आजाद भारत में विद्या पुरी के बाद बनी नगर की दूसरी महिला नगर प्रमुख बनी
एम हसीन
रुड़की। नेहरू स्टेडियम में पंडाल सज चुका है। मेरे जैसे आलोचकों को छोड़कर, मीडिया समेत तमाम लोगों को निमंत्रण दिया जा चुका है। महानगर की प्रथम महिला मेयर के शपथ ग्रहण की घड़ियां बस पहुंच गई हैं।
जैसा कि सब जानते हैं कि अनीता देवी अग्रवाल हाल के निकाय चुनाव में महानगर की मेयर निर्वाचित हुई हैं। राजीव गांधी सरकार ने 1986 में जो पंचायती राज एक्ट लागू किया था उसकी बदौलत आधुनिक रुड़की में किसी महिला की इस पद तक रसाई हुई है। क्योंकि पंचायती राज एक्ट महिलाओं को निकायों में आरक्षण प्रदान करता है। अगर आरक्षण लागू न होता या महानगर प्रमुख पद महिला के लिए आरक्षित न हुआ होता तो क्या इस पद पर अनीता देवी अग्रवाल आ सकती थीं? यह इस आधुनिक शहर के आधुनिकतम, प्रगतिशील, शिक्षित और खुले विचारों वाले नागरिकों के सोचने के लिए एक सवाल है। वैसे अनीता देवी अग्रवाल महानगर की प्रथम महिला मेयर हैं लेकिन वे नगर की पहली महिला प्रथम नागरिक नहीं हैं। उनसे बहुत पहले, 1950 में ही, जब शहर इतना प्रगतिशील नहीं था, नागरिकों के विचार इतना खुले नहीं थे, समाज आधुनकि नहीं था, तभी श्रीमती विद्या पुरी रुड़की की नगर पालिका अध्यक्ष निर्वाचित हो गई थीं। वे उच्च शिक्षा प्राप्त महिला थीं जो मिलिट्री के कर्नल पुरी से ब्याही गईं थीं। तब का नगर का समाज बौद्धिक रूप से आधुनिक और प्रगतिशील था, यही कारण है कि उस समाज को एक महिला को नगर प्रमुख चुनने के लिए आरक्षण के सहारे की जरूरत नहीं पड़ी थी। यह सब और भी ज्यादा कमाल इसलिए था क्योंकि तब नगर प्रमुख का चुनाव मतदाता सीधे तौर पर नहीं करता था बल्कि मतदाता सभासद चुनता था और सभासद नगर प्रमुख चुनते थे। तब लोगों की सोच कितनी बड़ी होती थी, आज यह सोचकर हैरत होती है।
बहरहाल, यह मामला तब भी उठा था जब अनीता देवी अग्रवाल को भाजपा ने अपना मेयर टिकट दिया था कि अनीता देवी अग्रवाल राजनीतिक महिला नहीं हैं। सच बात तो यह है कि नगर में राजनीतिक महिलाएं कम ही हैं और यह भी सच है कि अनीता देवी अग्रवाल उनमें नहीं हैं। लेकिन यह कोई बहुत बड़ी कमी नहीं है। जिन विद्या पुरी का ऊपर जिक्र आया है, वे भी राजनीतिक महिला नहीं थीं। लेकिन वे सामाजिक महिला थीं और पद पर आने के बाद उन्होंने अपने दायरे को विकसित ही किया था। बेशक उन्होंने ऐसा पद पर आने के बाद किया था लेकिन किया था कि उन्होंने शहर को जाना था, समझा था, यहां की जरूरतों को, यहां की समस्याओं को, यहां के संसाधनों को रेखांकित किया था और फिर नगर हित में अपनी सोच-समझ को लागू किया था। यही कारण है कि तब, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रुड़की आए थे तो उन्होंने यहां नागरिक सुविधाओं को, यहां के भूगोल को देखकर इसे पेरिस के समकक्ष शहर माना था और इसकी प्रशंसा की थी। इसलिए अगर अनीता देवी अग्रवाल का कोई पुराना राजनीतिक पोर्ट फोलियो नहीं है तो यह कोई कमी की बात नहीं है। बात केवल इतनी है कि वे कितनी सामाजिक हैं और अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाने की कितनी इच्छुक हैं! जाहिर है कि इस मामले में अगर उनकी भूख उतनी ही है जितनी विद्या पुरी की थी तो वे भी निश्चित रूप से रुड़की के लिए मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई विशेषण हासिल कर ही लेंगी। इस मामले में आज उनकी शुरुआत होगी। नगर के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं।