सवाल नगर विधायक प्रदीप बत्रा से हुआ, जवाब लोकतांत्रिक जनमोर्चा ने दिया
एम हसीन
रुड़की। रुड़की जिला बनाने की मांग को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता सुभाष सैनी के एकल नेतृत्ववाला लोकतांत्रिक जनमोर्चा सक्रिय हो गया है। उसने इस मांग को लेकर न केवल बैठक और प्रदर्शन तक कर डाला है बल्कि कांग्रेस के चार स्थानीय विधायकों का समर्थन भी जुटा लेने का दावा किया है। दावा इसलिए क्योंकि जिनके नाम बताए गए हैं उन चारों विधायकों, हाजी फुरकान अहमद (कलियर), वीरेंद्र जाती (झबरेड़ा), ममता राकेश (भगवानपुर) और रवि बहादुर (ज्वालापुर) का न तो अपने पक्ष में कोई लिखित वक्तव्य सुभाष सैनी ने जारी किया है, न चारों विधायकों में से किसी ने धरना-प्रदर्शन में शिरकत की है और न ही चारों में किसी का एकल स्तर पर ही सही, मीडिया को दिया गया बयान सामने आया है। दावे की बुनियाद केवल विधायकों की सुभाष सैनी के साथ हुई बातचीत को बनाया गया है। शायद किसी पत्रकार ने चारों में से किसी से यह सवाल पूछा भी नहीं कि उनकी इस बाबत क्या राय है। अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जरूर पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान रुड़की की जिला बनाने का वादा किया था। वैसे सरकारी तौर पर रुड़की को जिला बनाए जाने का अभी कोई इशारा कहीं से नहीं आया है।
दरअसल, हालिया इतिहास में “परम नागरिक” ने रुड़की जिला बनाए जाने के मामले में रुड़की के भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा को उनका 2022 के चुनाव पूर्व का वादा याद दिलाने के लिए निकाय चुनाव परिणाम के तत्काल बाद एक कॉपी फाइल की थी। इसी कॉपी में इस क्षेत्र में भाजपा के खराब राजनीतिक प्रदर्शन को हाई लाइट करते हुए यह उम्मीद भी जताई गई थी कि अगर भाजपा सरकार अपने रुड़की विधायक के वादे को पूरा करने के लिए काम करती है तो इसका लाभ उसे अगले विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। यह मूल रूप से एक सवाल था जो “परम नागरिक” ने नगर विधायक प्रदीप बत्रा से “क्या हुआ तेरा वादा” के अंदाज में किया था। यह अलग बात है कि इस पर प्रदीप बत्रा ने कोई जवाब नहीं दिया। न विधानसभा के भीतर उन्होंने तत्संबंधी कोई सवाल उठाया और न ही मीडिया में कोई ब्यान दिया। लेकिन सुभाष सैनी कॉपी के सार्वजनिक होते ही सक्रिय हो गए। उन्होंने पहले बयान, फिर बैठक और फिर धरना-प्रदर्शन के माध्यम से इस मांग पर अपनी मोनोपोली को आम किया।
यह सच है कि उत्तराखंड विधानसभा में सैनी बिरादरी का प्रतिनिधित्व शून्य होने के कारण इस मुद्दे पर सुभाष सैनी शुरू से ही आक्रामक रहे हैं। उनके कार्यक्रमों में लोगों की शिरकत भी देखने आती रही है लेकिन यह शिरकत आम लोगों की ही रही है, खास लोगों की नहीं। शायद खास लोगों की शिरकत सुभाष सैनी चाहते भी नहीं क्योंकि जिस भी बैठक में कोई खास व्यक्ति शामिल होगा उसमें सुभाष सैनी का अपना व्यक्तित्व छोटा पड़ जाएगा। और अपने व्यक्तित्व को लेकर वे कितने जागरूक हैं इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने साथ चार विधायकों का समर्थन तो घोषित किया लेकिन अपने मंच पर एक भी विधायक को लाने का गंभीर प्रयास नहीं किया। केवल इतना ही नहीं। सुभाष सैनी इस मुद्दे पर सड़कों पर तो संघर्ष करते दिखाई देते हैं, लेकिन वे इसे लेकर कोई रणनीतिक लड़ाई लड़ते कभी दिखाई नहीं दिए। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि उन्होंने जिला बनाने की मांग तो हमेशा की लेकिन ऐसा कोई काम नहीं किया कि उनकी मांग मानी भी जाए। न ही उन्होंने इसके लिए कोई रणनीतिक प्रयास कभी किया। कारण वही है। उनके लिए अपने व्यक्तित्व को एक ऐसे मुद्दे के सहारे कायम रखना ज्यादा लाभदायक है जो बिना किसी रणनीतिक संघर्ष के पूरा हो ही न सकता हो। खासतौर पर कांग्रेस में रहते हुए; कारण यह है कि छोटे राज्य या छोटे जिले कांग्रेस की नीति में शामिल नहीं है।