खुद जीते ही नहीं विपक्षी को नेस्तानाबूद भी किया, अपने तरीके से तय किए विपक्षी

एम हसीन

रुड़की। 2002 में पहली बार विधायक बने हाजी शहजाद को 2012 में उस समय पराजय का मुंह देखना पड़ा था जब वे एक बेहद शक्तिशाली जन नेता की पहचान हासिल कर चुके थे। अपने दम पर जिला पंचायत जीत चुके थे और लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके थे। फिर परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें प्रत्याशी का नामांकन कराने के बावजूद 2015 के जिला पंचायत के चुनाव में सरेंडर भी करना पड़ा, 2017 के चुनाव में उन्हें बसपा के टिकट से भी महरूम होना पड़ा और विधानसभा चुनाव दूसरी बार हारना पड़ा। जाहिर है कि एक राजनेता के लिए यह स्थिति बेहद दुख दायक थी, खासतौर पर इसलिए कि उनका जनसमर्थन तब भी कायम था। ध्यान रहे 2017 में जब जिले में भाजपा की आंधी आई हुई थी, उन्हें निर्दलीय रूप में लड़ते हुए 24 हजार वोट मिले थे।

इसके बाद उन्होंने विधानसभा क्षेत्र बदला और 2022 में बतौर विधायक वापसी की। इस वापसी के बाद उनकी पहली परीक्षा 2023 का पंचायत चुनाव होना चाहिए थी लेकिन वह चुनाव बसपा ने उनसे अलग होकर लड़ा था, इसलिए अपना वजूद खोया था। वे तब आमतौर पर खामोश ही रहे थे। उनकी दूसरी परीक्षा 2024 का मंगलौर उप चुनाव था लेकिन तब भी बसपा उनसे न्यारी न्यारी ही रही थी। तीसरी परीक्षा अब निकाय चुनाव था। हालांकि इस चुनाव में भी वे और बसपा आमतौर पर अलग अलग राहों के राही ही थे। लेकिन कुछ सीटों पर तो उन्होंने प्रत्याशी लड़ाए ही। मसलन, कलियर नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए उन्होंने अपनी बहन समीना सलीम को लड़ाया और लक्सर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर पार्टी प्रत्याशी के रूप में संजीव कुमार को लड़ाया। लड़ाया तो फिर यह भी सुनिश्चित किया कि उनका प्रत्याशी हारे नहीं। लेकिन उन्होंने बात केवल इतने तक ही सीमित नहीं की। उन्होंने अपने प्रत्याशी को केवल जिताया नहीं बल्कि अपने प्रमुख राजनीतिक विरोधी को हराया भी, नेस्तनाबूद भी किया।

मसलन, कलियर सीट पर उनकी मुख्य प्रतिद्वंदिता कांग्रेस और कांग्रेस के स्थानीय विधायक हाजी फुरकान के साथ रही है। हाजी फुरकान हाथ के पंजे का निशान देकर अकरम प्रधान की पत्नी हाजरा बानो को मैदान में भेजा था। यहां निवर्तमान अध्यक्ष शफ़क़्क़त निर्दलीय के रूप में मैदान में थे। माना जा रहा था कि यहां मुकाबला समीना सलीम और अकरम प्रधान के ही बीच होगा। लेकिन हाजी शहजाद ने अपनी रणनीति और अपने राजनीतिक संपर्कों का ऐसा जाल बुना कि एक समीना सलीम दौड़ में बहुत आगे निकल गई, दूसरी ओर दूसरे नंबर की लड़ाई में हाजरा बानो शफ़क़्क़त की प्रत्याशी मुंसरीना के साथ उलझ गई। अंतिम परिणाम यह हुआ कि मुंसरीना दूसरे नंबर की प्रत्याशी बनी। यूं हाजरा बानो का तीसरे नंबर पर सरक जाना हाजी फुरकान की राजनीति के लिए झटका साबित हुआ। अहम यह है कि हाजी शहजाद ने यह पटकथा बहुत सोच समझकर लिखी और अपने भावी उद्देश्य को हासिल करने में कामयाब रहे।

यही तस्वीर उन्होंने लक्सर में उकेरी। लक्सर में बसपा के संजीव कुमार तो जीते ही, दूसरे नंबर की कांग्रेस के जगदेव रहे। ध्यान रहे कि यहां हाजी शहजाद की प्रतिस्पर्धा भाजपा के पूर्व विधायक संजय गुप्ता के साथ है और निवर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष अम्बरीष गर्ग इसी कैंप में शामिल हैं। संजय गुप्ता यहां भाजपा के देवेंद्र कुमार को पूरी ताकत के साथ लड़ा रहे थे। लेकिन वे अपने लिए दूसरा स्थान भी सुरक्षित नहीं कर सके। यूं यह संदेश जारी हुआ कि उन्होंने अपने अभियान को केवल अपने प्रत्याशी की जीत तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि मुख्य विपक्षी को बुरी तरह हराया भी। उन्होंने अपने प्रत्याशी का विपक्षी भी खुद ही तय किया। यह ऐसा करिश्मा है जो केवल रुड़की में भाजपा चुनाव अभियान के सह संयोजक यतीश्वरानंद ही अंजाम दे पाए। वे ही अपने प्रत्याशी की जीत और उनके विपक्षी की हैसियत तय कर पाए हैं।