐसा कार्यक्रम बनाए जाने की मुझे जानकारी नहीं है जिसका संबंध किसी नवाचार से हो, किसी समग्र विकास से हो, किसी समस्या के स्थाई समाधान से हो या किसी ठोस निर्माण से हो। क्या शिक्षा नगरी की, अभियंता नगरी की, वास्तुविद नगरी की इससे ज्यादा कोई विडंबना हो सकती है कि यहां से पिछले 10 सालों में निर्माण का कोई किसी प्रकार का संदेश प्रवाहित हुआ ही नहीं? जो भी संदेश गया वह नकारात्मक ही था? निराशाजनक ही था?
बात केवल नगर निगम की ही नहीं है। रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा को “विकास पुरुष” बताने वाले लोक निर्माण विभाग के एक अभियंता से जब काउंटर क्वेश्चन करते हुए जोर देकर पूछा गया कि वे नगर में विधायक के विकास कार्य गिनवाएं तो वे कुछ बोल नहीं सके। बहुत जोर देने पर उन्होंने केवल दो कामों का उल्लेख किया। एक, उस पुल का जो पिछली दीपावली पर नहर में गिर गया और दूसरे उस नाले का जिसका निर्माण इन दिनों दिल्ली मार्ग पर चल रहा है। प्रदीप बत्रा का पहला कार्यकाल 4 का रहा था और दूसरा 5 साल का। उनके तीसरे कार्यकाल का तीसरा साल चल रहा है। इन 12 सालों में उन्होंने निश्चित तौर पर कम से कम 50 करोड़ रुपए विधायक निधि के तौर पर खर्च किए हैं। 12 सालों में उनकी संस्तुति पर करोड़ों रुपए के काम स्टेट सेक्टर से, इतने ही डिस्ट्रिक्ट सेक्टर से और इतने ही डिजास्टर सेक्टर से हुए होंगे। जारी वित्तीय वर्ष में मुख्यमंत्री ने खुद विज्ञप्ति जारी करके बताया था कि उन्होंने पक्ष-विपक्ष के हर विधायक से अपने क्षेत्र के विकास से संबंधित 10 प्रस्ताव मांगे थे। यूं उन्हें 700 प्रस्ताव मिले थे, जिनमें से 390 प्रस्तावों को वे स्वीकृति दे चुके हैं। यूं स्वीकृत हुए प्रस्तावों में 90 प्रस्ताव विपक्षी विधायकों के हैं। यह विज्ञप्ति मुख्यमंत्री मीडिया सेल ने दो महीने पहले जारी की थी। जाहिर है कि अब संख्या बढ़ गई होगी। मेरा सवाल यह है कि लोक निर्माण विभाग के भ्रष्टाचार या इसी विभाग की आपराधिक कोताही पर उसे प्रमाण-पत्र देने वाले नगर विधायक प्रदीप बत्रा क्या अपने वे 10 प्रस्ताव बता सकते हैं जो उन्होंने मुख्यमंत्री के आग्रह पर उन्हें प्रेषित किए थे? क्या वे बता सकते हैं कि इनपर कहां जहां काम हो रहा है?
जहां तक सवाल मुख्यमंत्री का है तो उन्हें रुड़की से कोई दुश्मनी तो शायद नहीं होगी। फिर उन्होंने जब हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष के रूप में अंशुल सिंह को नियुक्ति दी, उन्हें करोड़ों का बजट दिया, उन्हें परियोजनाएं दी और इन परियोजनाओं पर काम करने के लिए फ्री हैंड दिया तो उन्होंने इन सारी चीजों को रुड़की तक विस्तार क्यों नहीं दिया? क्यों नहीं अंशुल सिंह को कहा गया कि वे रुड़की में भी किसी योजना या परियोजना पर काम करें? क्या इसलिए कि नगर विधायक ने मुख्यमंत्री से ऐसी कोई मांग ही नहीं की? क्या इसलिए कि मुख्यमंत्री तक यह संदेश पहले ही पहुंचा हुआ था कि रुड़की के लोग विकास नहीं चाहते?