इस बार भाजपा की राजनीति कर रहा है यह दिग्गज ब्राह्मण नेता

एम हसीन

रुड़की। उत्तराखंड स्थापना के बाद यह पहला अवसर है जब रुड़की में किसी चुनाव की राजनीतिक-प्रशासनिक रूप-रेखा तैयार हो रही है और बी एस एम कॉलेज पर कोई सक्रियता नहीं है। मीडिया में भी न तो पंडित मनोहर लाल शर्मा के टिकट पर दावे का कोई चर्चा है और न ही उनके पुत्र पंडित रजनीश शर्मा के टिकट के दावे का। सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस बार इस परिवार का टिकट पर कोई दावा है ही नहीं या फिर उनकी खामोशी कोई खास रणनीति है? क्या इस बार वे खामोश रहकर सही समय का इंतजार कर रहे हैं? वैसे इस बार एक उल्लेखनीय बात उन्हें लेकर यह ध्यान में रखी जानी जरूरी है कि वे अब कांग्रेस में नहीं हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद वे भाजपा गमन कर गए थे और तभी से उनका ग्रुप पूरी खामोशी धारण किए हुए है।

पंडित मनोहर लाल शर्मा वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और उत्तराखंड स्थापना के बाद हुए पहले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नगर विधानसभा सीट पर उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था। तब वे मामूली अंतर से पराजित हुए थे। इसी कारण राज्य में बनी पहली कांग्रेस सरकार ने उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया था। इसके बाद वे न केवल कांग्रेस की भीतरी बल्कि अपने समुदाय की भी भीतरी राजनीति का भी ऐसा शिकार हुए थे कि 2007, 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट का प्रबल दावेदार रहने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिला था। वे हर बार बिल्कुल अंत में नकारे गए थे। केवल इतना ही नहीं; 2013 और 2019 के निकाय चुनाव में पार्टी ने उनके पुत्र रजनीश शर्मा को भी मेयर टिकट नहीं दिया था। 20 वर्षों तक पार्टी की लगातार उपेक्षा झेलने के बावजूद, पार्टी के सब नेताओं का और नगर की जनता का आवश्यक आदर सत्कार करने के बावजूद जब उनके सम्मान से लगातार खिलवाड़ किया गया था तो वे अंततः भाजपा गमन कर गए थे।

भाजपा गमन के बाद से अब तक उनकी खामोशी का एक कारण यह भी हो सकता है कि वे पार्टी पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहते और यह भी कि चुनावी राजनीति को लेकर अब उनके मन में इच्छा ही बाकी न रही हो। कारण यह भी हो सकता है कि पार्टी के किसी खास नेता द्वारा उन्हें किसी प्रकार का आश्वासन दे दिया गया हो और यह आश्वासन मेयर टिकट का भी हो सकता है तथा कुछ और भी। बहरहाल, उत्तराखंड के इतिहास का यह पहला अवसर है कि बी एस एम कॉलेज में मुकम्मल खामोशी का वातावरण है।