बरसाती मौसम से पहले समस्या के हल का खूब होता है शोर, फिर होता है मानसून गुजर जाने का इंतजार

एम हसीन

रुड़की। नगर में इन दिनों चौतरफा जल-भराव के हालात हैं। सड़कों पर सफर करना दोहरा जोखिम भरा है। कुछ पता नहीं लगता कि बराबर से गुजरने वाला कोई, खासतौर पर चार पहिया, वाहन चालक कब किसी को गंदे जल से सराबोर कर दे। दूसरा जोखिम यह कि दुर्घटना न हो जाए। पानी से लबालब सड़कें टूट-फूट कर बिखर गई हैं। तारकोल की सड़क का यह ऐब होता है कि जब वह टूटती है तो मलबा कहीं सरक कर गढ्ढा बना देता है तो कहीं टापू सा बना देता है। बहरहाल, सड़क पर ये दोनों जोखिम मुख्य रूप से दोपहिया वाहन चालकों के लिए हैं।

लेकिन रुड़की में जलभराव का यह मामला नया नहीं है। यहां तब भी जल भराव होता था जब 2008 में प्रदीप बत्रा नगर पालिका अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। तब उन्हें कार्यकाल के पहले ही साल पुरानी तहसील के जल-भराव प्रभावित क्षेत्र में ट्रैक्टर पर बैठा कर घुमाया गया था। रुड़की में जल-भराव 2015 में तब भी होता था जब रामपुर चुंगी पर सीवर के गढ्ढे में डूबकर एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सिविल लाइन से लेकर मोहनपुरा तक जल-भराव का भौतिक निरीक्षण किया था। और जल भराव 2003 में तब भी होता था जब तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष पंडित दिनेश कौशिक ने वैशाली सिनेमा के सामने नाले का निर्माण कराया था। अब कुछ हुआ है तो केवल इतना कि जल-भराव क्षेत्रों का विस्तार हो गया है या यूं कहिए कि आबादी का विस्तार हो गया है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि नगर या उसके बाहरी हिस्सों में जल-भराव हो रहा है। सवाल यह है कि जल-भराव की समस्या के लिए क्या हो रहा है? जवाब यह है जाहिरा तौर पर कोशिशें हो रही हैं और वास्तविक रूप से मानसून के गुजर जाने का इंतजार हो रहा है, ताकि लोग सब भूल जाएं।

कोशिशों के तथ्य यह हैं कि 2023 की आपदा के बाद जिले के प्रभारी मंत्री की पहल पर मोहनपुरा से बिझौली तक दिल्ली रोड के दोनों किनारों पर करोड़ों रुपए की लागत से नाले का निर्माण किया गया है। लेकिन इसकी उपयोगिता क्या है? क्या इस नाले के निर्माण के बाद गोलभट्टा अथवा मोहनपुरा क्षेत्र में जल-भराव की समस्या का हल हो गया है? नहीं हुआ है। सच तो यह है कि ऐसी कोई कोशिश भी नहीं की गई। नाला निर्माण से जुड़े रहे एक अभियंता ने हाल ही में “परम नागरिक” को बताया कि नाला निर्माण मोहनपुरा से शुरू करके बिजौली में ले जाकर छोड़ दिया गया है। बिझौली में इसका जल कहां डाला गया है, इस सवाल पर उपरोक्त अभियंता ने कहा कि कहीं नहीं। यानी आगे बिझौली के लोगों की मर्जी है कि वे इसके जल में डूबें-उताराएं या इसके आगे निर्माण की मांग लेकर संघर्ष करें। यही कारण है कि यह नाला बरसाती पानी को लेकर आगे कहीं जा नहीं रहा है बल्कि इसमें पानी भरकर रुक गया है। यही दरअसल, जल-भराव की समस्या के हल की कोशिशें हैं जो केवल होती दिखाई देती हैं समस्या का हल प्रस्तुत नहीं करती। अब यह शोध का विषय है कि यह जर्मनी में होने वाले निर्माण कार्यों का अवलोकन करके लौटे नगर विधायक की कल्पनाशीलता का परिणाम है या अभियंताओं के तकनीकी कौशल का नतीजा। लब्बो-लुबाब यह है कि पिछले तीस साल से जल-भराव की समस्या और जल-भराव समस्या के हल की कोशिशें दोनों जारी हैं।