मंगलौर विधानसभा क्षेत्र में लगातार जारी करतार सिंह भड़ाना की दस्तक

एम हसीन

रुड़की। पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना की क्षमताएं असीमित हैं, अनंत हैं। वे हरियाणा से उत्तराखंड आकर न केवल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का करिश्मा अंजाम देकर दिखा चुके हैं बल्कि मंगलौर जैसे, भाजपा के लिए बेहद जटिल, समीकरणों वाले विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को स्थापित करने में भी कामयाब हो चुके हैं। अब सवाल यह है कि जो फसल उन्होंने 2024 के उप-चुनाव में उन्होंने बोई थी उसे वे ही काटेंगे या कोई और यहां भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ेगा! खुद भड़ाना के प्रयास तो बताते हैं वे खुद ही यहां अपनी बोई फसल को काटना चाहते हैं। इसके लिए वे लगातार यहां दस्तक भी दे रहे हैं। लेकिन स्थानीय भाजपाइयों के बीच इससे बेचैनी बढ़ती जा रही है। स्थानीय भाजपाई चाहते हैं कि सामान्य चुनाव में पार्टी किसी स्थानीय चेहरे को ही अपना प्रत्याशी बनाए। इस सबके बीच महसूस यह भी हो रहा है कि भड़ाना 2927 का चुनाव, भले ही पार्टी के टिकट पर लड़ना चाहते हों, लेकिन पार्टी के या पार्टी कार्यकर्ताओं के दम पर नहीं बल्कि अपने दम पर लड़ना चाहते हैं।

करतार सिंह भड़ाना हरियाणा के धनकुबेर हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से उनके संबंध भाजपा में बहुत उच्च स्तर पर बने हुए हैं।उनके इन्हीं संबंधों के चलते उन्हें मंगलौर सीट पर उप-चुनाव में टिकट मिला था। यह चुनाव हाजी सरवत करीम अंसारी का निधन होने के कारण हुआ था जो कि बसपा के टिकट पर जीते थे। उप-चुनाव तक यहां बसपा का वजूद कायम था और अंसारी के किसी परिजन के चुनाव लड़ने की उम्मीद थी। साथ ही क्षेत्र में हमदर्दी लहर चलने की भी उम्मीद थी। इसी कारण तब एकाध को छोड़कर कोई भाजपाई यहां टिकट का इच्छुक नहीं था। इसी कारण न केवल भड़ाना को हाई कमान ने टिकट दे दिया था बल्कि स्थानीय भाजपाइयों ने उन्हें चुनाव भी लड़ा दिया था। कुछ सत्ता के संरक्षण और कुछ भाजपाइयों की सक्रियता के चलते भड़ाना शानदार चुनाव लड़ गए थे। वे उस मंगलौर सीट पर महज ढाई सौ वोटो के अंतर से चुनाव हारे थे, जिस पर भाजपा कभी मुकाबले में अपना स्थान ही नहीं बन पाई थी।

बेशक ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि हाजी सरवत करीम अंसारी के उत्तराधिकारी के रूप में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े उनके पुत्र उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए थे। उपचुनाव के बाद जो राजनीतिक परिस्थितियां मंगलौर में बनी हैं उनके चलते बसपा अपना वजूद मुकम्मल तौर पर खो चुकी है। पिछले निकाय चुनाव में बसपा का प्रदर्शन यहां उल्लेखनीय नहीं रहा था। इस चुनाव में अब्दुल रहमान अंसारी उर्फ मोंटी ने बसपा से अलग हटकर अपना स्टैंड लिया था और भाजपा के सहयोग से निर्दलीय जुल्फिकार ठेकेदार को चुनाव लड़ाया था। नतीजा यह हुआ था कि बसपा यहां बिल्कुल शून्य हो गई थी। इन्हीं सब समीकरणों के चलते स्थानीय भाजपाइयों को भी अब महसूस हो रहा है कि जब बसपा वजूद में नहीं है तो भाजपा यहां सीधे मुकाबले की पार्टी बन गई है। स्थानीय भाजपाई इसे भी अपने पक्ष में मन कर चल रहे हैं कि अंसारी बिरादरी के अगुआ उबैदुर्रहमान अंसारी अब उस (भाजपा) के साथ चल रहे हैं। यही कारण है कि अब स्थानीय भाजपा क्षेत्रों में करतार सिंह भड़ाना का यहां स्वागत नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी उपस्थिति को देखकर स्थानीय भाजपाइयों के माथे पर बल पड़ रहे हैं। इस सबके बीच भड़ाना की अपनी चाल है जो वे बिना किसी लाग-लपेट के चल रहे हैं। उनके हालात से यह लगता है कि 2027 का चुनाव वे भाजपाइयों के नहीं बल्कि अपने दम पर लड़ना चाहते हैं।