महिला आरक्षण हुआ तो पुत्र वधु होंगी टिकट की दावेदार
एम हसीन, रुड़की। पक्ष विपक्ष में मेयर पद टिकट को मुख्य दावेदारों को भले ही इस बात का अहसास न हो, लेकिन कुछ लोगों को तो यह बात सालती ही है कि रुड़की निकाय को नगर पालिका परिषद से उच्चीकृत होकर नगर निगम बने 10 साल हो गए लेकिन नगर की स्थिति में कहीं कोई आमूल चूल बदलाव देखने को अभी तक भी नहीं मिला है, सिवाय उसकी सीमाओं के विस्तार के, कारों को बढ़ोत्तरी के और विभिन्न प्रकार के जुर्माने की मार के।
जिन लोगों को यह बात सालती है उनमें एक अशोक चौधरी भी हैं जो भाजपा की राजनीति करते हैं और गन्ना विकास परिषद के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चौधरी राजेंद्र सिंह के छोटे भाई तो हैं ही, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सविता चौधरी के पति भी हैं और जिला पंचायत सदस्य अंशुल गुर्जर के पिता भी हैं। वे स्नातकोत्तर (कृषि) तक शिक्षा प्राप्त डिसेंट पर्सनेलिटी वाले सियासी कारकुन हैं और महसूस करते हैं कि नगर के लिए कुछ होना चाहिए, नगर में कुछ होना चाहिए। इसी सोच के तहत उन्होंने देहरादून जाकर अपना राजनीतिक बायो डाटा भाजपा हाई कमान को सौंपा है। उन्होंने इस बात से प्रभावित हुए बिना पार्टी का मेयर टिकट मांगा है कि भले ही पद पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित न हो, जबकि वे पिछड़े वर्ग की गुर्जर जाति से आते हैं। इस बाबत पूछे जाने पर भाजपा के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने सीट को सामान्य मानकर ही टिकट मांगा है और अगर पद महिला के लिए आरक्षित होता है तो उन्होंने अपनी पुत्र वधु आकांक्षा को वैकल्पिक दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया है। बहरहाल, जिस सोच के साथ उन्होंने टिकट पर दावेदारी की है, उसके मद्दे अशोक चौधरी की दावेदारी उल्लेखनीय तो बन ही गई है।
दरअसल, रुड़की में पहला मसला तो हाई डिग्निटी वाले, प्रथम नागरिक माने जाने वाले मेयर पद की गरिमा को ही संभालने का मसला है। फिर यह दिखाने का मसला है कि बुद्धिजीवियों की नगरी के रूप में विश्व स्तर पर ख्यात रुड़की में कुछ कर दिखाने की योग्यता है। इंजीनियर नगरी की पहचान रखने वाले रुड़की नगर में निर्माण का माद्दा है। पढ़े लिखे लोगों का शहर माने जाने वाले रुड़की नगर में आवश्यकताओं को पढ़ कर उन्हें पूरा करने की भी क्षमता है। इस बाबत जब अशोक चौधरी के सम्मुख तल्ख सवाल किए गए तो उन्होंने सौम्य मुस्कुराहट के साथ स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल का यह शेर पढ़कर जवाब दिया कि, “वक्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमां। हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।” उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने पार्टी से सीट सामान्य रहने की स्थिति में भी टिकट मांगा है और वैकल्पिक दावेदार के रूप में अपनी पुत्र वधु आकांक्षा का नाम प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि पार्टी उन्हें टिकट देगी। उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं के बारे में बताया कि वे टिकट राजनीति करने के लिए नहीं बल्कि सेवा करने के लिए चाहते हैं, किसी बदलाव के लिए करना चाहते हैं किसी नवाचार के लिए चाहते हैं। उनके पास प्लानिंग्स हैं और वे समझते हैं कि वे अपनी प्लानिंग्स पर सरकार और समाज के साथ सहमति कायम करते हुए अपनी अगुवाई में काम कर सकते हैं।