इस बार न तो पक्ष और न ही विपक्ष तय कर रहे प्रदीप बत्रा

एम हसीन

रुड़की। नगर विधायक प्रदीप बत्रा को लगता है कि इस बात का भरपूर अहसास है कि इस बार वे सत्ता में हैं। जिन त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरोध में उन्होंने पिछले निकाय चुनाव में उन्होंने अलग राह चुनी थी, वे अब हरिद्वार सांसद हैं। अर्थात बत्रा को इस बात का अहसास है कि उन्हें सत्ता यानि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का ही संरक्षण नहीं चाहिए, सांसद का भी आशीर्वाद चाहिए। यही कारण है कि इस बार उनका मेयर पद का कोई भाजपा के भीतर या बाहर, या भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़ सकने वाली हैसियत का पसंदीदा चेहरा भाजपा से टिकट मांगता दिखाई नहीं दे रहा है। जो मांग रहे हैं उन सबकी अपनी हैसियत और अपनी इच्छा है। किसी पर भी बत्रा की मुहर लगी हुई नहीं दिख रही है।

नगर की स्थापित राजनीति के हिसाब से अगर विश्लेषण किया जाए तो इससे यह आशंका पैदा होती है कि इस बार अगर हालात ऐसे बने तो बगावत भाजपा में नहीं बल्कि कांग्रेस में होगी। आगे आशका यह पैदा होती है कि इस बार अगर निर्दलीय मेयर कोई बनेगा तो वह भाजपा पृष्ठभूमि का नहीं बल्कि कांग्रेस पृष्ठभूमि का होगा। या फिर यह भी हो सकता है कि इस बार बगावत भाजपा में हो और उस बागी पर मेहरबान कांग्रेस हो जाए। उसे अपना टिकट देकर मेयर बना दे।

बहरहाल, भाजपा में उपरोक्त शांति का एक कारण यह भी हो सकता है कि बत्रा इतना गहरे हो गए हैं कि उन्होंने अभी तक अपने मेयर प्रत्याशी चेहरे को उजागर ही नहीं होने दिया है। यानि अबकी बार वे अपने व्यक्तिगत मेयर चेहरे को पार्टी के मेयर चेहरे के रूप में सामने लाना चाहते हैं। यूं वे पार्टी को अपनी हैसियत दिखाने की बजाय पार्टी की हैसियत को अपने पक्ष में इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसीलिए वे मुख्यमंत्री की खुश रखने की कोशिश तो कर ही रहे हैं; सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत को साधने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। अगर ऐसा है तो बत्रा पहली बार सकारात्मक राजनीति कर रहे हैं। लेकिन इसके पीछे उनकी मजबूरियां भी हैं।

दरअसल, बत्रा को इस बात का भी अहसास है कि उनका कैबिनेट मंत्री पद पर दावा अभी अटका हुआ है, उनके कई बिजनेस प्रोजेक्ट अभी अधर में हैं और महज दो साल बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी चुनाव में जाना है। वे जानते हैं कि पिछली बार भी हारते हारते जीते थे और यह भी देख रहे हैं कि भाजपा का जादू अब उतार की ओर है।

फिर अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि सत्तापक्ष का मेयर पद का प्रत्याशी कौन होगा! शायद यही कारण है कि नगर विधायक भी अपने पत्ते को छुपा कर चल रहे हैं। जाहिरा तौर पर भाजपा टिकट पर कई लोगों की दावेदारी सामने आ रही है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें किसकी दावेदारी निर्णायक होगी या इनमें कौन प्रदीप बत्रा की पसंद है। इस बार अंतर केवल इतना है कि इस बार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हैं और बत्रा को धामी कैंप का आदमी माना जाता रहा है। दूसरी बात, यह लगता नहीं कि धामी इस बार किसी भाजपाई, भले ही वे प्रदीप बत्रा हों, को यह वॉक ओवर देंगे कि वह अपना निर्दलीय लड़ा ले या कई भाजपाइयों को यह वॉक ओवर देंगे कि वे, प्रदीप बत्रा के विरोध में जाकर, किसी निर्दलीय को मेयर बना लें। जाहिर है कि स्थितियां सारी की सारी ही ऐसी हैं कि वे खामोश राजनीति कर रहे हैं। फिलहाल उनके लिए संतोष की बात केवल इतनी है कि अगर सत्ता का उपयोग वे अपनी व्यक्तिगत संपत्ति बढ़ाने में कर रहे हैं तो उनके विरोधी अधिकांश भाजपाई भी यही कर रहे हैं। अगर सोलानी रपटा घोटाले में वे आरोपी बन रहे हैं तो इसके आरोपों की जद में उनके विरोधी भाजपाई भी आ रहे हैं।