कांवड़ शिविर में तो नगर भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा के साथ करते रहे हैं मंच सांझा

एम हसीन

रुड़की। निगम चुनाव 2025 में कांग्रेस ने अपने पूर्व मेयर यशपाल राणा की पत्नी श्रेष्ठा राणा को नकारकर सचिन गुप्ता की पत्नी पूजा गुप्ता को अपना टिकट दिया था। पूजा गुप्ता के लिए सचिन गुप्ता ने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा था और अपने लिए तीसरा स्थान सुरक्षित किया था। उनकी चुनावी संभावना को श्रेष्ठा राणा ने ही भोथरा साबित किया था जो निर्दलीय रूप में चुनाव लड़कर सीधे मुकाबले में आ गईं थीं। जाहिर है श्रेष्ठा राणा के नामांकन के साथ ही कांग्रेस ने यशपाल राणा को निष्कासित कर दिया था। अब स्थिति यह है कि यशपाल राणा कांग्रेस में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की हुई है। उनकी इस घोषणा ने नगर में बरसों से कांग्रेस के विधानसभा टिकट के दावेदार चले आ रहे तमाम लोगों को घर बैठने पर मजबूर किया हुआ है। इसी कारण कांग्रेस में टिकट के एकमात्र दावेदार सचिन गुप्ता ही नजर आते हैं। लेकिन सवाल यह है कि अगर सचिन गुप्ता को कांग्रेस ने टिकट दिया तो वे किसके खिलाफ चुनाव लड़ेंगे? क्या यशपाल राणा के जो कि हर हाल में चुनाव लड़ेंगे ही लड़ेंगे? या फिर कांग्रेस की स्वाभाविक प्रतिद्वंदी भाजपा के खिलाफ, जिसका प्रत्याशी प्रदीप बत्रा के ही होने की संभावना सबसे प्रबल है? यह सवाल इसलिए यह उठ रहा है क्योंकि हाल के अपने कांवड़ शिविर में सचिन गुप्ता ने प्रदीप बत्रा के साथ मंच सांझा किया। इससे यह सन्देश प्रवाहित हुआ कि नगर में भाजपा-कांग्रेस समानांतर, अर्थात मिलकर, राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस की विडंबना यह है कि उसका संगठन भी नगर भाजपा के विरोध की राजनीति नहीं कर रहा है। फिर सवाल यह है कि नगर में विपक्ष की राजनीति में कौन है?

जैसा कि साफ नजर आता है कि भाजपा में विधानसभा टिकट के दर्जनों दावेदार हैं, फिर भी वहां टिकट का मामला बिल्कुल सीधा-सादा है। प्रदीप बत्रा तीसरी बार पार्टी के विधायक हैं और चौथी बार उनका टिकट काटने का पार्टी को बहुत मजबूत बहाना चाहिए। पार्टी के पास ऐसा बहाना है या नहीं यह वक्त आने पर दिखाई देगा। इसके विपरीत कांग्रेस के पास टिकट का दावेदार फिलहाल केवल एक, सचिन गुप्ता, ही हैं। इसके बावजूद यहां टिकट का रास्ता बहुत अधिक घुमावदार है। यह खासी दिलचस्प बात है कि यशपाल राणा खुद कांग्रेस से निष्कासित चले आ रहे हैं, इसके बावजूद वे कांग्रेस में सचिन गुप्ता की टिकट की दावेदारी पर सवाल खड़ा करने से नहीं चूकते। इसके लिए वे निकाय चुनाव परिणाम को ही नहीं बल्कि सचिन गुप्ता और प्रदीप बत्रा के बीच की अंडरस्टैंडिंग को भी आधार बनाते हैं। उनका सवाल यह है कि जो व्यक्ति अपने स्वाभाविक प्रतिद्वंदी के विरुद्ध खड़ा होने की बजाय उसके समानांतर राजनीति कर रहा है, उसे टिकट देकर कांग्रेस को क्या हासिल होगा? यही चीज कांग्रेस के टिकट को लेकर घुमाव पैदा करती है। कोई बड़ी बात नहीं कि यशपाल राणा 2027 में भी कांग्रेस टिकट की अपनी संभावना को मजबूत करके चल रहे हैं।

लेकिन विपक्ष की राजनीति की हकीकत यह है कि 2022 से ही एक-दूसरे के खिलाफ खड़े यशपाल राणा और सचिन गुप्ता मिलकर ही प्रदीप बत्रा और भाजपा के खिलाफ ताकत बन सकते हैं। दोनों के अलग-अलग होने से 2022 में भाजपा के प्रदीप बत्रा नगर विधायक बने थे और 2025 में भाजपा की ही अनीता ललित अग्रवाल मेयर बनी हैं, जबकि 2013 में जब ये दोनों इकट्ठे थे तो यशपाल राणा निर्दलीय मेयर बने थे। 2027 में क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। वैसे प्रदीप बत्रा के लिए यह आदर्श स्थिति है कि यशपाल राणा सचिन गुप्ता एक-दूसरे पर ही निशानेबाजी करते रहें।